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इंदौर के इस राधा-कृष्ण मंदिर में नहीं है मूर्ति, ग्रंथों की होती है पूजा

इंदौर शहर जहां स्वच्छता और एजुकेशन हब के लिए मशहूर है वही इस शहर का धार्मिक पहलू भी काफी प्रसिद्ध है. एक ओर जहां इंदौर का खजराना गणेश मंदिर अपनी ख्याति के लिए मशहूर है वहीं राजवाड़ा में गोराकुंड इलाके में बना राधा कृष्ण का मंदिर भी अपनी अलग मान्यता के लिए जाना जाता हैं.

इंदौर के इस राधा-कृष्ण मंदिर में नहीं है मूर्ति, ग्रंथों की होती है पूजा
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Published : Aug 23, 2019, 12:03 AM IST


इंदौर। शहर का राधा कृष्ण का एक ऐसा मंदिर है, जहां पर प्रार्थना करने के लिए बंसी मुकुट वस्त्र और आभूषण तो हैं लेकिन मूर्ति नहीं है. बावजूद इसके वहां पर श्रद्धालु बड़ी संख्या में पूजा अर्चना के लिए आते हैं. करीब 100 साल पहले होलकर शासक यशवंत राव होल्कर ने इस मंदिर को बनवाया था. इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां मूर्ति की जगह पर ग्रंथों की पूजा होती है.

इंदौर के इस राधा-कृष्ण मंदिर में नहीं है मूर्ति, ग्रंथों की होती है पूजा

राधा-कृष्ण मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है. यहां पर स्थापित ग्रंथों की पूजा पूरे विधि-विधान से होती है. 100 साल पुराने इस मंदिर में 400 साल पुराने ग्रंथ रखे हुए हैं. प्रणामी संप्रदाय के गुरु प्राण नाथ ने इन ग्रंथों का अध्ययन किया था इसके साथ ही उन्होंने औरंगजेब के शासन में इस्लाम को जानने के लिए कुरान शरीफ का भी अध्ययन किया जिसमें उन्होंने पाया कि हिंदू और मुस्लिम धर्म के धार्मिक ग्रंथों में जो लिखा है भले ही उसकी भाषा और शब्द अलग हो लेकिन उनमें भाव और उसमें मौजूद सीख एक ही है.

प्रणामी संप्रदाय के राधा-कृष्ण का यह मंदिर सांप्रदायिक सौहार्द का संदेश देता है. जहां गीता के श्लोक और कुरान की आयतें लिखे ग्रंथों को राधा-कृष्ण का स्वरूप देकर पूजा जाता है. राधा कृष्ण के इस अनूठे मंदिर में जन्माष्टमी को लेकर भी विशेष आयोजन किए जाते हैं जिसमें बड़ी संख्या में भक्त श्रद्धा से शामिल होते हैं


इंदौर। शहर का राधा कृष्ण का एक ऐसा मंदिर है, जहां पर प्रार्थना करने के लिए बंसी मुकुट वस्त्र और आभूषण तो हैं लेकिन मूर्ति नहीं है. बावजूद इसके वहां पर श्रद्धालु बड़ी संख्या में पूजा अर्चना के लिए आते हैं. करीब 100 साल पहले होलकर शासक यशवंत राव होल्कर ने इस मंदिर को बनवाया था. इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां मूर्ति की जगह पर ग्रंथों की पूजा होती है.

इंदौर के इस राधा-कृष्ण मंदिर में नहीं है मूर्ति, ग्रंथों की होती है पूजा

राधा-कृष्ण मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है. यहां पर स्थापित ग्रंथों की पूजा पूरे विधि-विधान से होती है. 100 साल पुराने इस मंदिर में 400 साल पुराने ग्रंथ रखे हुए हैं. प्रणामी संप्रदाय के गुरु प्राण नाथ ने इन ग्रंथों का अध्ययन किया था इसके साथ ही उन्होंने औरंगजेब के शासन में इस्लाम को जानने के लिए कुरान शरीफ का भी अध्ययन किया जिसमें उन्होंने पाया कि हिंदू और मुस्लिम धर्म के धार्मिक ग्रंथों में जो लिखा है भले ही उसकी भाषा और शब्द अलग हो लेकिन उनमें भाव और उसमें मौजूद सीख एक ही है.

