इंदौर। कोरोना कर्फ्यू में प्रकृति का शुद्धिकरण देखने को मिला है. सरस्वती नदी और कान्हा नदी में 55 साल बाद मछलियां तैरती नजर आई हैं. नाला टैपिंग के पहले तक नदी के पानी में ऑक्सीजन का नामोनिशान नहीं था, जिसके कारण किसी तरह के जलीय जीव पैदा ही नहीं हो पाते थे.
मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वैज्ञानिक डॉ. दिलीप वाघेला के अनुसार, 3 दिन पहले सैंपल लिए थे. नदी के पानी में 4.3 मिलीग्राम प्रति लीटर ऑक्सीजन पाई गई है, जो बहुत सुखद है. वहीं, पर्यावरण विशेषज्ञ ओपी जोशी कहते हैं कि 1965-66 के समय तक लालबाग के पुल के पास नदी में मछलियां दिखाई देती थीं. नाला टैपिंग के पहले नदी में सिर्फ गंदगी नजर आती थी. 10 वर्षों से अधिक समय के सामूहिक प्रयासों के बाद नदी का यह रूप देखने को मिला है. विभिन्न सामाजिक संगठनों ने यहां पसीना बहाया है.
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पानी में इस तरह हुए परिवर्तन
सस्पेंडेड सॉलिड- वे कण जिनसे पानी गंदा होता है. यह कण पानी में कम हुए है.
ऑक्सीजन- पानी में 4.3 मिग्रा/ लीटर ऑक्सीजन है. जिससे मछली पानी में पनप सकती हैं.
बीओडी- बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड की मात्रा 3 मिग्रा/लीटर से कम तो पानी नहाने योग्य.
सीओडी- केमिकल ऑक्सीजन डिमांड की मात्रा 10 से 30 मिग्रा/लीटर होती है. प्रदूषण बढ़ने से यह मात्रा बढ़ जाती है.