जबलपुर। सिविल जज व एडीजे की मुख्य परीक्षा की उत्तर पुस्तिका आरटीआई के तहत देने की मांग संबंधित जनहित याचिका हाईकोर्ट ने खारिज कर दी थी. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील के लिए संविधान के अनुच्छेद 134 के प्रावधान के तहत प्रमाणपत्र जारी करने हाईकोर्ट में याचिका दायर की गयी थी. जस्टिस शील नागू व जस्टिस डीडी बसंल की युगलपीठ ने सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था. जिसे सार्वजनिक करते हुए कोर्ट ने चाही गई राहत देने से इंकार करते हुए दायर याचिका खारिज कर दी है. इसके अलावा फ्लाई ओवर के लिए निगम द्वारा मनमाने तरीके से भूमि-अधिग्रहण किये जाने के खिलाफ कोर्ट में करीब आधा सैकड़ा याचिकाएं दायर की गयी है. युगलपीठ ने सरकार को निर्देशित किया है कि सीमांकन प्रक्रिया प्रारंभ कर उसकी वीडियोग्राफी करवाये. साथ ही सरकार को सुरक्षा निधि के रूप में दस करोड़ रुपये कोर्ट में जमा करने के निर्देश दिए हैं.
निजता का हनन के चलते याचिका हुई थी खारिज: एडवोकेट यूनियन फॉर डेमोक्रेसी व सोशल जस्टिस की ओर से दायर की गयी याचिका में कहा गया था कि आरटीआई के तहत सिविल जज एवं एडीजे की मुख्य परीक्षा की उत्तर पुस्तिकाएं प्रदान करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की गयी थी. हाईकोर्ट के नियमानुसार उम्मीदवार को खुद की उत्तरपुस्तिका आरटीआई के तहत देने का प्रावधान है. हाईकोर्ट की युगलपीठ ने निर्णय पारित करते हुए याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी की अगर आरटीआई के तहत उत्तर पुस्तिकाएं दी जाती है तो इसके दुरुपयोग होने की संभावना है, जो कि निजता का हनन होगा, कई जटिलताएं उत्पन्न होगी. उत्तर पुस्तिकाए संबंधित अभ्यर्थी की व्यक्तिगत जानकारी है.
सुप्रीम कोर्ट में जल्द दायर होगी एसएलपी: आदेश में कहा गया था कि आरटीआई के तहत उत्तर पुस्तिकाएं देने का आदेश किया जाता है, तो हाईकोर्ट के 75 प्रतिशत कर्मचारी इसी काम में व्यस्त हो जाएंगे. आदेश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर करने प्रमाण-पत्र जारी करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की गयी थी. जिसमें विधि के सारभूत प्रश्न की देश की संसद या राज्य की विधान सभा द्वारा मांगे जाने पर क्या उत्तर पुस्तिकाएं देने से कोर्ट इंकार कर सकती है?, क्या उत्तर पुस्तिकाएं संबंधित की पर्सनल जानकारी है, उक्त उत्तर पुस्तिका सार्वजनिक कर दी जाती है तो किस प्रकार की क्षति होने की संभावना है. याचिका की सुनवाई के बाद युगलपीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया था. जिसे सोमवार को सार्वजनित करते हुए न्यायालय ने अपने आदेश में चाही गई राहत देने से इंकार कर दिया है. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता रामेश्वर पी सिंह व विनायक शाह मौजूद हुए. जिन्होंने कहा कि उक्त आदेश के खिलाफ वह सुप्रीम कोर्ट में जल्द ही एसएलपी दायर करेंगे.
फ्लाई ओवर याचिका पर कोर्ट ने क्या कहा: युगलपीठ ने अंतरिम आदेश के तहत सरकार द्वारा निर्धारित मुआवजा प्रदान करने के आदेश भी जारी किये हैं. याचिकाओं पर अगली सुनवाई जनवरी के प्रथम सप्ताह में निर्धारित की गयी है. फ्लाई ओवर के लिए जबरन भूमि अधिग्रहण किये जाने को लेकर चुनौती दी गयी है. याचिका में कहा गया है कि नगर निगम द्वारा शहर के अंदर फ्लाई ओवर का निर्माण किया जा रहा है. पंडित लज्जा शंकर मार्ग में फ्लाई ओवर जहां उतारा जा रहा है, उक्त मार्ग की चौड़ाई 80 फिट से अधिक निर्धारित की गयी है, जो मास्टर प्लान से अधिक है. इसके लिए लोगों की व्यक्तिगत भूमि का अधिग्रहण किया जा रहा है. इसके अलावा दमोह नाका से मदन महल मार्ग में भी लोगों की भूमि का जबरन अधिग्रहण किया जा रहा है. याचिका में कहा गया है कि भूमि अधिग्रहण के लिए नगर निगम द्वारा नोटिस जारी किये गये हैं. नोटिस में इस बात का उल्लेख नहीं किया गया है कि कितनी जमीन का अधिग्रहण किया जा रहा है. सरकार एक तरफ न्यायालय में आपसी समझौते के तहत कार्यवाही की बात कहती है, वहीं दूसरी तरफ दूसरी तरफ जबरन तोड़फोड़ करने का लगातार प्रयास जारी है न्यायालय ने बिना सहमत्ति किसी भी प्रकार की तोड़फोड़ करने पर रोक लगा दी थी. नगर निगम सिर्फ लीज की जमीन होने का तर्क प्रस्तुत कर रही है. मुआवजे के संबंध में कोई जवाब पेश नहीं किया गया है. मुआवजे का निर्धारित याचिका के अंतिम आदेश के अधीन रहेगा.