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डाक टिकटों में सहेजी जाएगी प्राचीन हस्तकला, जानें क्यों खास है नीमच की नांदना प्रिंटिंग आर्ट - डाक टिकट में नीमच नांदना कला छपाई

नीमच जिले की प्राचीन ठप्पा छपाई हस्तकला को सहेजने के लिए डाक विभाग ने एक विशेष डाक टिकट जारी किया है. अत्यधिक मेहनत लगने के कारण विलुप्तप्राय नांदना प्रिंटिंग आर्ट ठप्पा छपाई के कारीगर अब इसे छोड़ रहे हैं. जानें क्या है खास

neemuch nandana printing art
नीमच की नांदना प्रिंटिंग आर्ट
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Published : Apr 5, 2023, 10:56 PM IST

नीमच की नांदना प्रिंटिंग आर्ट

इंदौर। मध्यप्रदेश में नीमच जिले की ठप्पा छपाई की प्राचीन हस्तकला अब डाक टिकटों में सहेजी जाएगी. दरअसल डाक विभाग के इंदौर परिमंडल ने पहली बार नांदना की प्राचीन हस्तकला पर डाक टिकट का विशेष आवरण जारी किया है. यह पहला मौका है जब नीमच जिले के तारापुर गांव की यह दुर्लभ कपड़ों की पेंटिंग आर्ट अब डाक टिकटों में नजर आएगी. गौरतलब है सूती कपड़े पर होने वाली यह पारंपरिक छापा कला अब विलुप्त होने की कगार पर है जिसे सहेजने के प्रयास किए जा रहे हैं.

इसलिए है खास: मध्य प्रदेश के नीमच जिले के तारापुर गांव में पारंपरिक कपड़ों पर होने वाली प्राचीन मृदारोधी ठप्पा छपाई में अत्यधिक मेहनत लगने के कारण और इस प्रकार की पारंपरिक छापा कला का मेहनत के मुताबिक बाजार में मूल्य नहीं मिल पाने के कारण अब इसके कारीगर इस कला को छोड़ रहे हैं. हालांकि अभी भी नीमच जिले में कुछ कारीगर इसकी छपाई कर रहे हैं. शताब्दियों पुरानी ठंप्पा प्रिंटिंग में प्राकृतिक रूप से तैयार किए गए रंगों से शुद्ध सूती कपड़े पर सांचे से छपाई एक के बाद एक की जाती है. इसमें छपाई की डिजाइन के बतौर चंपाकली (चंपा), आंबा (आम), मिर्ची जालम बूटा (फलदार पेड़) और ढोला-मारू कहे जाने वाले पात्रों के डिजाइन चर्चित रहे है.

हालांकि अभी भी तारापुर गांव के आसपास त्यौहार के अवसर पर आदिवासी समाज की एवं अन्य समाज की महिलाएं इस नांदना कला से रंगे गए कपड़े पहनती हैं जिन्हें अंचल में पारंपरिक पहनावे के रूप में महत्वपूर्ण माना जाता है. जिसकी झलक अब जहां विलुप्त प्राय हो चुकी है. आदिवासी पहनावे की इस विरासत और दुर्लभ हस्तकला को बचाए रखने के लिए डाक विभाग ने अब फिलाटेली के तहत पोस्टल आवरण जारी किया है.

डाक लिफाफा: नांदना मध्यप्रदेश के तारापुर गांव की नीमच की एक मृदा रोधी ठप्पा छपाई की प्राचीन कला है और अपने मूल रूप में प्रचलित बहुत कम हस्तकला में एक है. भील जाति की महिलाएं इसे पारंपरिक वस्त्रों के रूप में पहनती आई हैं. नांदना छपाई का विशुद्ध देहाती रूप और प्राचीन रूपांकन इसको अन्य छपाई से अलग करता है. इसमें शताब्दियों पुरानी ठप्पा बनावट तो उसे प्राकृतिक रूप से व्युत्पन्न प्रकृति प्रेरित रंगों से शुद्ध सूती वस्त्रों का उपयोग किया जाता था. नांदना छपाई की प्रक्रिया में बहुत समय लगता है परत दर परत छपाई के पारंपरिक तरीकों में गहन श्रम सनलिप्त है जिसे सहेजने की जरूरत है.

