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जबलपुर की पश्चिम विधानसभा पर बीजेपी से राकेश सिंह और कांग्रेस से तरुण भनोट मैदान में, ये 18 लोग करेंगे हार-जीत तय, देखें खास रिपोर्ट - एमपी न्यूज अपडेट

West Assembly of Jabalpur: जबलपुर शहर की पश्चिम विधानसभा चुनाव लड़ाई के साथ ही अब जीत की रस्साकशी तेज हो गई है. यहां से बीजेपी के राकेश सिंह और कांग्रेस के तरुण भनोट के बीच मुकाबला है. दोनों ही पार्टी यहां से हर हाल में जीतना चाहती है. देखें, जबलपुर से रिपोर्टर विश्वजीत सिंह की रिपोर्ट

West Assembly of Jabalpur
तरुण भनोट और राकेश सिंह के बीच कड़ा मुकाबला
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Oct 17, 2023, 10:11 PM IST

मप्र विधानसभा 2023

जबलपुर। शहर की पश्चिम विधानसभा की चुनावी लड़ाई शुरू हो गई है. दोनों ही मुख्य पार्टियों ने भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ने अपनी सेना के सेनापति घोषित कर दिए हैं. भारतीय जनता पार्टी को पश्चिम विधानसभा कमजोर नजर आ रही थी. वह हर हाल में यहां से जीत चाहते थे, इसलिए जबलपुर के भारतीय जनता पार्टी के सबसे बड़े नेता राकेश सिंह को चुनाव मैदान में उतार दिया. वहीं, जबलपुर की पश्चिम विधानसभा को अपना गढ बना चुके मध्य प्रदेश के पूर्व वित्त मंत्री तरुण भनोट यहां से चुनाव मैदान में है.

कांग्रेस और भाजपा की ताकत की तुलना: आम आदमी को नेता की जरूरत बहुत कम पड़ती है. यदि उसे कोई जरूरत महसूस भी होती है, तो वह सबसे पहले उसे मोहल्ले के वार्ड पार्षद के पास जाता है. आगे का रास्ता वार्ड पार्षद ही तय करवाता है. तो जिसके पास जितने पार्षद हैं, उसकी ताकत को हम उतना अधिक मान लेते हैं. ऐसी स्थिति में भारतीय जनता पार्टी की स्थिति कांग्रेस से बेहतर है. भारतीय जनता पार्टी के पास इस विधानसभा क्षेत्र के 18 में से 10 पार्षद है. वहीं, कांग्रेस के पास केवल 8 पार्षद है.

भारतीय जनता पार्टी के पास पार्षद
1. महाराणा प्रताप बार्ड जीतू कटारे
2. त्रिपुरा वार्ड सुनील पुरी गोस्वामी
3. इंदिरा गांधी वार्ड प्रिया संजय तिवारी
4. विरेंद्रपुरी वार्ड अनुराग साहू
5. वीर सावरकर वार्ड पूजा श्री राम पटेल
6. ग्वारीघाट वार्ड शारदा बाई कुशवाहा
7. बाबूराव पराजपे वार्ड मालती रमेश चौधरी
8. गिरिराज कपूर वार्ड राजकुमार पटेल
9. गुप्तेश्वर वार्ड निशा संजय राठौर
10. डिसेल्वा वार्ड लक्ष्मी जय चक्रवर्ती

कांग्रेस के पास पार्षद
1. गढा वार्ड मनीष महेश पटेल
2. सरदार वल्लभभाई पटेल वार्ड अनुपम जैन
3. मदन महल वार्ड तुलसा लखन प्रजापति
4. शंकर शाह वार्ड विनोद तामसवार
5. शहीद गुलाब सिंह वार्ड हेमलता सिंगरौल
6. बनारसी दास भनोट वाड प्रीति अमर रजक
7. नरसिंह बार्ड डिंपल रिंकू टॉक
8. रानी दुर्गावती वार्ड शेखर सोनी

क्या है समीकरण: पार्षदों की संख्या में कांग्रेस दो पार्षद से पीछे हो रही है. हम कह सकते हैं, उनकी भरपाई खुद तरुण भनोट और महापौर जगत बहादुर सिंह अन्नु के जरिए की जा सकती है. यह दोनों भी इसी इलाके से चुनकर गए हैं. इस हिसाब से चुने हुए जनप्रतिनिधियों की संख्या दोनों की बराबर है.

