इंदौर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने वर्क प्लेस पर सेक्सुअल हैरेसमेंट के मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. कोर्ट ने मेदांता हॉस्पिटल प्रबंधन को आदेश दिया है कि वो पीड़िता को 25 लाख रुपए मुआवजा दे, साथ ही उसका पीएफ भी दिया जाए. अस्पताल प्रबंधन को ये राशि 7 दिन के अंदर ही पीड़िता को देने का आदेश दिया है. उसके बाद 9 प्रतिशत की दर से ब्याज लगेगा.
ये है मामला
मामला 2 वर्ष पहले का है. पीड़िता अस्पताल के मैनेजमेंट विभाग में कार्यरत थी. जिसने विभाग के ही दूसरे सहयोगी पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. जिस पर अस्पताल प्रबंधन ने पीड़िता की सुनवाई करने के बजाए उसे नौकरी से निकाल दिया. पीड़िता ने न्याय के लिए महिला आयोग का दरवाजा खटखटाया था.
महिला आयोग ने स्थानीय परिवार कमेटी गठित कर मामले की जांच की. कमेटी ने जांच कर 18 अगस्त 2017 को अपनी रिपोर्ट दी. रिपोर्ट के आधार पर माना गया कि महिला के साथ सेक्सुअल हैरेसमेंट हुआ है. साथ ही अस्पताल प्रबंधन ने विशाखा गाइडलाइन का भी उल्लंघन किया है. जिस पर कमेटी ने 20 सितंबर 2017 को अस्पताल प्रबंधन को 50 हजार का जुर्माना अदा करने का आदेश दिया.
हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ का फैसला
अस्पताल प्रबंधन ने स्थानीय परिवार कमेटी के आदेश के खिलाफ इंदौर खंडपीठ में याचिका दायर की. जिस पर खंडपीठ ने फैसला देते हुए कहा कि महिला के साथ न केवल सेक्सुअल हैरसमेंट हुआ, बल्कि इस वजह से महिला को मानसिक-सामाजिक क्षति भी पहुंची है. जिसके चलते अस्पताल प्रबंधन महिला को मुआवजे के तौर पर 25 लाख रुपये के साथ नौकरी के दौरान बची हुई राशि का भी जल्द भुगतान करे. इसके अलावा अस्पताल प्रबंधन को महिला की शिकायत के बावजूद विशाखा गाइडलाइन के तहत कमेटी नहीं बनाने पर फटकार भी लगाई है.
पीड़िता के वकील विवेक पटवा ने बताया कि खंडपीठ में 1 अगस्त को मामले की सुनवाई पूरी कर ली गई थी. जिसके बाद आज कोर्ट का फैसला आया है. जिसमें अस्पताल प्रबंधन दोषी करार हुआ. उन्होंने बताया कि सेक्सुअल हैरसमेंट एट वर्क प्लेस एक्ट 2013 के मामले में अब तक का ये सबसे बड़ा और ऐतिहासिक फैसला है.