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मन मोह रहीं गोंड आर्ट की पेंटिंग्स, प्रधानमंत्री कार्यालय में भी देखी जा सकती है तस्वीर,विदेशों तक बढ़ रही डिमांड - Painting in PM Office

Gond Art Paintings: गोंड कला की पेंटिंग्स की डिमांड बढ़ती जा रही है. ना केवल भारत बल्कि अब इनकी डिमांड विदेशों से भी हो रही है.

Gond Art Paintings
गोंड कला की पेंटिंग्स
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Dec 29, 2023, 9:12 PM IST

जबलपुर में लगी प्रदर्शनी

जबलपुर। डिंडोरी जिले से जन्मी गोंड कला अब भारत की एक स्थापित चित्रकला में शामिल हो गई है. आज से मात्र 30 साल पहले इस कला के जानकार कलाकारों को कोई नहीं पहचानता था लेकिन आज इस कला के कलाकारों का बड़ा सम्मान है. बल्कि इस कला के माहिर लोगों को सरकार ने भी देश के कुछ सर्वोच्च सम्मानों से सम्मानित किया है.

क्या है गोंड आर्ट: गोंड जनजाति के लोग मिट्टी के घरों में रहते हैं. प्रकृति प्रेमी आदिवासी लोग अपने घरों को सजाने के लिए मिट्टी और चूने के कलर से घर के बाहर दीवारों पर फूल पत्ती और जंगली जानवरों के चित्र बनाते थे. उस समय तक किसी को इस बात का अंदाजा नहीं था कि घरों को सजाने के लिए जो चित्र कलाकार सहज रूप से बना रहे हैं वह कभी एक स्थापित कला का स्वरूप ले लेंगे.और भारत के प्रधानमंत्री के कार्यालय में गोंड आर्ट की तस्वीर लगाई जाएगी.

Painting in PM Office
प्रधानमंत्री कार्यालय में गोंड आर्ट की पेंटिंग्स

दीवार से कैनवास पर पहुंची आर्ट: गोंड आदिवासी जबलपुर के आसपास के जंगलों में रहते हैं लेकिन जिस गोंड आर्ट को हम और आप पहचानते हैं उसे पहचान दिलाने का काम जनगढ़ श्याम नाम के एक को आदिवासी कलाकार ने किया था. उन्होंने ही पहली बार इस कला को दीवारों से निकाल कर कैनवास पर जगह दी थी.

पद्मश्री सम्मान से सम्मानित: नरेश श्याम डिंडोरी जिले के पाटनगढ़ के रहने वाले हैं. पाटनगढ़ में ही मूल रूप से गोंड कला का विकास हुआ है. इसकी शुरुआत जनगढ़ श्याम ने की थी. गोंड कला के माहिर कलाकार भज्जू श्याम को 2018 में पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया था. इसके बाद 2022 में गोंड कला की कलाकार दुर्गा बाई को भी पद्मश्री दिया गया.

अब 100 से ज्यादा हैं कलाकार: नरेश श्याम बताते हैं कि उन्होंने केवल 12वीं क्लास तक की पढ़ाई की है और केवल वही नहीं उनके जैसे 100 से ज्यादा कलाकार अब गोंड कला के माहिर आर्टिस्ट हो गए हैं.कलाकारों ने गोंड आर्ट को अपनी जीविका का जरिया बना लिया है. इसमें कलाकारों के साथ ही सरकार ने भी बड़ा योगदान निभाया है.नरेश श्याम इसी परंपरा को जारी रखने वाले दूसरी पीढ़ी के कलाकार हैं.नरेश श्याम का कहना है कि वह खुद को गोंड आर्टिस्ट मानने पर गर्व करते हैं.

tribals painting
राष्ट्रपति को तस्वीर भेंट करते शिवराज सिंह

देश के साथ विदेशों में भी डिमांड: बीते दिनों मध्य प्रदेश में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू आई थी उनको मध्य प्रदेश के राज्यपाल ने 6 गोंड कलाकृति दी थीं. आज भी छोटे पोस्टर से लेकर वॉल आर्ट तक गोंड कला में सभी काम करते हैं. नरेश श्याम का कहना है कि भारत जापान अमेरिका की कई आर्ट गैलरी से भी जुड़े हुए हैं और हर साल लाखों रुपये की पेंटिंग्स में भारत के अलावा दुनिया के दूसरे देशों में भी भेजते हैं.

ये भी पढ़ें:

कलाकार कर रहे नए प्रयोग: शुरुआत में इस कला में केवल फूल पत्ते और जानवरों के ही चित्र बनाए जाते थे लेकिन अब धीरे-धीरे कलाकार हिंदू परंपरा के भगवानों के चित्र भी बनाने लगे हैं. इसके साथ ही इसी तरह के कुछ नए प्रयोग भी यह कलाकार कर रहे हैं. अभी तक यह कला पोस्टर्स और पेंटिंग में ही है अभी इसे कलाकारों ने कपड़ों पर नहीं उतारा है यदि यह कपड़ों पर भी बनाई जाने लगे तो इसका प्रचलन और ज्यादा हो सकता है.

