जबलपुर। प्रदेश सरकार के धर्म स्वतंत्रता कानून को असंवैधानिक बताते हुए हाईकोर्ट में आधा दर्जन याचिका दायर की गयी है. interracial marriage करने पर उक्त कानून के तहत कार्यवाही नहीं किये जाने की interim relief चाहते हुए हाईकोर्ट में आवेदन दायर किया गया था. हाईकोर्ट जस्टिस सुजय पॉल तथा जस्टिस जस्टिस प्रकाश चंद्र गुप्ता की युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि एक व्यक्ति संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत शादी करने को स्वतंत्र है. उन्हें धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम की धारा 10 के तहत कलेक्टर के समक्ष आवेदन की आवश्यकता नहीं है. (2 adults can do inter caste marriage)
अधिनियम के प्रावधानों से अंतर्धार्मिक विवाह करने वाले जोड़ों के संरक्षण की मांग करने वाले एक आवेदन पर 32 पन्नों के आदेश में, न्यायमूर्ति सुजॉय गुप्ता और न्यायमूर्ति प्रकाश चंद्र गुप्ता की खंडपीठ ने सर्वोच्च न्यायालय और विभिन्न उच्च न्यायालयों के कई निर्णयों का हवाला दिया. उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं द्वारा अपनी इच्छा से दो बालिग नागरिकों की शादी के संबंध में अंतरिम संरक्षण प्रदान करने और अधिनियम की धारा 10 के उल्लंघन के लिए किसी भी कठोर कार्रवाई के खिलाफ एक मजबूत प्रथम दृष्टया मामला बनता है. जज ने कहा धारा 10 धर्मांतरण के इच्छुक नागरिक के लिए जिला मजिस्ट्रेट को एक घोषणा पत्र देना अनिवार्य है. जो हमारी राय में इस अदालत के पूर्वोक्त निर्णयों के अनुसार असंवैधानिक है.
अपनी इच्छा से दो बालिग कर सकते हैं शादी: लिहाजा अगले आदेश तक सरकार बालिग नागरिकों पर मुकदमा नहीं चलाएगी. अगर वे अपनी इच्छा से शादी करते हैं, तो उन पर कोई कठोर कार्रवाई नहीं की जाएगी. पीठ ने यह भी कहा कि राज्य सरकार को अपना पैरावार रिटर्न तीन सप्ताह के भीतर दाखिल करना चाहिए. पार्टियां जल्द से जल्द अपनी दलीलें पूरी करें. वहीं दलीलों के पूरा होने के बाद इस मामले की बिना बारी की अंतिम सुनवाई के लिए उचित आवेदन दायर करने वे स्वतंत्र हैं.
अंतर-धार्मिक विवाह को अधिनियम के दायरे से बाहर रखने की मांग: एमपी फ्रीडम ऑफ रिलिजन एक्ट 2021(mp freedom of religion act) की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली आधा दर्जन याचिकाओं की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने इंटरफेथ मैरिड कपल्स के लिए अंतरिम राहत की मांग करते हुए एक अर्जी दाखिल की थी. जिसमें कहा गया था कि एक वयस्क व्यक्ति को अपनी मर्जी से शादी करने का अधिकार है. हालांकि 20211 अधिनियम में 3 से 10 साल की जेल का प्रावधान है. शादी गुप्त रूप से की जाती है तो किसी तीसरे व्यक्ति को इस संबंध में शिकायत दर्ज करने की अनुमति भी देता है. राज्य में कम से कम दो ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां सालों पहले शादी होने के बावजूद अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था. उन्होंने अदालत से अंतर-धार्मिक विवाह को अधिनियम के दायरे से बाहर रखने की प्रार्थना की.