जबलपुर। आपातकाल को लोकतंत्र का काला अध्याय माना जाता है. आपातकाल के दौरान लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को पूरी तरह से कुचल दिया गया था. आपातकाल में जबलपुर जेल में जबरन डाले गए बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री अजय विश्नोई ने भूली बिसरी यादों को ताजा करते हुए कहा कि उनके साथ जेल में अपराधियों जैसा व्यवहार किया गया था.
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में 25 जून 1975 को आपातकाल की घोषणा की थी. पूर्व मंत्री ने बताया कि आपातकाल की वजह से देश भर में विपक्षी पार्टियों के नेताओं को जबरन जेल में डाल दिया गया था, जबलपुर में भी बड़ी तादाद में गिरफ्तारी हुई थी. इन्हीं में से एक प्रदेश के पूर्व मंत्री अजय विश्नोई, जो उन दिनों जनसंघ के लिए काम किया करते थे. अजय विश्नोई बताते हैं कि उन्हें बिना किसी जानकारी के अचानक पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया था.
जेल जाने के बाद उन्हें इस बात की जानकारी दी गई कि जेल में जिन लोगों को बंद किया गया था, वो सभी के सभी राजनेता, पत्रकार थे. पर उनके साथ जो सलूक हो रहा था, वो अपराधियों जैसा था. अजय विश्नोई ने कहा कि उन्हें रोजाना अलग-अलग बैरक में रखा जाता था. कुछ दिन के लिए जबलपुर से बाहर भी भेजा गया और उसके बाद राजस्थान जेल में डाल दिया गया.
अजय विश्नोई ने बताया कि इंदिरा गांधी खुद समस्या में फंस गई थी और उन्होंने अपनी समस्या को खत्म करने के लिए आपातकाल की घोषणा कर दी थी. लोकतंत्र में विपक्ष और निष्पक्ष आवाज को भी उतनी ही तरजीह दी जाती है, जितनी तरजीह पक्ष में बैठे लोगों को दी जाती है, विरोध करना लोकतंत्र का हिस्सा माना जाता है. यदि विरोध की आवाज खत्म कर दी जाए तो इससे बुरा लोकतंत्र में कुछ नहीं हो सकता. इसलिए आपातकाल को लोकतंत्र का काला अध्याय माना जाता है.