जबलपुर। शहद सेहत के लिए किसी वरदान से कम नहीं है. इसमें काफी औषधीय गुण मौजूद होते हैं. लेकिन आजकल देश में मिलावटी शहद की भरमार है. शुद्ध शहद सीमित मात्रा में ही मिल पाता है. मिलावटी शहद से बचने के लिए जबलपुर के जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय में वैज्ञानिक मनोज कुमार ने घर पर ही शुद्ध शहद बनाने का तरीका इजाद किया है. उन्होंने घर की छत पर मधुमक्खी पालन का नया तरीका खोजा है. घर पर बना शुद्ध शहद युवाओं के लिए रोजगार का नया अवसर बना सकता है. मनोज कुमार ने बताया कि मात्र कुछ हजार रुपयों की लागत में इस व्यवसाय को शुरु करें. आगे जाकर यह आपको मालामाल कर देगा, क्योंकि शुद्ध शहद की देश में बहुत डिमांड है.
शुद्ध शहद की मांग: कोई अपने डेली रूटीन में हर दिन शहद को खानपान में शामिल करता है, तो कोई तरह-तरह के पकवान बनाने में शहद का इस्तेमाल करता है. यह अपने औषधीय गुणों की वजह से हमेशा ही हर घर की जरूरत रहा है. आयुर्वेदिक औषधियों में शहद के साथ अनुपान करने की बात कही जाती है लेकिन लोगों को शुद्ध शहद मिल नहीं पाता. बाजार से जो शहर खरीदा जाता है उसकी शुद्धता पर भी कई बार सवाल खड़े हो चुके हैं. लोग जरूरत के हिसाब से इसी शहद का इस्तेमाल करते हैं, क्योंकि लोगों के पास शहद को उत्पादित करने का कोई तरीका नहीं है.
शहद का उत्पादन: शहद का उत्पादन प्राकृतिक रूप से जंगलों में होता है लेकिन जो बड़ी मधुमक्खी इसका उत्पादन करती है उसको पाला नहीं जा सकता. वह बेहद खतरनाक और जानलेवा होती है. एक दूसरी मधुमक्खी होती है जो आकार में छोटी होती है और जब तक इसे छेड़ा ना जाए तब तक यह किसी को नुकसान नहीं पहुंचाती. इसी मधुमक्खी को शहद उत्पादन के लिए हनी बी फॉर्म में पाला जाता है. यह एक बहुत ही कठिन प्रक्रिया है, फिलहाल इन्हीं कृत्रिम फॉर्म से शहद की जरूरत पूरी की जा रही है.
मधुमक्खी पालने का आधुनिक तरीका: जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक मनोज कुमार ने मधुमक्खी पालन के नए तरीके पर शोध किया है. इसमें मात्र एक वर्ग फीट के डिब्बे में बहुत ही आसान तरीके से मधुमक्खी पाली जा सकती हैं और इसे आप अपने घर की छत पर रख सकते हैं. आपके घर के आसपास प्राकृतिक वातावरण होना चाहिए. कोई छोटा सा जंगल या बगीचा, या फिर ऐसी जगह जहां फूल रहते हों तो मधुमक्खी आपकी जरूरत के हिसाब से थोड़ा सा शहद बना सकती है, इसको आप बिना प्रोसेस किए इस्तेमाल कर सकते हैं.
मधुमक्खी पालन बन सकता है आय का जरिया: जबलपुर के जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय में मिलेट्स की प्रदर्शनी के दौरान वैज्ञानिक मनोज कुमार ने अपनी इस उपलब्धि के बारे में लोगों को जानकारी दी. मधुमक्खी के छत्ते में भरा हुआ शहद सभी को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है. मनोज कुमार का कहना है कि यदि इस काम को थोड़े से प्रशिक्षण के द्वारा किया जाए तो यह आय का एक जरिया भी बन सकता है. क्योंकि शुद्ध शहद हमेशा ही एक महंगा प्रोडक्ट रहा है और इसकी मांग कभी खत्म नहीं होगी. इसके लिए दमोह में एक ट्रेनिंग सेंटर भी चलाया जा रहा है.