जबलपुर। कोरोना के कारण जहां स्कूल बंद हैं, वहीं बच्चों को ऑनलाइन क्लासेस ही पढ़ाई का एक माध्यम बचा है. ऐसे में बच्चे न तो ठीक ढंग से स्कूल की पढ़ाई कर पा रहे हैं और न ही दूसरी एक्टिविटी में हिस्सा ले पा रहे हैं. जबलपुर के गोरखपुर क्षेत्र में कुछ ऐसी कक्षाएं चल रही हैं, जहां बच्चों को स्किल डेवलपमेंट के साथ-साथ अंग्रेजी और साइंस की पढ़ाई करवाई जा रही है. यह पढ़ाई किसी स्कूल में नहीं, बल्कि साधारण से एक कमरे और आंगन में कराई जा रही है.
- बच्चों को सिखाई जा रही कंप्यूटर कोडिंग
इन कक्षाओं की खास बात यह है कि यहां बच्चों को कम्प्यूटर कोडिंग सिखाई जा रही है. जो स्कूलों में नहीं सिखाई जाती या फिर बड़े स्कूलों या फिर कोचिंग क्लास में कोडिंग सीखने के लिए हजारों रूपए फीस देना पड़ती है. यह बच्चे गरीबी रेखा के नीचे आते हैं. जिनके माता-पिता या तो मजदूरी करते हैं या फिर छोटा-मोटा काम धंधा करके अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं. 21 वीं सदी कम्प्यूटर का युग है, पूरी दुनिया इंटरनेट के माध्यम से आपस में जुड़ी हुई है, हाथ में मोबाइल या घर-ऑफिस में कम्प्यूटर होना अब आम हो चुका है, लेकिन आधुनिक हो रहे भारत में अभी भी बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है, जहां इंटरनेट और कम्प्यूटर सिर्फ सुने या देखे गए हैं. यह वर्ग गरीबी रेखा के अंतर्गत आता है. इस वर्ग के बच्चे या तो पढ़ाई लिखाई छोड़कर अपने माता-पिता के साथ दो वक्त की रोटी कमाने में व्यस्त होते हैं या फिर सरकारी स्कूलों में पढते हैं. जहां पढ़ाई सिर्फ नाम के लिए होती है. जबलपुर की हयूमन शेल्टर नामक एनजीओ इन गरीब बच्चों के लिए नया सवेरा लाने का प्रयास कर रही है.
ग्रीन इंडिया मिशन के तहत छात्रों को कंप्यूटर प्रशिक्षण
- प्रतिदिन लगती है कक्षा
दरअसल यह एनजीओ बच्चों को मुफ्त में कम्प्यूटर कोडिंग यानि लैंग्वेज का प्रशिक्षण दे रहा है. गोरखपुर क्षेत्र में जसप्रीत और एनजीओ के अन्य सदस्य मिलकर बच्चों को कोडिंग की बारीकी से अवगत करा रहे हैं, इसके लिए बकायदा बच्चों की प्रतिदिन कक्षाएं लगाई जाती हैं. जिसमें यह बच्चे पहले बोर्ड पर कोडिंग की कमांड सीखते हैं, फिर लैपटाॅप पर उसका प्रेक्टिकल करते हैं. दो सालों से हयूमन शैल्टर नामक एनजीओ शहर में बस्तियों में जाकर बच्चों को पढ़ाने-लिखाने का काम कर रहा है. लेकिन लाॅकडाउन के दौरान जब सभी स्कूल-कोचिंग सेंटर्स बंद हो गए, तब खाली समय में एनजीओ के सदस्यों को नए-नए आइडिया आए. जिसके बाद उन्होंने बच्चों को कम्प्यूटर और कोडिंग सिखाने की योजना बनाई.
- इंजीनियर बनना चाहते हैं बच्चे
करीब 4 महीने से जसप्रीत के घर में ही ये कक्षाएं लग रही हैं. जिसमें आधा सैकड़ा से ज्यादा बच्चे कोडिंग और इंग्लिश सीख रहे हैं. इस संस्था द्वारा बच्चों को पढ़ाई से संबंधित तमाम आवश्यक प्रशिक्षण सामग्री भी उपलब्ध करवाई जाती है. कोडिंग सीखने वाले बच्चों से जब पूछा गया कि उन्होंने कभी कम्प्यूटर या कोडिंग के विषय में पढ़ने का सोचा था, तो बच्चों ने बताया कि वे इसके बारे में जानते तक नहीं थे. लेकिन अब वे इसे सीखकर खुश है. ये बच्चे इंजीनियर बनना चाहते हैं और हयूमन शैल्टर इन बच्चों की राह आसान बना रहा है. इन बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षक कोई स्कूल या काॅलेज के प्रोफेसर नहीं हैं, बल्कि इस एनजीओ के सदस्य हैं. जो खुद शिक्षित हैं और बच्चों को मुफ्त में कोडिंग जैसी मंहगी शिक्षा प्रदान कर रहे हैं. एनजीओ के सदस्यों का कहना है कि बच्चों को बेहतर शिक्षा देना और स्किल डेवलपमेंट उनका उद्देश्य है, ताकि ये बच्चे अच्छी शिक्षा हासिल कर एक मुकाम पर पहुंच सकें. इसके अलावा बच्चों को योग और अन्य स्पोर्ट्स की एक्टिविटी का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है, जिससे इनका संपूर्ण विकास हो सके.