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फिलैटली क्या है: फिलैटली के माध्यम से डाक विभाग द्वारा राष्ट्रीय धरोहर एवं घटनाओं को स्मरण करने मनाने एवं प्रोत्साहित करने का तरीका है. यह डाक प्रशासन के द्वारा देश की संप्रभुता की अभिव्यक्ति भी मानी जाती है. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही डाक टिकटों का प्रयोग विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र के अलावा विभिन्न विषयों पर हुआ है. वर्तमान में इंदौर सर्किल में तरह-तरह की डाक टिकटें जारी की गई हैं. जिसमें इंदौर की धरोहर के अलावा व्यक्ति विशेष स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वस्तु अथवा परंपरा आदि को फिलैटली में स्थान दिया गया है. जैसे डाक विभाग द्वारा सहेज कर भी रखा जाता है. इसके लिए अलग से डाक टिकटों के काउंटर भी होते हैं जिसमें संबंधित डाक टिकटों की खरीदी एवं उनकी सूची देखने का भी प्रावधान है.

नीमच की नांदना प्रिंटिंग आर्ट

इंदौर। मध्यप्रदेश में नीमच जिले की ठप्पा छपाई की प्राचीन हस्तकला अब डाक टिकटों में सहेजी जाएगी. दरअसल डाक विभाग के इंदौर परिमंडल ने पहली बार नांदना की प्राचीन हस्तकला पर डाक टिकट का विशेष आवरण जारी किया है. यह पहला मौका है जब नीमच जिले के तारापुर गांव की यह दुर्लभ कपड़ों की पेंटिंग आर्ट अब डाक टिकटों में नजर आएगी. गौरतलब है सूती कपड़े पर होने वाली यह पारंपरिक छापा कला अब विलुप्त होने की कगार पर है जिसे सहेजने के प्रयास किए जा रहे हैं.

इसलिए है खास: मध्य प्रदेश के नीमच जिले के तारापुर गांव में पारंपरिक कपड़ों पर होने वाली प्राचीन मृदारोधी ठप्पा छपाई में अत्यधिक मेहनत लगने के कारण और इस प्रकार की पारंपरिक छापा कला का मेहनत के मुताबिक बाजार में मूल्य नहीं मिल पाने के कारण अब इसके कारीगर इस कला को छोड़ रहे हैं. हालांकि अभी भी नीमच जिले में कुछ कारीगर इसकी छपाई कर रहे हैं. शताब्दियों पुरानी ठंप्पा प्रिंटिंग में प्राकृतिक रूप से तैयार किए गए रंगों से शुद्ध सूती कपड़े पर सांचे से छपाई एक के बाद एक की जाती है. इसमें छपाई की डिजाइन के बतौर चंपाकली (चंपा), आंबा (आम), मिर्ची जालम बूटा (फलदार पेड़) और ढोला-मारू कहे जाने वाले पात्रों के डिजाइन चर्चित रहे है.

हालांकि अभी भी तारापुर गांव के आसपास त्यौहार के अवसर पर आदिवासी समाज की एवं अन्य समाज की महिलाएं इस नांदना कला से रंगे गए कपड़े पहनती हैं जिन्हें अंचल में पारंपरिक पहनावे के रूप में महत्वपूर्ण माना जाता है. जिसकी झलक अब जहां विलुप्त प्राय हो चुकी है. आदिवासी पहनावे की इस विरासत और दुर्लभ हस्तकला को बचाए रखने के लिए डाक विभाग ने अब फिलाटेली के तहत पोस्टल आवरण जारी किया है.

डाक लिफाफा: नांदना मध्यप्रदेश के तारापुर गांव की नीमच की एक मृदा रोधी ठप्पा छपाई की प्राचीन कला है और अपने मूल रूप में प्रचलित बहुत कम हस्तकला में एक है. भील जाति की महिलाएं इसे पारंपरिक वस्त्रों के रूप में पहनती आई हैं. नांदना छपाई का विशुद्ध देहाती रूप और प्राचीन रूपांकन इसको अन्य छपाई से अलग करता है. इसमें शताब्दियों पुरानी ठप्पा बनावट तो उसे प्राकृतिक रूप से व्युत्पन्न प्रकृति प्रेरित रंगों से शुद्ध सूती वस्त्रों का उपयोग किया जाता था. नांदना छपाई की प्रक्रिया में बहुत समय लगता है परत दर परत छपाई के पारंपरिक तरीकों में गहन श्रम सनलिप्त है जिसे सहेजने की जरूरत है.

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