जबलपुर। प्रदेश सरकार के धर्म स्वतंत्रता कानून को असंवैधानिक बताते हुए हाईकोर्ट में आधा दर्जन याचिका दायर की गयी है. interracial marriage करने पर उक्त कानून के तहत कार्यवाही नहीं किये जाने की interim relief चाहते हुए हाईकोर्ट में आवेदन दायर किया गया था. हाईकोर्ट जस्टिस सुजय पॉल तथा जस्टिस जस्टिस प्रकाश चंद्र गुप्ता की युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि एक व्यक्ति संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत शादी करने को स्वतंत्र है. उन्हें धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम की धारा 10 के तहत कलेक्टर के समक्ष आवेदन की आवश्यकता नहीं है. (2 adults can do inter caste marriage)
अंतरिम राहत पर फैसला रखा गया था सुरक्षितः भोपाल निवासी आजम खान, एचएल हरदेनिया सहित दायर आधा दर्जन याचिकाओं में कहा गया था कि प्रदेश सरकार द्वारा लागू किया गया धर्म स्वतंत्रता अधिनियम अवैधानिक है. यह अधिनियम संविधान की अनुच्छेद 14,19, 21 और 25 के सिद्धांतों तथा व्यक्ति के धर्म परिवर्तन व धर्मनिरपेक्षता के अधिकार का उल्लंघन कर रहा है. याचिका में कहा गया था कि इस अधिनियम की धारा 3,4,5,6,7,10,12 व 13 के प्रावधान संविधान में मिले मौलिक अधिकारों के विपरित है. याचिका में कहा गया था कि बालिग व्यक्तियों को संविधान में स्वेच्छा से शादी का अधिकार प्राप्त है. नये कानून में डराकर, धमकाकर, छिपाकर शादी करने पर तीन से दस साल की सजा का प्रावधान है और अन्य व्यक्ति भी शिकायत कर सकता है. प्रदेश में दो प्रकरणों ऐसे दर्ज हुए है, जिनका विवाह चार साल पहले हुआ था. विवाह के बाद अगर विवाद होता है तो इस कानून के तहत कार्यवाही हो सकती है. याचिकाकर्ताओं की तरफ से अंतरजाति विवाह करने पर उक्त अधिनियम के तहत कार्यवाही नहीं किये जाने की अंतरिम राहत चाही गयी थी. याचिकाकर्ता की तरफ से तर्क दिया गया कि राजस्थान उच्च न्यायालय ऐसे आदेश पारित किये है. सुनवाई के बाद युगलपीठ ने 14 नवंबर को अंतरिम राहत पर फैसला सुरक्षित रखा था. याचिकाकर्ता की तरफ से अधिवक्ता हिमांषु मिश्रा, शगुफ्ता सन्नो खान ने पैरवी की. (Court gave big relief to petitioners)