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इंदौर ने सीखा कोविड का कड़वा सबक, तीन महीने पहले जमा की गुठलियां अब बने पौधे, लोगों में मुफ्त बांटे

कोविडकाल में हुई ऑक्सीजन की कमी और उससे बने हालातों से सबक ले चुके इंदौर के पर्यावरण प्रेमी इन पौधों को लेने उमड़ पड़े. संस्था द्वारा मुफ्त में बांटे जा रहे इन पौधों में आम ही नहीं सीताफल, चीकू, संतरा , मौसमी जैसे फलदार पौधों के अलावा नीम, पीपल, बरगद , तुलसी जैसे ज्यादा मात्रा में ऑक्सीजन देने वाले पौधे भी तैयार किए गए हैं.

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इंदौर ने सीखा कोविड का कड़वा सबक
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Published : Aug 2, 2021, 9:07 PM IST

इंदौर । आम के आम गुठलियों के दाम, यह कहावत तो आपने सुनी ही होगी लेकिन अब इस कहावत को सच होते हुए भी देख लीजिए. इस कहावत को सच कर दिखाया है इंदौर शहर ने. यहां एक संस्था ने लोगों द्वारा खाकर फेंक दिए जाने वाले आम की गुठलियां जमा कीं और तीन महीने बाद उन गुठलियों से निकले पौधे लोगों में बांट दिए गए. कोविडकाल में हुई ऑक्सीजन की कमी और उससे बने हालातों से सबक ले चुके इंदौर के पर्यावरण प्रेमी इन पौधों को लेने उमड़ पड़े. संस्था द्वारा मुफ्त में बांटे जा रहे इन पौधों में आम ही नहीं सीताफल, चीकू, संतरा , मौसमी जैसे फलदार पौधों के अलावा नीम, पीपल, बरगद , तुलसी जैसे ज्यादा मात्रा में ऑक्सीजन देने वाले पौधे भी तैयार किए गए हैं.

इंदौर ने सीखा कोविड का कड़वा सबक

निशुल्क बांटे जा रहे हैं 20 हजार पौधे

इंदौर के एक सामाजिक संस्था करुणा सागर संस्था की इस पहल को इंदौरवासियों ने हाथों, हाथ लिया और संस्था के सदस्यों को खाकर फेंक दिए जाने वाले फलों की गुठलियां इकट्ठा करके सौंप दी. तीन महीने पहले चले इस कैंपेन का नतीजा आज पौधों के रूप में सामने है. इन पौधों को लोगों को मुफ्त में दिया जा रहा है ताकि शहर में ज्यादा से ज्यादा प्लांटेशन हो. जिस जूस की दुकान के सामने रखकर इन पौधों को लोगों को बांटा जा रहा है उसमें इस ज्यूस दुकान का भी काफी महत्तव है. गर्मियों में इस ज्यूस की दुकान पर लोगों को जूस पिलाने के बाद उन फलों की गुठलियों को बड़ी मात्रा में जमा किया गया. इन बीजों को तैयार कर उन्हें पौधा बनाया गया और अब यही पौधे लोगों को बांटे जा रहे हैं.

दुकान में जमा करवाईं थी आम की गुठलियां

सामाजिक संस्था करुणा सागर ने गर्मियों के सीजन में शहर के लोगों से अपील की थी कि वे आम खाकर उसकी गुठलियां फेंके नहीं बल्कि गुठलियों को इस ज्यूस की दुकान में लाकर जमा कर दें. इस ज्यूस सेंटर के संचालक राजू सागर ने अपनी जूस की दुकान पर जितने भी आम, संतरे, मौसंबी, चीकू, सीताफल का जूस निकालने के बाद उनके बीजों को जमा किया और खुद ही इन बीजों को मिट्टी और खाद में रोपकर हजारों की संख्या में पौधे तैयार किए गए. अब इन पौधों को सावन के सोमवार को पर्यावरण प्रेमी लोगों को बांटा जा रहा है.

...ताकि न हो ऑक्सीजन की कमी

फलों और बीजों से जो पौधे तैयार वे तो बांटे ही जा रहे हैं साथ ही बेलपत्र, तुलसी, जामुन, नीम, पारस पीपल, सफेद पीपल, बरगद समेत ऐसे पौधे भी मुफ्त में बांटे जा रहे हैं जो वातावरण को भरपूर ऑक्सीजन देते हैं. इसके पीछे संस्था और इंदौर के लोगों की कोशिश यही है कि कोरोना की दूसरी लहर में जब हजारों लोगों ने ऑक्सीजन की कमी से जूझते हुए अपने प्राण गंवा दिए थे, उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए ऐसी कोशिश की जाए कि तीसरी लहर से पहले शहर वातावरण में भरपूर ऑक्सीजन मौजूद हो इसे देखते हुए ही यह अभियान शुरू किया गया है.

ऑक्सीजन की कमी से हुई थी भाई की मौत
निशुल्क पौधे बांटने वाले राजू सागर के भाई मोहन सागर की कोरोना काल में ऑक्सीजन की कमी से मौत हो गई थी. ऐसा किसी और के साथ न हो ऐसा सोचते हुए उन्होंने कोरोना काल में ऑक्सीजन कंसंट्रेशन मशीनें बांटने के लिए भी लोगों से सहयोग लिया था, लेकिन करीब एक लाख की एक पड़ने वाली ऐसी मशीन शहर भर में बांटना संभव नहीं था लिहाजा उन्होंने ऑक्सीजन के प्राकृतिक विकल्प और जीवनदायी पौधे तैयार करने का फैसला किया और इसके लिए उन्होंने शहर में एक मुहिम चलाई जिसके नतीजे में आज लोगों में भी पौधे लगाने के लिए खासा उत्साह देखा जा रहा है. लोग न सिर्फ उनकी पहल को सराह रहे हैं बल्कि पूरी जिम्मेदारी से इस बाद का भी वादा कर रहे हैं कि वे इन पौधों को न सिर्फ लगाएंगे बल्कि इनकी देखभाल भी करेंगे.

