जबलपुर। अपराधी कितना भी शातिर क्यों न हो वह कानून की नजरों से नहीं बच सकता है. ऐसा ही एक मामला जबलपुर में सामने आया है. जहां हत्या के अपराध में सजा पाने से बचने के लिए एक युवक 19 साल से पागल होने का नाटक कर रहा था, लेकिन अपराधी का झूठ न्यायालय ने पकड़ लिया. फरियादी पक्ष ने यह साबित किया कि आरोपी पागल नहीं है. कोर्ट ने पागलपन का नाटक कर बचने वाले हत्यारे को आजीवन कारावास और 6 लाख रूपये अर्थदण्ड से दण्डित किया है.
2004 के लोकसभा चुनाव के दौरान हुआ था विवाद: दरअसल साल 2004 में लोकसभा चुनाव के दौरान राजनीतिक दल में आस्था रखने वाले दो व्यक्तियों में झंडा लगाने को लेकर विवाद हुआ था. इसी दौरान आरोपी नंदू ने राइफल से गोली मारकर रविंद्र की दिन-दहाड़े हत्या कर दी थी. चूंकि आरोपी रसूखदार परिवार से ताल्लुक रखता था. अतः उसने स्वयं को पागल घोषित कर सजा से बचाव की जुगत लगाई थी. विशेष लोक अभियोजक संदीप जैन के तर्को से सहमत होते हुए न्यायालय विवेक कुमार अपर सत्र न्यायाधीश, पाटन जिला जबलपुर के द्वारा आरोपी नन्दू ऊर्फ घनश्याम को दोषी मानते हुए धारा 302 भादवि में आजीवन कारावास की सजा सुनाई.
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खुद को बताया मानसिक रोगी: कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि ''कोई भी व्यक्ति विकृत है या नहीं, यह साबित करने का दायित्व उसी पर है. मानसिक रूप से कमजोर होने भर से अपराध से दोषमुक्ति मिलना विधि सम्मत नहीं है. यदि ऐसा होने लगे तो प्रत्येक अपराधी स्वयं को मानसिक विकृत करार देकर सजा से बचने लगेगा. अदालतों का पुनीत दायित्व है कि वे न्यायदान की प्रक्रिया में तथ्यों का विवेचन कर दूध का दूध और पानी का पानी करें. न्याय की अवधारणा समाज में दोषी को दंड देने पर आधारित है, चाहे वह कितनी ही प्रभुत्वशाली क्यों न हो.''