इंदौर। बैठक के दौरान प्रमुख वैज्ञानिकों, उद्योगपतियों, पेशेवरों और नियामक प्रतिनिधियों को भारत में मोनोक्लोनल एंटीबॉडी के जैव-निर्माण के लिए एक रणनीतिक दिशा को परिभाषित करने हेतु अपनी खास जानकारी साझा करने का एक प्लेटफ़ॉर्म प्रदान किया गया. विशेष एंटीजन के लिए मोनोक्लोनल एंटीबॉडी की विशिष्टता और चयनात्मकता के कारण इनका विभिन्न प्रकार की बीमारियों के उपचार और निदान में व्यापक अनुप्रयोग होता है.
उद्योगों को बढ़ावा देने पर चर्चा : बैठक के दौरान विशेषज्ञ सदस्यों और प्रतिभागियों ने वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त हासिल करने के लिए नैदानिक अनुसंधान और बायोफार्मास्युटिकल उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए भारत में मोनोक्लोनल एंटीबॉडी बायोमैन्युफैक्चरिंग सुविधाओं की स्थापना के महत्व कमी और चुनौतियों पर विचार-विमर्श किया. यह बैठक जानकारी के आदान-प्रदान सहयोग और सटीक जैव-चिकित्सीय के क्षेत्र में जैव-विनिर्माण की उन्नति के लिए एक रणनीतिक पाठ्यक्रम तैयार करने के लिए एक महत्वपूर्ण प्लेटफ़ॉर्म साबित हुई.
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मोनोक्लोनल एंटीबॉडी : बैठक में बायोसिमिलर और मोनोक्लोनल एंटीबॉडी के क्षेत्र में सटीक निर्माण पर चर्चा हुई. आईआईटी इंदौर के निदेशक प्रोफेसर सुहास जोशी और बायोसाइंसेज एवं बायोमेडिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर अविनाश सोनावणे भी बैठक में उपस्थित थे. उन्होंने बायोसिमिलर और मोनोक्लोनल एंटीबॉडी के क्षेत्र में सटीक निर्माण के महत्व पर जोर दिया. साथ ही भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव डॉ. राजेश गोखले ने भारत में विशेष रूप से मोनोक्लोनल एंटीबॉडी के लिए जैव-विनिर्माण सुविधाओं के एक क्षेत्र विशिष्ट सुदृढ़ नेटवर्क के निर्माण के लिए अपना दृष्टिकोण साझा किया.