जबलपुर। मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों ही महिलाओं को अपनी ओर आकर्षित करना चाह रही हैं. इसके लिए दोनों ही पार्टियों ने महिलाओं को हर महीने पैसे देने की बात कही है. भारतीय जनता पार्टी की लाडली बहन योजना और कांग्रेस की नारी सम्मान योजना दोनों ही योजनाएं महिलाओं को हर महीने पैसे देने की बात कह रही हैं. लेकिन जब इसे भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ने अपने चुनावी पोस्ट में लिखा तो दोनों ने ही एक ही महिला की फोटो लगाई है. कांग्रेस और भाजपा दोनों के पोस्टर्स में आपको एक ही मॉडल की फोटो नजर आएगी.
भाजपा को मोदी और राम का सहारा: 2023 का चुनाव कुछ मामलों में बहुत अलग है. इस बार सार्वजनिक रूप से वॉल पेंटिंग, होल्डिंग और बैनर बहुत कम नजर आ रहे हैं. जबलपुर के तीन पट्टी चौराहे पर दो पोस्टर देखने को मिले, भारतीय जनता पार्टी विधानसभा का चुनाव भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बड़े-बड़े होल्डिंग शहर में कई जगहों पर लगाए गए हैं. भारतीय जनता पार्टी राम मंदिर को भी चुनाव प्रचार में इस्तेमाल कर रही है और इसे अपनी उपलब्धि बताकर जनता से वोट मांग रही है.
कांग्रेस ने बनाया महंगाई को मुद्दा: वहीं, कांग्रेस के पोस्टर्स में घरेलू महंगाई को मुद्दा बनाया गया है. इसमें कांग्रेस की ओर से ₹500 में सिलेंडर देने की बात कही जा रही है. 100 यूनिट तक का बिजली बिल माफ और 200 यूनिट का बिजली बिल हाफ करने का वादा किया गया है और इसके साथ ही नारी सम्मान योजना का जिक्र भी है.
सोशल मीडिया पर प्रचार: चुनाव आयोग की निगरानी की वजह से उम्मीदवार प्रचार में खुलकर पैसा खर्च नहीं कर पा रहे हैं. इस बार का ज्यादातर चुनाव प्रचार सोशल मीडिया पर ही चल रहा है. प्रत्याशी कुछ देर प्रचार करते हैं और फिर इसी की फोटो और वीडियो सोशल मीडिया पर डालकर उसे वायरल करने की कोशिश की जाती है. इसकी वजह से बाजारों में चुनाव का माहौल नजर नहीं आ रहा है.
2 लाख लोगों तक कैसे पहुंचेंगे नेता: चुनाव प्रचार के लिए अब प्रत्याशियों के पास ज्यादा समय नहीं रह गया है. क्योंकि बीच में दीपावली की कल लंबा त्यौहार भी है और आम जनता त्योहार के बीच में राजनीतिक शोरगुल पसंद नहीं करेगी. इसलिए परियों को अपनी बात कहने के लिए ज्यादा समय नहीं है. इसमें उन उम्मीदवारों को ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. जिनकी टिकट बाद में फाइनल हुई है. क्योंकि इतने कम समय में किसी भी विधानसभा के लगभग 2 लाख लोगों तक पहुंच पाना कठिन काम है.