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कार्यकर्ता काम और सतत संपर्क की तुलना: भारतीय जनता पार्टी यह पूरा चुनाव कार्यकर्ताओं और संगठन के भरोसे लड़ रही है. राकेश सिंह बतौर सांसद पश्चिम विधानसभा में बहुत सक्रिय नहीं रहे. उनके पास संसदीय जिम्मेवारियां थी और उन्हें एक साथ सभी आठ विधानसभा क्षेत्र को देखना होता था. इसलिए पार्टी संगठन के कार्यकर्ता और पदाधिकारी ही उनकी ताकत है. हालांकि, राकेश सिंह अपने द्वारा और भारतीय जनता पार्टी के शासन के दौरान करवाए गए. विकास कार्यों को गिनवा रहे हैं. यह उन्हें इस इलाके में थोड़ा मजबूत करता है.

वहीं. दूसरी तरफ कांग्रेस के विधायक तरुण भनोट के पास दो बराबर तकते हैं. उनके अपने समर्थकों की एक पूरी टीम है, जो व्यक्तिगत उनके लिए काम करती है. वहीं कांग्रेस का संगठन भी अपनी ताकत झोंक रहा है. इस इलाके में महापौर जगत बहादुर खुद सक्रिय हैं. जहां राकेश सिंह अपने करवाए हुए कामों को गिना रहे हैं. वहीं, तरुण भनोट के पास भी अपनी लिस्ट है. उनका जनता से सीधा संपर्क है. वे केवल पश्चिम विधानसभा की राजनीति कर रहे थे.

जातिगत समीकरण: जबलपुर की पश्चिम विधानसभा भी जबलपुर शहर की ही तरह एक मेट्रोपोलिस कलेवर रखता है. यहां किसी एक जाति का वर्चस्व नहीं है बहुत सारी जातियां हैं. इनमें ब्राह्मण है. इसमें कुछ स्थानीय ब्राह्मण है. कुछ उत्तर प्रदेश बिहार और मध्य प्रदेश के विंध्य इलाके के रहने वाले हैं, तो इनका कोई राजनीतिक एक मत नहीं हो सकता. एससी और एसटी भी यहां बड़ी तादाद में है, लेकिन यह लोग भी संगठित नहीं है.

ओबीसी की बड़ी तादाद है, पर ओबीसी एक होकर राजनीतिक ताकत नहीं बन पाती. शहर में कुछ पंजाबी मोहल्ले भी हैं. एक दो वार्ड मुसलमान के भी हैं. धर्म और जाति के आधार यदि यहां चुनाव लड़ा जाएगा, तो किसी परिणाम पर नहीं पहुंचा जा सकता.

पैसा शराब और दहशत: चुनाव में एक पक्ष वह होता है, जो हमें दिखता है. एक पक्ष और होता है, जिसे हम देख नहीं पाते. उसके कोई सबूत भी नहीं होते. उसका किसी पर आरोप भी नहीं लगाया जाता, लेकिन उसका भी इस्तेमाल किया जाता है. उसमें पैसा शराब और दहशत तीनों चीज शामिल हैं. इनका असर दोनों तरफ बराबर होता है. वही, आज का मतदाता इन प्रभावों से वोट नहीं करता. खास तौर पर पश्चिम विधानसभा का मतदाता इतना भोला नहीं है.

