जबलपुर। शादी के लिए इस्लाम धर्म अपनाने के तर्क को हाई कोर्ट ने दरकिनार करते हुए अलग-अलग समुदाय के लड़की-लड़के को साथ रहने का आदेश दिया है. हाई कोर्ट जस्टिस नंदिता दुबे की एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि दोनों बालिग हैं और संविधान ने उन्हें स्वेच्छा से जीने का अधिकार प्रदान किया है. ऐसी कोई पॉलिसी नहीं है, जिससे बालिग लड़के व लड़की को शादी करने या लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने से रोका जा सके.
पति ने HC में लगाई बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका
गोरखपुर थाना क्षेत्र निवासी गुलजार खान की तरफ से दायर की गयी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में कहा गया था कि उसने एक हिन्दू लड़की से शादी की थी, लड़की के परिजन उसे जबरजस्ती अपने साथ बनारस ले गये हैं और उसे बंधक बनाये हुए हैं. याचिका की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने उसे पेश करने का आदेश जारी किया था.
सरकारी वकील की दलील कोर्ट ने किया खारिज
याचिका पर शुक्रवार को हुई सुनवाई के लड़की वीडियो कॉफ्रेंसिंग के माध्यम से एकलपीठ के समक्ष उपस्थित हुई थी, लड़की ने बताया कि वह 19 वर्ष की है और याचिकाकर्ता से शादी करने की स्वेच्छा से इस्लाम धर्म (Adults have right to marry or live-in-relationship) अपनाया है और वह याचिकाकर्ता के साथ वैवाहिक जीवन गुजारना चाहती है. शासन की तरफ से विरोध करते हुए कहा गया कि सिर्फ शादी के लिए धर्मांतरण किया गया है.
पत्नी-पति को साथ रहने का कोर्ट ने दिया आदेश
मध्यप्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता विधेयक-2021 (फ्रीडम ऑफ रिलीजन) की धारा 3 व 6 के तहत ऐसी शादी अमान्य है. एकलपीठ ने दोनों के बालिग होने का हवाला देते हुए उक्त आदेश जारी किया है. एकलपीठ ने लड़की को नारी निकेतन भेजने के आवेदन को खारिज करते हुए उसकी स्वेच्छा अनुसार याचिकाकर्ता के साथ जाने का आदेश दिया है.