जबलपुर। कुत्तों की प्रजाति वफादार और सतर्क जानवरों में शुमार है. वफादारी और सतर्कता की बात की जाए तो कुत्तों की प्रजाती इंसानों से भी कई कदम आगे है. लेकिन ये कुत्ते परेशान हो तो ये घातक रूप धारण कर आम लोगों को अपना शिकार बना लेते है. कई बार तो कुत्ते इतना खुंखार हो जाते है कि इंसान की जान भी ले लेते है. जबलपुर शहर में रहवासी आज कल इस समस्या से काफी परेशान है. शहर में शायद ही ऐसा कोई दिन गया हो जिस दिन किसी आवारा कुत्ते ने आम नागरिक को अपना शिकार नहीं बनाया हो. इस समस्या को हल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद नगर निगम ने पिछले तीन वर्षों में 90 लाख रुपए खर्च कर दिए, लेकिन इन पैसों का परिणाम जनता के सामने नहीं आया है. वहीं समाज सेविका शुभ्रा शुक्ला का कहना है कि कुत्तों की नसबंदी करना नियम के खिलाफ है.
- कुत्तों ने ली थी बच्ची की जान
बीते दिनों जबलपुर में एक डेढ़ साल की बच्ची को आवारा कुत्तों ने अपना शिकार बनया लिया. कुत्तों ने बच्ची को बुरी तरह जख्मी कर दिया था. जख्मी बच्ची को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती तो कराया, लेकिन उसकी मौत हो गई. इस घटना के बाद से इस बात पर चिंता बढ़ गई कि आखिर जबलपुर में आवारा कुत्तों की आबादी कैसे कम की जाए.
- नगर निगम ने 90 लाख रुपए किए खर्च
बीते 3 सालों में जबलपुर नगर निगम ने कुत्तों की नसबंदी करने के लिए एक एनजीओ को कॉन्ट्रैक्ट दिया है. इस संस्था को निगम ने लगभग 90 लाख का पेमेंट किया है. इस काम के लिए 10 हजार प्रतिदिन खर्च 10 कुत्तों की नसबंदी हो पाती है. यदि इस अनुपात में देखा जाए तो लगभग 9 हजार कुत्तों की नसबंदी जबलपुर में नगर निगम ने की. यह दावा नगर निगम कर रहा है. लेकिन ऐसा होता दिखा नहीं. वेटरनरी विभाग के अनुसार 2011 में कुत्तों की आबादी लगभग 24 हजार है. हालांकि कुत्ते हर 6 महीने में नए बच्चों को जन्म दे देते हैं. ऐसी स्थिति में शहर के आवारा कुत्तों की सही आबादी का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. लेकिन यदि नसबंदी पूरी इमानदारी से की जा रही हो तो यह आंकड़ा घटना चाहिए था. लेकिन ऐसा हुआ नजर नहीं.
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- नगर निगम का तरीका गलत
आवारा कुत्तों के लिए काम करने वाली समाज सेविका शुभ्रा शुक्ला का कहना है कि नियम यह कहता है कि आवारा कुत्ता जिस गली में रहता है उसी गली से उसे उठाना है उसकी नसबंदी करनी है और उसे वापस वही छोड़ना है. यदि ऐसा किया जाता है तो कुत्ता परेशान नहीं होगा. वह जिस माहौल में अब तक जीता रहा है उसी में बना रहेगा. लेकिन यदि उसकी नसबंदी करने के बाद उसे कहीं दूसरी जगह छोड़ दिया जाए तो उसके व्यवहार में परिवर्तन आ जाएगा और ऐसे कुत्ते ही लोगों को काटते हैं. वहीं सुभ्रा मिश्रा का कहना है कि आम आदमी भी आवारा कुत्तों की इस समस्या का समाधान करने में मदद नहीं कर रहा है. लोग आवारा कुत्तों को खाना जरूर देते हैं, लेकिन इनके नसबंदी और रेबीज के इंजेक्शन लगवाने में मदद नहीं करते.
- सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद शुरू हुआ अभियान
आवारा कुत्तों की नसबंदी का यह कार्यक्रम सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद शुरू हुआ, लेकिन ऐसा लगता है कि यह कार्यक्रम सफल नहीं है. आम जनता का करोड़ों रुपया इस व्यवस्था में खर्च भी हो रहा है. लेकिन सही परिणाम हासिल नहीं हो रहे. आवारा कुत्तों की आबादी को नियंत्रित करने के लिए बड़े स्तर पर अभियान चले या फिर इसका कोई दूसरा तरीका निकाला जाए. वरना इसी तरीके से जनता के पैसे की बर्बादी होती रहेगी और समस्या का समाधान भी नहीं होगा.