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अतिक्रमणकारियों को मालिकाना हक से जुड़ी याचिका पर हाईकोर्ट का सुनवाई से इंकार - जबलपुर हाईकोर्ट अतिक्रमणकारी याचिका

पूर्व विधायक पारस सकलेजा की तरफ से दायर की गयी याचिका में कहा गया है कि लिमिटेशन एक्ट की धारा 64 व 65 में यह प्रावधान है कि कोई व्यक्ति निजी जमीन में बिना विवाद 12 साल तक तथा सरकारी सम्पत्ति मेें 30 साल तक काबिज रहता है तो सम्पत्ति में उनका आधिपत्य माना जायेगा. लोग अचंभित होते है कि अतिक्रमणकारियों को जमीन का मालिकाना हक कैसे प्राप्त हो सकता है?

High Court refuses to hear the petition
याचिका पर हाईकोर्ट का सुनवाई से इंकार
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Published : Jun 25, 2021, 9:34 AM IST

Updated : Jun 25, 2021, 11:48 AM IST

जबलपुर। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद भी लिमिटेशन एक्ट की धारा 64 तथा 65 में संशोधन नहीं किये जाने के खिलाफ हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गयी. याचिका में कहा गया था कि, लोग चौंकते है कि अतिक्रमणकारियों को कैसे मालिकाना हक दिया जा सकता है.

याचिका पर हाईकोर्ट का सुनवाई से इंकार

हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस मोहम्मद रफीक और जस्टिस वी के शुक्ला की युगलपीठ ने याचिका का निराकरण करते हुए अपने आदेश में कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर विधि आयोग को संशोधन करना है. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आदेश पारित होने के कारण युगलपीठ ने याचिका पर सुनवाई से इंकार कर दिया. युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा कि, ये मामला विधि आयोग के समक्ष लंबित है, इसलिए याचिकाकर्ता उनके समक्ष अपना अभ्यावेदन पेश करें.

याचिका में क्या कहा गया?
पूर्व विधायक पारस सकलेजा की तरफ से दायर की गयी याचिका में कहा गया है कि लिमिटेशन एक्ट की धारा 64 व 65 में यह प्रावधान है कि कोई व्यक्ति निजी जमीन में बिना विवाद 12 साल तक तथा सरकारी सम्पत्ति मेें 30 साल तक काबिज रहता है तो सम्पत्ति में उनका आधिपत्य माना जायेगा. सर्वोच्च न्यायालय ने साल 2011 में हरियाणा सरकार विरूध्द मुकेश कुमार के मामले में आदेश जारी किया था कि, लिमिटेशन एक्ट की धारा 64 तथा 65 में संशोधन किया जाये. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश में लगभग दस साल गुजर गये है परंतु अभी तक लिमिटेशन एक्ट की धारा 64 व 65 में संशोधन करने के संबंध में विधि आयोग ने कोई निर्णय नहीं लिया है. लोग अचंभित होते है कि अतिक्रमणकारियों को जमीन का मालिकाना हक कैसे प्राप्त हो सकता है.

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याचिका में अराजकता की जताई गई चिंता

याचिका में ये भी कहा गया कि ऐसे में अराजकता की स्थिति निर्मित होगी. निजी जमीन में रहने वाले लोगों को 12 साल होने से पहले हटा दिया जाये अन्यथा जो व्यक्ति किसी दूसरे की जमीन पर 12 साल से रहता आ रहा है,वह उस पर अपना कब्जा बतायेगा. यही स्थिति सरकारी जमीन पर भी लागू होगी. सरकारी मकान में 30 साल तक रहने वाले लोग उस पर अपने कब्जे का दावा करेंगे. युगलपीठ ने सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय होने के कारण याचिका पर सुनवाई करने से इंकार करते हुए याचिकाकर्ता को विधि आयोग के समक्ष याचिका देने की स्वतंत्रता प्रदान की है। याकिचाकर्ता की तरफ से अधिवक्ता अजय शंकर रायजादा ने पैरवी की.

जबलपुर। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद भी लिमिटेशन एक्ट की धारा 64 तथा 65 में संशोधन नहीं किये जाने के खिलाफ हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गयी. याचिका में कहा गया था कि, लोग चौंकते है कि अतिक्रमणकारियों को कैसे मालिकाना हक दिया जा सकता है.

याचिका पर हाईकोर्ट का सुनवाई से इंकार

हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस मोहम्मद रफीक और जस्टिस वी के शुक्ला की युगलपीठ ने याचिका का निराकरण करते हुए अपने आदेश में कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर विधि आयोग को संशोधन करना है. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आदेश पारित होने के कारण युगलपीठ ने याचिका पर सुनवाई से इंकार कर दिया. युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा कि, ये मामला विधि आयोग के समक्ष लंबित है, इसलिए याचिकाकर्ता उनके समक्ष अपना अभ्यावेदन पेश करें.

याचिका में क्या कहा गया?
पूर्व विधायक पारस सकलेजा की तरफ से दायर की गयी याचिका में कहा गया है कि लिमिटेशन एक्ट की धारा 64 व 65 में यह प्रावधान है कि कोई व्यक्ति निजी जमीन में बिना विवाद 12 साल तक तथा सरकारी सम्पत्ति मेें 30 साल तक काबिज रहता है तो सम्पत्ति में उनका आधिपत्य माना जायेगा. सर्वोच्च न्यायालय ने साल 2011 में हरियाणा सरकार विरूध्द मुकेश कुमार के मामले में आदेश जारी किया था कि, लिमिटेशन एक्ट की धारा 64 तथा 65 में संशोधन किया जाये. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश में लगभग दस साल गुजर गये है परंतु अभी तक लिमिटेशन एक्ट की धारा 64 व 65 में संशोधन करने के संबंध में विधि आयोग ने कोई निर्णय नहीं लिया है. लोग अचंभित होते है कि अतिक्रमणकारियों को जमीन का मालिकाना हक कैसे प्राप्त हो सकता है.

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याचिका में अराजकता की जताई गई चिंता

याचिका में ये भी कहा गया कि ऐसे में अराजकता की स्थिति निर्मित होगी. निजी जमीन में रहने वाले लोगों को 12 साल होने से पहले हटा दिया जाये अन्यथा जो व्यक्ति किसी दूसरे की जमीन पर 12 साल से रहता आ रहा है,वह उस पर अपना कब्जा बतायेगा. यही स्थिति सरकारी जमीन पर भी लागू होगी. सरकारी मकान में 30 साल तक रहने वाले लोग उस पर अपने कब्जे का दावा करेंगे. युगलपीठ ने सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय होने के कारण याचिका पर सुनवाई करने से इंकार करते हुए याचिकाकर्ता को विधि आयोग के समक्ष याचिका देने की स्वतंत्रता प्रदान की है। याकिचाकर्ता की तरफ से अधिवक्ता अजय शंकर रायजादा ने पैरवी की.

Last Updated : Jun 25, 2021, 11:48 AM IST
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