प्रणामी संप्रदाय के राधा-कृष्ण का यह मंदिर सांप्रदायिक सौहार्द का संदेश देता है. जहां गीता के श्लोक और कुरान की आयतें लिखे ग्रंथों को राधा-कृष्ण का स्वरूप देकर पूजा जाता है. राधा कृष्ण के इस अनूठे मंदिर में जन्माष्टमी को लेकर भी विशेष आयोजन किए जाते हैं जिसमें बड़ी संख्या में भक्त श्रद्धा से शामिल होते हैं

Intro:इंदौर में राधा कृष्ण का एक ऐसा मंदिर है जहां पर बंसी मुकुट वस्त्र और आभूषण तो हैं लेकिन मूर्ति ही नहीं है उसके बावजूद वहां पर श्रद्धालु बड़ी संख्या में पूजा अर्चना के लिए लगातार आते हैं यहां पूजा होती है धर्म के बहाव की जहां गीता के श्लोक और कुरान की आयतों से ज्ञान को पूजा जाता है


Body:इंदौर शहर जहां स्वच्छता और एजुकेशन हब के लिए मशहूर है वही इस शहर का धार्मिक पहलू भी काफी प्रसिद्ध है एक ओर जहां इंदौर का खजराना गणेश मंदिर अपनी ख्याति के लिए मशहूर है वहीं शहर के मध्य क्षेत्र राजवाड़ा में गोराकुंड इलाके में बना राधा कृष्ण का मंदिर भी अपनी मान्यता के लिए अनूठा है अनूठा इसलिए है क्योंकि होलकर राजवंश के शासनकाल में करीब 100 साल पहले बने इस मंदिर में कोई भी मिट्टी पत्थर या धातु की मूर्ति नहीं है लेकिन श्रद्धालु फिर भी मन में आस्था लिए इस मंदिर में आते हैं और पूजा-अर्चना और भोग भी लगाते हैं यह सब किसी मूर्ति के लिए नहीं बल्कि उसके स्थान पर स्थापित ग्रंथों के लिए किया जाता है 100 साल पुराने इस मंदिर में 400 साल पुराने ग्रंथों की पूजा अर्चना की जाती है प्रणामी संप्रदाय के गुरु प्राण नाथ ने इन ग्रंथों का अध्ययन किया था इसके साथ ही उन्होंने औरंगजेब के शासन में इस्लाम को जानने के लिए कुरान शरीफ का भी अध्ययन किया जिसमें उन्होंने पाया कि हिंदू और मुस्लिम धर्म के धार्मिक ग्रंथों में जो लिखा है भले ही उसकी भाषा और शब्द अलग हो लेकिन उनमें भाव और उसमें मौजूद सीख एक ही है जिसके बाद उन्होंने जाना कि मूर्ति की तरह ग्रंथों का भी काफी महत्व है जिसकी वजह से इस मंदिर में मूर्ति के स्थान पर ग्रंथों की पूजा की जाती है इंदौर के एकमात्र ग्रंथों के इस मंदिर में ग्रंथों को चांदी के सिंहासन पर विराजित किया गया है और इस पर भगवान राधा कृष्ण के स्वरूप में ही बंसी मुकुट और आभूषणों से प्रतिकृति बनाई गई है प्रणामी संप्रदाय का राधा-कृष्ण का यह मंदिर सांप्रदायिक सौहार्द का संदेश देता है जहां गीता के श्लोक और कुरान की आयतें लिखे ग्रंथों को राधा-कृष्ण का स्वरूप देकर पूजा जाता है

करीब 100 साल पहले होलकर शासन महाराज जी यशवंत राव होल्कर के शासन काल में इस मंदिर को बनाया गया था इस मंदिर में स्वर्ण जड़ित मनमोहक नक्काशी भी की गई है मंदिर के राशियों के अनुसार गांधीजी ने भी अपनी जीवनी में बताया है कि वह अपनी मां के साथ प्रणामी संप्रदाय के मंदिर जाया करते थे जहां से उन्हें ईश्वर अल्लाह तेरो नाम की सीख मिली थी इंदौर का राधा कृष्ण मंदिर भी कुछ इसी तरह की सीख देता है

बाईट - प्रशांत शर्मा, पुजारी


Conclusion:राधा कृष्ण के इस अनूठे मंदिर में जन्माष्टमी को लेकर भी विशेष आयोजन किए जाते हैं जिसमें बड़ी संख्या में भक्त श्रद्धा से शामिल होते हैं
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