जबलपुर। जंगली जानवरों की नुमाइश गैर कानूनी है, लेकिन जबलपुर में हाथी (Elephant in jabalpur) की नुमाइश करने वाले बाबाओं को प्रशासन ने बिना किसी कार्रवाई के छोड़ दिया है. हालांकि समाजसेवी की दखल के बाद बूढ़े हाथी का स्वास्थ्य परीक्षण किया गया.
हाथी की नुमाइश कर रहे थे बाबा बैरागी
जबलपुर में उत्तर प्रदेश के कुछ बाबा एक हाथी को शहर में घुमा रहे थे. इस दौरान आवारा कुत्तों के लिए काम करने वाली एक समाज सेवी संस्था की कार्यकर्ता (jabalpur activist rescued elephant) की नजर हाथी पर पड़ी. उन्होंने देखा कि हाथी को चलने में समस्या हो रही है. उन्होंने तुरंत ही जबलपुर डिस्ट्रिक्ट फारेस्ट ऑफिसर अंजना तिर्की को फोन लगाया. आनन-फानन में वन विभाग का अमला सक्रिय हुआ. हाथी को सिविल लाइन इलाके में घूमते हुए पाया गया.
डॉक्टरों ने की हाथी की जांच
इसके बाद वन विभाग (jabalpur forest department) का अमला हाथी को वेटरनरी अस्पताल लेकर पहुंचा, जहां हाथी का जांच की गई. डॉक्टरों का कहना है कि हाथी को कोई गंभीर समस्या नहीं है, लेकिन फिर भी हाथी बूढ़ा हो चुका है. उसके पैरों में लगभग वैसे ही दर्द होता है, जैसा बुढ़ापे में आम आदमियों को होता है. डॉक्टरों ने बाबाओं को सलाह दी है कि वे हाथी (restriction on elephant exhibition) के पैर की मालिश करें और हो सके तो उसे आराम करने दें.
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दरअसल, बाबा बैरागी सदियों से हाथी को दिखा कर पैसा कमाते रहे हैं. हिंदुओं में हाथी को गणेश भगवान से जोड़ा जाता है. हाथी के दर्शन शुभ माने जाते हैं. किसी जमाने में हाथी लोगों के आवागमन का साधन भी हुआ करता था. अब ऐसा नहीं है. अब यह धंधा बन चुका है. उत्तराखंड के कुछ इलाकों में हाथी किराए पर मिलते हैं. इन्हें महाबत के साथ किराए पर लिया जाता है. इसके बाद देशभर में घूम कर इनसे कमाई की जाती है.