जबलपुर में लगी प्रदर्शनी

जबलपुर। डिंडोरी जिले से जन्मी गोंड कला अब भारत की एक स्थापित चित्रकला में शामिल हो गई है. आज से मात्र 30 साल पहले इस कला के जानकार कलाकारों को कोई नहीं पहचानता था लेकिन आज इस कला के कलाकारों का बड़ा सम्मान है. बल्कि इस कला के माहिर लोगों को सरकार ने भी देश के कुछ सर्वोच्च सम्मानों से सम्मानित किया है.

क्या है गोंड आर्ट: गोंड जनजाति के लोग मिट्टी के घरों में रहते हैं. प्रकृति प्रेमी आदिवासी लोग अपने घरों को सजाने के लिए मिट्टी और चूने के कलर से घर के बाहर दीवारों पर फूल पत्ती और जंगली जानवरों के चित्र बनाते थे. उस समय तक किसी को इस बात का अंदाजा नहीं था कि घरों को सजाने के लिए जो चित्र कलाकार सहज रूप से बना रहे हैं वह कभी एक स्थापित कला का स्वरूप ले लेंगे.और भारत के प्रधानमंत्री के कार्यालय में गोंड आर्ट की तस्वीर लगाई जाएगी.

Painting in PM Office
प्रधानमंत्री कार्यालय में गोंड आर्ट की पेंटिंग्स

दीवार से कैनवास पर पहुंची आर्ट: गोंड आदिवासी जबलपुर के आसपास के जंगलों में रहते हैं लेकिन जिस गोंड आर्ट को हम और आप पहचानते हैं उसे पहचान दिलाने का काम जनगढ़ श्याम नाम के एक को आदिवासी कलाकार ने किया था. उन्होंने ही पहली बार इस कला को दीवारों से निकाल कर कैनवास पर जगह दी थी.

पद्मश्री सम्मान से सम्मानित: नरेश श्याम डिंडोरी जिले के पाटनगढ़ के रहने वाले हैं. पाटनगढ़ में ही मूल रूप से गोंड कला का विकास हुआ है. इसकी शुरुआत जनगढ़ श्याम ने की थी. गोंड कला के माहिर कलाकार भज्जू श्याम को 2018 में पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया था. इसके बाद 2022 में गोंड कला की कलाकार दुर्गा बाई को भी पद्मश्री दिया गया.

अब 100 से ज्यादा हैं कलाकार: नरेश श्याम बताते हैं कि उन्होंने केवल 12वीं क्लास तक की पढ़ाई की है और केवल वही नहीं उनके जैसे 100 से ज्यादा कलाकार अब गोंड कला के माहिर आर्टिस्ट हो गए हैं.कलाकारों ने गोंड आर्ट को अपनी जीविका का जरिया बना लिया है. इसमें कलाकारों के साथ ही सरकार ने भी बड़ा योगदान निभाया है.नरेश श्याम इसी परंपरा को जारी रखने वाले दूसरी पीढ़ी के कलाकार हैं.नरेश श्याम का कहना है कि वह खुद को गोंड आर्टिस्ट मानने पर गर्व करते हैं.

tribals painting
राष्ट्रपति को तस्वीर भेंट करते शिवराज सिंह

देश के साथ विदेशों में भी डिमांड: बीते दिनों मध्य प्रदेश में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू आई थी उनको मध्य प्रदेश के राज्यपाल ने 6 गोंड कलाकृति दी थीं. आज भी छोटे पोस्टर से लेकर वॉल आर्ट तक गोंड कला में सभी काम करते हैं. नरेश श्याम का कहना है कि भारत जापान अमेरिका की कई आर्ट गैलरी से भी जुड़े हुए हैं और हर साल लाखों रुपये की पेंटिंग्स में भारत के अलावा दुनिया के दूसरे देशों में भी भेजते हैं.

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कलाकार कर रहे नए प्रयोग: शुरुआत में इस कला में केवल फूल पत्ते और जानवरों के ही चित्र बनाए जाते थे लेकिन अब धीरे-धीरे कलाकार हिंदू परंपरा के भगवानों के चित्र भी बनाने लगे हैं. इसके साथ ही इसी तरह के कुछ नए प्रयोग भी यह कलाकार कर रहे हैं. अभी तक यह कला पोस्टर्स और पेंटिंग में ही है अभी इसे कलाकारों ने कपड़ों पर नहीं उतारा है यदि यह कपड़ों पर भी बनाई जाने लगे तो इसका प्रचलन और ज्यादा हो सकता है.

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