जबलपुर। मध्य प्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय में कार्यपरिषद सदस्यों ने यूनिवर्सिटी के अधिकारियों पर करोड़ों रुपए के भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है. मध्य प्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय एमपी में मेडिकल एजुकेशन का एकमात्र विश्वविद्यालय है जिसके अंतर्गत मध्यप्रदेश के सभी मेडिकल कॉलेज नर्सिंग कॉलेज और पैरामेडिकल कॉलेज आते हैं. एमपी के मेडिकल कॉलेजों की परीक्षा एडमीशन मान्यता जैसी गतिविधियां इसी विश्वविद्यालय द्वारा की जाती हैं. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि मध्यप्रदेश की इतनी महत्वपूर्ण शिक्षा को नियंत्रित करने वाली यूनिवर्सिटी में 2016 से ऑडिट नहीं हुआ है मतलब 2016 के बाद से अब तक विश्वविद्यालय में कितना पैसा आया और कितना पैसा गया इसकी ऑडिट रिपोर्ट पेश नहीं की गई है.
फाइनेंस कंट्रोलर का भ्रष्टाचार: एक छात्र संगठन ने आरोप लगाया है कि विश्वविद्यालय में बड़ी आर्थिक गड़बड़ियां हुई हैं. विश्वविद्यालय के फंड में लगभग 200 करोड़ रूपया है इस फंड को विश्वविद्यालय प्रबंधन को ऐसे बैंक में रखना चाहिए था जहां उन्हें ज्यादा ब्याज मिल सके लेकिन विश्वविद्यालय प्रबंधन ने इसे कुछ ऐसे बैंकों में जमा किया हुआ है जहां अपेक्षाकृत कम ब्याज मिल रहा है. वहीं एक नियम यह है कि जो बैंक विश्वविद्यालय की परिधि के 4 किलोमीटर के दायरे में आए उसी बैंक में पैसा जमा किया जाए, लेकिन फाइनेंस कंट्रोलर ने विश्वविद्यालय से 8 किलोमीटर दूर एक छोटी सी ब्रांच में विश्वविद्यालय का 100 करोड़ रुपया जमा कर दिया. छात्र संगठन ने आरोप लगाया है कि विश्वविद्यालय के फाइनेंस कंट्रोलर इस पैसे को वहां जमा करवाते हैं जो बैंक इन्हें दलाली देता है.
ईओडब्ल्यू से जांच की मांग: इन्हीं दोनों महत्वपूर्ण मुद्दों को लेकर बुधवार को विश्वविद्यालय की कार्यपरिषद की बैठक हुई. इस बैठक में एक सदस्य डॉ. पवन स्थापक ने विश्वविद्यालय में हुई आर्थिक अनियमितता की जांच आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो से करवाने की बात कही है. वहीं विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. अशोक खंडेलवाल का कहना है कि वे पहले अपने स्तर पर इसकी जांच करेंगे और जरूरी होगा तो ईओडब्ल्यू से भी जांच करवाई जाएगी. जो लोग भी इस आर्थिक गड़बड़ी में दोषी होंगे उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. बुधवार को विश्वविद्यालय का बजट भी पास किया गया.
सरकार गंभीर नहींं: मेडिकल यूनिवर्सिटी अपने स्थापना के बाद से ही विवादों में रही है. दरअसल सरकार मेडिकल यूनिवर्सिटी के स्थापना के बाद से ही इस मामले में गंभीर नजर नहीं आई. अब तक यूनिवर्सिटी में स्थाई कर्मचारी अधिकारी नहीं है और संविदा और ठेका कर्मचारियों के भरोसे परीक्षा, एडमिशन जैसी प्रक्रियाएं करवाई जा रही हैं. इसी वजह से यूनिवर्सिटी में भ्रष्टाचार भी व्याप्त है और चिकित्सा शिक्षा का भविष्य दांव पर लगा हुआ है.