जबलपुर। जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर मझौली में भगवान विष्णु वराह मंदिर अपनी अलग विशेषता के लिए जाना जाता है. इस मदिर में मौजूद भगवान विष्णु के वराह अवतार की मूर्ति अन्य जगहों पर पाई जाने वाली वराह की मूर्ति से बड़ी है. यह प्रतिमा 10 वीं शताब्दी की बताई जाती है. पूरी प्रतिमा काले पत्थर की बनी हुई है. इस मूर्ति के इतने बड़े आकार को लेकर किवदंती है कि पहले यह मूर्ति छोटी थी जो लगातार बढ़ रही थी जिसके बाद पंडितों ने मूर्ति पर सोने की कील ठोंक दी थी. जिसके बाद इस मूर्ति का आकार बढ़ना बंद हो गया.
मूर्ति कला का अद्भुत नमूना: विष्णु वराह मंदिर में विष्णु वराह भगवान की अद्भुत प्रतिमा मौजूद है. पूरी प्रतिमा काले पत्थर की बनी हुई है. लगभग 5 फीट चौड़ी है और 8 फीट ऊंची और 10 फीट लंबी है. विष्णु वराह की इतनी बड़ी प्रतिमा पूरी दुनिया में कहीं नहीं है. इसके कुछ अंश खंडित भी हैं ऐसा लगता है कि इन्हें किसी ने तोड़ा है लेकिन इसके बाद भी इस मूर्ति का 90% हिस्सा पूरी तरह से सुरक्षित है. इस प्रतिमा के पूरे शरीर पर नक्काशी करके 64 कोटि के देवी देवता बनाने की कोशिश की गई है. नीचे शेषनाग बनाए गए गए हैं और शरीर के हर हिस्से पर छोटी-छोटी मूर्तियां अंकित हैं. पुरातत्व मूर्तियों के जानकार बताते हैं कि ऐसी ही एक लेकिन इससे छोटी मूर्ति खजुराहो में भी है.
वराह मूर्ति की दंत कथाएं: इस मूर्ति को लेकर स्थानीय पुजारी एक कहानी सुनाते हैं इनका कहना है कि यह मूर्ति मंदिर से लगभग 1 किलोमीटर दूर एक तालाब में मिली थी जो एक मछुआरे के जाल में फंस गई थी. स्थानीय मान्यता के अनुसार उस समय यह मूर्ति बहुत छोटी सी थी. मछुआरे ने इस मूर्ति को अपने घर पर स्थापित किया और पूजा पाठ शुरू कर दिया लेकिन कुछ दिनों बाद उसके घर में कुछ अनिष्ट होने लगा. इससे वह डर गया और स्थानीय पंडितों से उसने बात की, पंडितों ने मूर्ति को देखा और मूर्ति की स्थापना मंदिर में की गई. मंदिर छोटा सा था और पंडितों का कहना है की मूर्ति ने अपना आकार बड़ा करना शुरू कर दिया. धीरे-धीरे मूर्ति इतनी बड़ी हो गई कि वह छोटा सा मंदिर टूट गया. इसके बाद एक अनुष्ठान के जरिए मूर्ति पर सोने की एक कील ठोकी गई. उसके बात मूर्ति ने अपना आकार बढ़ाना बंद कर दिया.
ये भी पढ़ें |
भगवान विष्णु के अवतार वराह: विष्णु वाराह भगवान विष्णु के तीसरे अवतार माने जाते हैं और ऐसा कहा जाता है कि इन्होंने पृथ्वी को गंदगी से निकालकर स्थापित किया था. इसलिए वराह भगवान की पूजा की जाती है. पूजा-पाठ होता है और लोगों की मान्यता है कि उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. विष्णु वराह की यह मूर्ति अद्भुत है. 10 वीं शताब्दी में बनाई गई. इस मूर्ति पर जो छोटी-छोटी मूर्तियां नक्काशी के द्वारा बनाई गई हैं. 10 वीं शताब्दी की इन मूर्तियों का शरीर के अलग-अलग हिस्सों पर उकेरी गई इन आकृतियों का क्या मतलब है. यह शोध का विषय है क्योंकि यह एक कलाकृति मात्र नहीं है बल्कि इसके पीछे कई दार्शनिकों की सोच रही होगी और भी ही यह बात बता सकते थे कि आखिर इस मूर्ति के अलग-अलग हिस्सों में बनाई गई कलाकृतियों का क्या मायने हैं.