फिर कौन जीतेगा: फिलहाल पूरी विधानसभा में जमकर राजनीतिक पारा चढ़ा हुआ है. छोटी-छोटी हवा बन रही है. यह हवा जब लहर का रूप लेगी, तब घरों में चुपचाप इस पूरे तमाशे को देखने वाला आम आदमी निकलेगा. इसको नेतागिरी पैसा दहशत से कोई मतलब नहीं है. वह लहर को देखकर वोट करता है और वही आम आदमी इन खास लोगों की किस्मत तय कर देगा.

मप्र विधानसभा 2023

जबलपुर। शहर की पश्चिम विधानसभा की चुनावी लड़ाई शुरू हो गई है. दोनों ही मुख्य पार्टियों ने भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ने अपनी सेना के सेनापति घोषित कर दिए हैं. भारतीय जनता पार्टी को पश्चिम विधानसभा कमजोर नजर आ रही थी. वह हर हाल में यहां से जीत चाहते थे, इसलिए जबलपुर के भारतीय जनता पार्टी के सबसे बड़े नेता राकेश सिंह को चुनाव मैदान में उतार दिया. वहीं, जबलपुर की पश्चिम विधानसभा को अपना गढ बना चुके मध्य प्रदेश के पूर्व वित्त मंत्री तरुण भनोट यहां से चुनाव मैदान में है.

कांग्रेस और भाजपा की ताकत की तुलना: आम आदमी को नेता की जरूरत बहुत कम पड़ती है. यदि उसे कोई जरूरत महसूस भी होती है, तो वह सबसे पहले उसे मोहल्ले के वार्ड पार्षद के पास जाता है. आगे का रास्ता वार्ड पार्षद ही तय करवाता है. तो जिसके पास जितने पार्षद हैं, उसकी ताकत को हम उतना अधिक मान लेते हैं. ऐसी स्थिति में भारतीय जनता पार्टी की स्थिति कांग्रेस से बेहतर है. भारतीय जनता पार्टी के पास इस विधानसभा क्षेत्र के 18 में से 10 पार्षद है. वहीं, कांग्रेस के पास केवल 8 पार्षद है.

भारतीय जनता पार्टी के पास पार्षद
1. महाराणा प्रताप बार्ड जीतू कटारे
2. त्रिपुरा वार्ड सुनील पुरी गोस्वामी
3. इंदिरा गांधी वार्ड प्रिया संजय तिवारी
4. विरेंद्रपुरी वार्ड अनुराग साहू
5. वीर सावरकर वार्ड पूजा श्री राम पटेल
6. ग्वारीघाट वार्ड शारदा बाई कुशवाहा
7. बाबूराव पराजपे वार्ड मालती रमेश चौधरी
8. गिरिराज कपूर वार्ड राजकुमार पटेल
9. गुप्तेश्वर वार्ड निशा संजय राठौर
10. डिसेल्वा वार्ड लक्ष्मी जय चक्रवर्ती

कांग्रेस के पास पार्षद
1. गढा वार्ड मनीष महेश पटेल
2. सरदार वल्लभभाई पटेल वार्ड अनुपम जैन
3. मदन महल वार्ड तुलसा लखन प्रजापति
4. शंकर शाह वार्ड विनोद तामसवार
5. शहीद गुलाब सिंह वार्ड हेमलता सिंगरौल
6. बनारसी दास भनोट वाड प्रीति अमर रजक
7. नरसिंह बार्ड डिंपल रिंकू टॉक
8. रानी दुर्गावती वार्ड शेखर सोनी

क्या है समीकरण: पार्षदों की संख्या में कांग्रेस दो पार्षद से पीछे हो रही है. हम कह सकते हैं, उनकी भरपाई खुद तरुण भनोट और महापौर जगत बहादुर सिंह अन्नु के जरिए की जा सकती है. यह दोनों भी इसी इलाके से चुनकर गए हैं. इस हिसाब से चुने हुए जनप्रतिनिधियों की संख्या दोनों की बराबर है.

