जबलपुर। पश्चिम विधानसभा इस समय पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बनी हुई है. यहां राजनीति के दो महारथी आमने-सामने हैं. सांसद राकेश सिंह और मध्य प्रदेश के पूर्व वित्त मंत्री तरुण भनोट प्रभावशाली लोगों की इस विधानसभा क्षेत्र में सब कुछ बहुत अच्छा है, ऐसा नहीं है. बल्कि, यहां अभी भी बड़े पैमाने पर गरीब बस्तियां हैं. इनमें लोग मूलभूत सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं. उन्हें सरकारी योजनाओं का फायदा नहीं मिल रहा है.एक बस्ती में तो हर दिवाली इस बात की दहशत होती है कि घर को रंग रोगन नहीं करवा लेना, क्योंकि दिवाली के बाद यह घर टूट जाएंगे. पेश है ऐसी ही एक बस्ती से ईटीवी की पड़ताल...
कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिए कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए....मशहूर कभी दुष्यंत कुमार की यह लाइन है जबलपुर की पश्चिम विधानसभा की लाचार लोगों के लिए जीवन पर सटीक बैठते हैं. जबलपुर की पश्चिम विधानसभा आज भी बड़े पैमाने पर गरीब लोग पिछड़ी हुई बस्तियों में रहते हैं. इनमें से ज्यादातर लोग सरकारी जमीन पर अस्थाई घर बना कर रह रहे हैं. इन लोगों के सामने बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव है. हमने जबलपुर की ऐसी ही एक क्रेशर बस्ती का जायजा लिया.
नहीं मिला प्रधानमंत्री आवास: क्रेशर बस्ती में बीते 20 सालों से रहने वाली कौशल्या साहू ने बताया कि वे सरकारी जगह पर कच्चा मकान बनाकर रह रही हैं. हर बार दिवाली के पहले इस पूरे इलाके में ऐसी चर्चा गरम हो जाती है कि इस दिवाली के बाद इन मकानों को तोड़ दिया जाएगा. इसकी वजह से वह घरों का रंग रोगन तक नहीं कराते हैं. इन लोगों को यह डर रहता है कि उन्होंने घर का रंग रोगन करवाया पैसा खर्च किया और यदि घर टूट गया तो रंग रोगन का पैसा ही उन्हें बहुत भारी पड़ेगा. जबलपुर में 5300 प्रधानमंत्री आवास बनाए जा रहे हैं लेकिन इन गरीबों के हिस्से में अब तक प्रधानमंत्री आवास नहीं आया है.
जब सरकार यह दावा कर रही है कि सभी को निजी पक्का मकान देगी तो फिर इनका प्रधानमंत्री आवास कहां गया या जिन लोगों को प्रधानमंत्री आवास मिल रहे हैं वह कहां के गरीब हैं इस बात को जांच ना होगा.
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पानी की कमी: मदन महल की इन ऊंची नीची पहाड़ियों में लगभग 10000 की आबादी रहती है. यह जबलपुर के नागरिक हैं. यह वोट भी देते हैं और जबलपुर की अर्थव्यवस्था में इनका कुछ ना कुछ योगदान है. इन्हें पीने का पानी नसीब नहीं है. बस्ती में एक पाइप लाइन है, लेकिन इसमें टूटे पाइप से पानी भर्ती हुई. मालती झरिया से हमने पूछा तो उन्होंने बताया कि उनके घरों में पानी का कनेक्शन नहीं दिया गया है और पहाड़ी में जैसे-जैसे आप ऊपर चढ़ने जाएंगे पानी की कमी और ज्यादा नजर आती जाएगी.
कुछ जगहों पर हमें बिल्कुल ताजी पाइपलाइन भी नजर आई जो प्लास्टिक की थी, उसके बारे में लोगों ने बताया कि यह तीन दिन पहले ही डाली गई है. डालते ही इसमें प्रेशर जैसे ही पड़ा या फूट गई. लोगों का कहना है कि संभवत चुनाव पास में है इसलिए यह पानी की पाइपलाइन यहां डाल दी गई है.
किसी योजना का फायदा नहीं: क्रेशर बस्ती में रहने वाली शीतल वाल्मीकि ने हमें बताया कि उसे लाडली बहन योजना का फायदा नहीं मिल रहा है. उसने फॉर्म भरा था लेकिन उसे पैसा नहीं मिला. वहीं, उसका राशन कार्ड भी नहीं है कई बार कोशिश करने के बाद भी राशन कार्ड नहीं बन पाया. घर में टॉयलेट नहीं है और पीने के पानी की बड़ी समस्या है. शीतल बाल्मिक बहुत गुस्से में थी, उसका कहना था वह शहर के दूसरे इलाकों में नाली साफ करने जाती हैं, लेकिन उनके मोहल्ले में नाली तक नहीं है. साल में केवल एक बार सफाई होती है और वह गंदगी में रहने के लिए मजबूर हैं.
रोजगार के अवसर नहीं: इसी बस्ती के ठीक बाजू में वन विभाग की ही जमीन को बिना अनुमति के आईटी पार्क को दे दिया गया. आईटी पार्क ने यहां बड़ी-बड़ी इमारतें बनाई. उसमें कुछ कंपनियां आई हैं, जो लोगों को कम दे रहे हैं लेकिन इन कंपनियों की शर्त है कि स्थानीय लोगों को Yr रोजगार नहीं देगी ठीक आईटी कंपनी की दीवाल के बाजू में रहने वाली शशि साहू का कहना है कि इन कंपनियों में किसी स्थानीय आदमी को कोई रोजगार नहीं मिला यदि गलती से कोई रख भी लेता है और उसे बाद में इस बात का पता लगता है कि यह बाजू की बस्ती का रहने वाला है तो उसे कंपनी से हटा दिया जाता है.
क्या बेहतर है: शिक्षा की स्थिति फिर भी थोड़ी ठीक है, पास में ही एक प्राथमिक विद्यालय है. वहां बच्चों को पढ़ाई मिल जाती है. आंगनबाड़ी भी हमें लगी हुई मिली, उसमें कुछ बच्चे थे जिन्हें पोषण के साथ शिक्षा मिल रही थी. वहीं, एक महिला मिली जिसे पैरालिसिस था और उसने बताया कि उसका इलाज तो हो रहा है. वहीं, इस पूरे इलाके में सीमेंट रोड बनाई गई है और बिजली के पल भी लगे हैं.