इंदौर । आम के आम गुठलियों के दाम, यह कहावत तो आपने सुनी ही होगी लेकिन अब इस कहावत को सच होते हुए भी देख लीजिए. इस कहावत को सच कर दिखाया है इंदौर शहर ने. यहां एक संस्था ने लोगों द्वारा खाकर फेंक दिए जाने वाले आम की गुठलियां जमा कीं और तीन महीने बाद उन गुठलियों से निकले पौधे लोगों में बांट दिए गए. कोविडकाल में हुई ऑक्सीजन की कमी और उससे बने हालातों से सबक ले चुके इंदौर के पर्यावरण प्रेमी इन पौधों को लेने उमड़ पड़े. संस्था द्वारा मुफ्त में बांटे जा रहे इन पौधों में आम ही नहीं सीताफल, चीकू, संतरा , मौसमी जैसे फलदार पौधों के अलावा नीम, पीपल, बरगद , तुलसी जैसे ज्यादा मात्रा में ऑक्सीजन देने वाले पौधे भी तैयार किए गए हैं.

इंदौर ने सीखा कोविड का कड़वा सबक

निशुल्क बांटे जा रहे हैं 20 हजार पौधे

इंदौर के एक सामाजिक संस्था करुणा सागर संस्था की इस पहल को इंदौरवासियों ने हाथों, हाथ लिया और संस्था के सदस्यों को खाकर फेंक दिए जाने वाले फलों की गुठलियां इकट्ठा करके सौंप दी. तीन महीने पहले चले इस कैंपेन का नतीजा आज पौधों के रूप में सामने है. इन पौधों को लोगों को मुफ्त में दिया जा रहा है ताकि शहर में ज्यादा से ज्यादा प्लांटेशन हो. जिस जूस की दुकान के सामने रखकर इन पौधों को लोगों को बांटा जा रहा है उसमें इस ज्यूस दुकान का भी काफी महत्तव है. गर्मियों में इस ज्यूस की दुकान पर लोगों को जूस पिलाने के बाद उन फलों की गुठलियों को बड़ी मात्रा में जमा किया गया. इन बीजों को तैयार कर उन्हें पौधा बनाया गया और अब यही पौधे लोगों को बांटे जा रहे हैं.

दुकान में जमा करवाईं थी आम की गुठलियां

सामाजिक संस्था करुणा सागर ने गर्मियों के सीजन में शहर के लोगों से अपील की थी कि वे आम खाकर उसकी गुठलियां फेंके नहीं बल्कि गुठलियों को इस ज्यूस की दुकान में लाकर जमा कर दें. इस ज्यूस सेंटर के संचालक राजू सागर ने अपनी जूस की दुकान पर जितने भी आम, संतरे, मौसंबी, चीकू, सीताफल का जूस निकालने के बाद उनके बीजों को जमा किया और खुद ही इन बीजों को मिट्टी और खाद में रोपकर हजारों की संख्या में पौधे तैयार किए गए. अब इन पौधों को सावन के सोमवार को पर्यावरण प्रेमी लोगों को बांटा जा रहा है.

...ताकि न हो ऑक्सीजन की कमी

फलों और बीजों से जो पौधे तैयार वे तो बांटे ही जा रहे हैं साथ ही बेलपत्र, तुलसी, जामुन, नीम, पारस पीपल, सफेद पीपल, बरगद समेत ऐसे पौधे भी मुफ्त में बांटे जा रहे हैं जो वातावरण को भरपूर ऑक्सीजन देते हैं. इसके पीछे संस्था और इंदौर के लोगों की कोशिश यही है कि कोरोना की दूसरी लहर में जब हजारों लोगों ने ऑक्सीजन की कमी से जूझते हुए अपने प्राण गंवा दिए थे, उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए ऐसी कोशिश की जाए कि तीसरी लहर से पहले शहर वातावरण में भरपूर ऑक्सीजन मौजूद हो इसे देखते हुए ही यह अभियान शुरू किया गया है.

ऑक्सीजन की कमी से हुई थी भाई की मौत
निशुल्क पौधे बांटने वाले राजू सागर के भाई मोहन सागर की कोरोना काल में ऑक्सीजन की कमी से मौत हो गई थी. ऐसा किसी और के साथ न हो ऐसा सोचते हुए उन्होंने कोरोना काल में ऑक्सीजन कंसंट्रेशन मशीनें बांटने के लिए भी लोगों से सहयोग लिया था, लेकिन करीब एक लाख की एक पड़ने वाली ऐसी मशीन शहर भर में बांटना संभव नहीं था लिहाजा उन्होंने ऑक्सीजन के प्राकृतिक विकल्प और जीवनदायी पौधे तैयार करने का फैसला किया और इसके लिए उन्होंने शहर में एक मुहिम चलाई जिसके नतीजे में आज लोगों में भी पौधे लगाने के लिए खासा उत्साह देखा जा रहा है. लोग न सिर्फ उनकी पहल को सराह रहे हैं बल्कि पूरी जिम्मेदारी से इस बाद का भी वादा कर रहे हैं कि वे इन पौधों को न सिर्फ लगाएंगे बल्कि इनकी देखभाल भी करेंगे.

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