जबलपुर। लालटेन घोटाले में लोकायुक्त द्वारा दर्ज एफआईआर तथा न्यायालय द्वारा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम एक्ट के तहत तय आरोप को निरस्त करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की गयी. हाईकोर्ट ने पाया कि जांच एजेंसी को मिली नोटशीट में याचिकाकर्ता के हस्ताक्षर थे, जिसमें लालटेन की संख्या के संबंध में गलत जानकारी दी गई. इस प्रकार सेवानिवृत्त असिस्टेंट इंजीनियर को कोर्ट ने राहत देने से इंकार कर दिया.
याचिका में क्या कहा : सेवानिवृत्त असिस्टेंट इंजीनियर यूएस अरोरा की तरफ से दायर की गयी याचिका में कहा गया था कि साल 1996 में वह ऊर्जा विभाग में सहायक यंत्री थे. इस दौरान लालटेन खरीदी का टेंडर हुआ था. निविदा आमंत्रित करने, जांच करने या भुगतान करने का उसके पास कोई अधिकार नहीं था. खरीदी में हुई अनियमितताओं की जांच करने के बाद लोकायुक्त ने साल 2005 में दर्ज प्रकरण में उन्हें आरोपी बना लिया. न्यायालय ने मामले को संज्ञान लेते हुए साल 2010 में पीसी एक्ट की धारा 13 तथा आईपीसी की धारा 120 चार्ज फ्रेम कर दिया.
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एक हजार लालटेन का मामला : याचिकाकर्ता की तरफ से तर्क दिया गया कि पीसी एक्ट में संशोधन कर धारा 13 को समाप्त कर दिया गया है. युगलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि विभाग को एक हजार लालटेन प्राप्त होने की नोटशीट में याचिकाकर्ता के हस्ताक्षर हैं. विभाग को वास्तविकता में एक हजार लालटेन प्राप्त नहीं हुई थीं. पीसी एक्ट में संशोधन 2018 में हुआ है. पूरे मामले को सुनने के बाद उच्च न्यायालय की युगलपीठ ने याचिका को खारिज कर दिया.