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कार्यकर्ता काम और सतत संपर्क की तुलना: भारतीय जनता पार्टी यह पूरा चुनाव कार्यकर्ताओं और संगठन के भरोसे लड़ रही है. राकेश सिंह बतौर सांसद पश्चिम विधानसभा में बहुत सक्रिय नहीं रहे. उनके पास संसदीय जिम्मेवारियां थी और उन्हें एक साथ सभी आठ विधानसभा क्षेत्र को देखना होता था. इसलिए पार्टी संगठन के कार्यकर्ता और पदाधिकारी ही उनकी ताकत है. हालांकि, राकेश सिंह अपने द्वारा और भारतीय जनता पार्टी के शासन के दौरान करवाए गए. विकास कार्यों को गिनवा रहे हैं. यह उन्हें इस इलाके में थोड़ा मजबूत करता है.

वहीं. दूसरी तरफ कांग्रेस के विधायक तरुण भनोट के पास दो बराबर तकते हैं. उनके अपने समर्थकों की एक पूरी टीम है, जो व्यक्तिगत उनके लिए काम करती है. वहीं कांग्रेस का संगठन भी अपनी ताकत झोंक रहा है. इस इलाके में महापौर जगत बहादुर खुद सक्रिय हैं. जहां राकेश सिंह अपने करवाए हुए कामों को गिना रहे हैं. वहीं, तरुण भनोट के पास भी अपनी लिस्ट है. उनका जनता से सीधा संपर्क है. वे केवल पश्चिम विधानसभा की राजनीति कर रहे थे.

जातिगत समीकरण: जबलपुर की पश्चिम विधानसभा भी जबलपुर शहर की ही तरह एक मेट्रोपोलिस कलेवर रखता है. यहां किसी एक जाति का वर्चस्व नहीं है बहुत सारी जातियां हैं. इनमें ब्राह्मण है. इसमें कुछ स्थानीय ब्राह्मण है. कुछ उत्तर प्रदेश बिहार और मध्य प्रदेश के विंध्य इलाके के रहने वाले हैं, तो इनका कोई राजनीतिक एक मत नहीं हो सकता. एससी और एसटी भी यहां बड़ी तादाद में है, लेकिन यह लोग भी संगठित नहीं है.

ओबीसी की बड़ी तादाद है, पर ओबीसी एक होकर राजनीतिक ताकत नहीं बन पाती. शहर में कुछ पंजाबी मोहल्ले भी हैं. एक दो वार्ड मुसलमान के भी हैं. धर्म और जाति के आधार यदि यहां चुनाव लड़ा जाएगा, तो किसी परिणाम पर नहीं पहुंचा जा सकता.

पैसा शराब और दहशत: चुनाव में एक पक्ष वह होता है, जो हमें दिखता है. एक पक्ष और होता है, जिसे हम देख नहीं पाते. उसके कोई सबूत भी नहीं होते. उसका किसी पर आरोप भी नहीं लगाया जाता, लेकिन उसका भी इस्तेमाल किया जाता है. उसमें पैसा शराब और दहशत तीनों चीज शामिल हैं. इनका असर दोनों तरफ बराबर होता है. वही, आज का मतदाता इन प्रभावों से वोट नहीं करता. खास तौर पर पश्चिम विधानसभा का मतदाता इतना भोला नहीं है.

फिर कौन जीतेगा: फिलहाल पूरी विधानसभा में जमकर राजनीतिक पारा चढ़ा हुआ है. छोटी-छोटी हवा बन रही है. यह हवा जब लहर का रूप लेगी, तब घरों में चुपचाप इस पूरे तमाशे को देखने वाला आम आदमी निकलेगा. इसको नेतागिरी पैसा दहशत से कोई मतलब नहीं है. वह लहर को देखकर वोट करता है और वही आम आदमी इन खास लोगों की किस्मत तय कर देगा.

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