इंदौर। मध्य प्रदेश की पुलिस भी अजब और गजब है. जिन आरोपियों पर कार्रवाई उन्हें जेल पहुंचाना चाहिए, उनके खिलाफ प्रशासन कोई सख्त कार्रवाई नहीं करता है और जहां कोई मामला नहीं होता है, वहां केस बनाकर निर्दोषों को सजा दिला देते हैं. ऐसा ही एक मामला सामने आया है, जहां एमपी पुलिस निर्दोष लोगों पर भी गंभीर धाराओं के फर्जी केस लगा रही है. नतीजतन उन्हें कई साल तक जेल की सजा भुगतना पड़ी. जब यह मामला उजागर हुआ था इंदौर हाई कोर्ट ने मध्यप्रदेश शासन पर 40 लाख का जुर्माना लगाया है. यह पहला मौका है जब कोर्ट को तमिलनाडु के दो ट्रक ड्राइवरों को फर्जी केस के मामले में रिहा किया है.
क्या है मामला: दरअसल पूरा मामला बड़वानी जिले के नांगलवाड़ी का है, जहां 2 नवंबर 2019 को पुलिस ने तमिलनाडु से आ रहे ट्रक को रोककर उसकी तलाशी ली थी. ट्रक में 1600 बॉक्स अंग्रेजी शराब के थे. जिसके पेपर क्लीनर और ड्राइवर ने पुलिस को चेक कराएं. पुलिस को शक था कि जो पेपर क्लीनर और ड्राइवर ने बताए हैं, वह फर्जी हैं. तमिलनाडु के दोनों ड्राइवरों को हिंदी और अंग्रेजी बोलना नहीं आती थी. उनके पक्ष में किसी ने भी कोई पहल नहीं की, लिहाजा बड़वानी की नांगलवाड़ी पुलिस ने आबकारी एक्ट के साथ 420 और 468 के तहत एफआईआर दर्ज कर मामले की जांच शुरू कर दी थी. गंभीर धाराओं में प्रकरण दर्ज होने के बाद पुलिस ने ड्राइवर रमेश पुलमर और क्लीनर सकूल हामिद को जेल भेज दिया था. मजबूरन दोनों को 1 साल 8 महीने जेल में रहना पड़ा.
हाईकोर्ट ने MP शासन पर लगाया 40 लाख का जुर्माना: इस मामले में पीड़ित पक्ष की ओर से हाईकोर्ट एडवोकेट ऋषि तिवारी ने एफआईआर निरस्त करने के लिए इंदौर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. याचिका की सुनवाई में पाया गया कि ड्राइवर और क्लीनर के पास जो दस्तावेज है, वह ओरिजिनल दस्तावेज से जो पूरी तरह सही पाए गए थे, लेकिन पुलिस ने दस्तावेजों की ओर ध्यान न देकर मनमानी करते हुए दोनों को गिरफ्तार कर लिया था. इस पूरे मामले में इंदौर हाईकोर्ट ने केस को फर्जी मानकर सरकार पर 40 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है. हाई कोर्ट जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की खंडपीठ ने 2 महीने के अंदर ड्राइवर और क्लीनर को पैसे देने के आदेश भी जारी किए हैं.
2 नवंबर 2019 को दोनों को भेजा था जेल: दरअसल मध्यप्रदेश के नांगलवाड़ी में सब इंस्पेक्टर मजहर खान ने चेकिंग के दौरान केरल से आ रहे ट्रक को रोककर दस्तावेज मांगे थे. दस्तावेज पर शक होने पर सब इंस्पेक्टर ने ट्रक को जब्त करवा दिया था. जिसके बाद पुलिस ने जांच पड़ताल के बाद ड्राइवर और क्लीनर के खिलाफ फर्जी दस्तावेज के मामले में एफआईआर दर्ज कर क्लीनर ड्राइवर को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. 1 साल 8 महीने के बाद 12 जुलाई 2021 को ड्राइवर और क्लीनर को जमानत मिली थी.
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चंडीगढ़ प्रशासन ने पेपर को पाया सही: मामला हाईकोर्ट में जाने के बाद अधिवक्ता ऋषि तिवारी ने चंडीगढ़ के आबकारी विभाग से दस्तावेज के सिलसिले में पूरी जानकारी ली थी. जिसमें चंडीगढ़ के आबकारी विभाग ने दस्तावेज की तफ्तीश की और स्पष्ट किया कि दस्तावेज बिल्कुल सही हैं. ट्रक के अंदर जो दस्तावेज थे, उनमे स्पष्ट लिखा हुआ था कि ट्रक केरल पहुंचने के बाद ही ओपन किया जाएगा. रास्ते में इसे नहीं खोला जाए. चंडीगढ़ प्रशासन ने जवाब दिया कि उन्होंने जो पेपर दिए थे, वह बिल्कुल सही और ओरिजिनल दस्तावेज थे. इंदौर पुलिस ने फर्जी केस दर्ज कर क्लीनर ड्राइवर को जेल भेज दिया था. हाईकोर्ट ने दस्तावेज परीक्षण के बाद पाया कि पुलिस ने अपनी सनक के चलते फर्जी केस बनाया था. बेमतलब दोनों को 1 साल 8 महीने जेल में रहना पड़ा. इस वजह से सरकार पर भारी कास्ट लगाई जाती है. जो ड्राइवर और क्लीनर को मिलेगी. केस बनाने वाले पुलिस अफसरों ने भी ट्रायल में माना कि उन्होंने शक के आधार पर ट्रक को रोककर केस बना दिया था.
इंदौर हाई कोर्ट ने गिनवाई पुलिस की गलतियां: दस्तावेज परीक्षण के दौरान इंदौर हाईकोर्ट ने माना कि दस्तावेज के साथ ट्रक लेकर जा रहे ड्राइवरों क्लीनर को पुलिस ने जबरन रोका और सनक के चलते धोखाधड़ी और फर्जी दस्तावेज तैयार करने का केस बना दिया. पुलिस की नीयत पूरी तरीके से गलत थी. ट्रक को खुलवाना भी अनुचित था.