जबलपुर। अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण मामले पर जबलपुर हाईकोर्ट में आज सुनवाई हुई. सरकार की तरफ से इस मामले में कोई जवाब नहीं दिया गया, जिसकी वजह से एक बार फिर इस मामले की सुनवाई टाल दी गई है.
ओबीसी आरक्षण मामले में सुनवाई
ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के मामले में आज फिर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में सुनवाई हुई, इसमें राज्य सरकार की ओर से तर्क रखा गया कि, मध्यप्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी लगभग 51 प्रतिशत है, इसलिए यह आरक्षण जरूरी है. वहीं राज्य सरकार की ओर से ही एक तर्क ये भी दिया गया है कि, मध्य प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग और एससी और एसटी की कुल मिलाकर आबादी 87 प्रतिशत है, इस पर विपक्ष की ओर से पैरवी कर रहे वकील का कहना है कि, अगर आबादी के हिसाब से आरक्षण दिया जाता है, तो राज्य में 87 प्रतिशत आरक्षण एससी और एसटी का होगा.
उल्लेखनीय है कि प्रदेश सरकार द्वारा ओबीसी आरक्षण 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत किए जाने के संबंध में अशिता दुबे सहित लगभग 2 दर्जन याचिकाएं हाईकोर्ट में दायर की गयी थी. याचिकाकर्ता अशिता दुबे की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र में ओबीसी वर्ग को 14 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने के अंतरिम आदेश हाईकोर्ट ने 19 मार्च 2019 को जारी किए थे. युगलपीठ ने पीएससी द्वारा विभिन्न पदों पर ली गई परीक्षाओं की चयन सूची में भी ओबीसी वर्ग को 14 फीसदी आरक्षण दिए जाने का अंतरिम आदेश पारित किया था.
नहीं हो सका फैसला
आरक्षण का विरोध कर रहे वकील का कहना है की, ये संविधान की मनसा के खिलाफ है और सुप्रीम कोर्ट के इंदिरा साहनी केस के फैसले की अवमानना है, इसलिए 27 प्रतिशत आरक्षण ओबीसी वर्ग को नहीं दिया जा सकता. जिसके बाद ओबीसी आरक्षण मामले में आज भी कोई अंतिम फैसला नहीं हो सका.
जवाब पेश करने लिया चार सप्ताह का समय
ओबीसी आरक्षण के समस्त प्रकरणों की आगामी सुनवाई 23 सितंबर 2020 को होगी. आज की सुनवाई में मध्यप्रदेश शासन की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता तुषार मेहता और महाधिवक्ता पीके कौरव उपस्थित हुए. जिन्होंने मामलों में जवाब पेश करने के लिए चार सप्ताह का समय लिया है.
सरकार ने पेश नहीं किया जवाब
आज की सुनवाई में जस्टिस संजय यादव और बीके श्रीवास्तव की युगल पीठ द्वारा किसी भी प्रकरण में अंतरिम (स्टे) आदेश पारित करने से साफ इनकार कर दिया. आरक्षण से संबंधित लगभग 30 याचिकाएं हैं. जिनमें से केवल 23 याचिकाएं ही लिस्टेड थी. वहीं राज्य सरकार की ओर से सभी मामलों में जवाब पेश नहीं किया गया, इसीलिए अगली तारीख ली गई है.