जबलपुर। कचनार सिटी में विराजित 'बड़े शिव बाबा' की बड़ी प्रतिमा यूं ही बड़ी नहीं बनीं. इसके लिए उन्होंने यकीनन बड़ा पुरुषार्थ कराया. मंदिर के संस्थापक बिल्डर अरुण तिवारी मानते हैं कि, ये उनके वश की बात नहीं थी. ये उनके पूर्वजों के बड़े भाग्य शहर के शिव भक्तों के बड़े विश्वास और शिव की उन पर बड़ा आशीर्वाद था कि, वे इस कार्य के निमित्त बन पाए. भगवान भोलेनाथ की 76 फिट ऊंची भव्य प्रतिमा उनकी कृपा से अब शहर ही नहीं बल्कि देश-विदेश में भी विख्यात है.
साउथ की कलाकृति: कहते हैं कि ये शिव की ही कृपा है कि साउथ की कलाकृति से परिपूर्ण उनकी मनोहारी प्रतिमा देश के हृदय प्रदेश के हृदय स्थल पर विराजित हुई है. यहां से शिवत्व के प्रकंपन पूरी दूनिया को ऊर्जा प्रदान कर रहे हैं. बड़े बाबा के दर्शन करने देश-विदेश के श्रद्धालुओं का साल भर तांता लगा रहता है. प्रतिमा की खूबसूरती एवं एकड़ों में फैले गार्डन ने इसे तीर्थाटन के साथ पर्यटन के लिए भी मशहूर कर दिया है. विगत 17 सालों से लोगों की श्रद्धा विश्वास और अस्था का प्रतीक बने कचनार सिटी शिव मंदिर की खासियत है कि यहां भगवान भोलेनाथ के विराट रूप के दर्शन और खूबसूरती देखने के लिए नास्तिक और आस्तिक दोनों तरह के लोग आते हैं.
प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा: मूर्ति का निर्माण 2001 में प्रारंभ हुआ. 2004 में इसे पूर्णता प्रदान हुई. ये दीगर बात है कि, प्राण-प्रतिष्ठा बहुत बाद में हुई. तिवारी बताते हैं कि, साउथ के प्रसिद्ध मूर्तिकार के श्रीधर के निर्देशन में सैकड़ों लोगों ने 3 साल के अथक परिश्रम से भोलेनाथ की प्रतिमा बनाकर तैयार की. इसके बाद 15 फरवरी 2006 को तीन दिवसीय अनुष्ठान में 11 वेदपाठी ब्राम्हणों द्वारा वैदिक मंत्रोच्चार के साथ विधि-विधान से भोलेनाथ की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा का कार्य संपन्न कराया.
इस शिवालय में पहुंचने का रास्ता अति दुर्गम, चढ़ाए जाते हैं मन्नतों के त्रिशूल
शांत-सुरम्य गुफा: भोलेनाथ की प्रतिमा तो साकार है, पर उनका लिंग रूप निराकार दर्शन इस प्रतिमा के अंदर बनी गुफा में ही उपलब्ध है. प्रतिमा के नीचे एक विशेष पूजन कक्ष बनाया गया है. जहां समय-समय पर विशेष अनुष्ठान होते हैं. इसके साथ ही इस शांत-सुरम्य गुफा में 12 ज्योतिर्लिंगों की स्थापना की गई है. सभी ज्योतिर्लिंगों को उनकी असली आकृति व स्वरूप में बनाया गया है. मंदिर के पुजारी पं. सुरेन्द्र दुबे नित्यप्रति शिव पुराण की विधि-विधानुसार पूजन करते हैं. आरती हर सुबह एवं शाम को ठीक 7 बजे होती है. इसके साथ ही प्रत्येक सोमवार की शाम 7 बजे महाआरती की जाती है. शिवरात्रि, बसंत पंचमी, श्रावण सोमवार को विशेष पूजन एवं विशेष महाआरती होती है. जिसमें शामिल होने के लिए हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं.