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IIT इंदौर ने रेडियोधर्मी अपशिष्ट और खतरनाक रसायन के प्रभावी उपचार के लिए किया नया पॉलीमर विकसित - IIT Indore developed new polymer

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान आईआईटी इंदौर ने आईआईटी रुड़की और भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान तिरुवनंतपुरम के साथ मिलकर एक शोध किया है.

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Published : Jun 27, 2023, 8:09 PM IST

इंदौर। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान आईआईटी इंदौर ने आईआईटी रुड़की और भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान तिरुवनंतपुरम के साथ मिलकर एक शोध किया है. जो पर्यावरण संरक्षण और औद्योगिक अपशिष्ट प्रबंधन में एक महत्वपूर्ण खोज है. इसके माध्यम से खतरनाक रसायनों और औद्योगिक अपशिष्टों को अवशोषित करने में सक्षम एक नई वन-पॉट सिंथेसिस विधि के जरिए एक आयनिक पोरस कार्बनिक पॉलिमर आईपीओपी-बीपीवाई विकसित करके पर्यावरणीय उपचार में एक अभूतपूर्व विकास किया गया है.

जहरीले अपशिष्टों का पर्यावरण में जाने से होता है नुकसान: आईआईटी इंदौर द्वारा की गई इस शोध ने रेडियोधर्मी अपशिष्ट के उत्पादन से जुड़ी चुनौतियों का समाधान करने के लिए नए समाधान विकसित करने की नई राह बनाई है. वाष्पशील रेडियो न्यूक्लियोटाइड सबसे खतरनाक जहरीले अपशिष्टों में से एक है. जो कि परमाणु ऊर्जा संयंत्रों और चिकित्सा अनुप्रयोगों में प्रचलित है. इन अपशिष्ट को पर्यावरण में डंप करने से गंभीर रेडियोधर्मी प्रदूषण हो सकता है. इसलिए ऐसे न्यूक्लियोटाइड का तेज और कुशल कैप्चर अत्यावश्यक हो जाता है.

यहां पढ़ें...

यह शोध पर्यावरण संरक्षण में है सहायक: इस शोध का नेतृत्व आईआईटी इंदौर के प्रोफेसर डॉ. सुमन मुखोपाध्याय ने किया है और इनके साथ सायंतन सरकार तनुश्री घोष, अर्घा चक्रवर्ती, जगन्नाथ माझी, प्रोबल नाग, अनसुइया बंद्योपाध्याय, डॉ. शिवरंजना रेड्डी, वेन्नापुसा और डॉ. राजेश कुमार शामिल हैं. उन्होंने कहा टीम द्वारा विकसित आयनिक पोरस कार्बनिक पॉलिमर आयोडीन और इसके डेरिवेटिव को वाष्प अवस्था के साथ-साथ पानी और हेक्सेन जैसे कार्बनिक सॉल्वैंट्स से कैप्चर करने में अत्यधिक कुशल है. यह अभूतपूर्व अध्ययन आईपीओपी-बीपीवाई अणु के पहले सफल सिंथेसिस के बारे में बताता है. जो इसके बहुक्रियाशील औद्योगिक निहितार्थों को दिखाता है. सटीक कैलिब्रेशन और इंजीनियरिंग के साथ इस अणु को आसानी से व्यावहारिक उपयोग के लिए तैयार उत्पादों में बदला जा सकता है. यह अध्ययन प्रतिष्ठित अमेरिकन केमिकल सोसाइटी (एसीएस) एडवांस्ड मैटेरियल्स एंड इंटरफेसेस में प्रकाशित हुआ है. जो हमारी दुनिया की सबसे गंभीर चुनौतियों के लिए स्थायी समाधान की खोज में एक नया आयाम देता है.

इंदौर। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान आईआईटी इंदौर ने आईआईटी रुड़की और भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान तिरुवनंतपुरम के साथ मिलकर एक शोध किया है. जो पर्यावरण संरक्षण और औद्योगिक अपशिष्ट प्रबंधन में एक महत्वपूर्ण खोज है. इसके माध्यम से खतरनाक रसायनों और औद्योगिक अपशिष्टों को अवशोषित करने में सक्षम एक नई वन-पॉट सिंथेसिस विधि के जरिए एक आयनिक पोरस कार्बनिक पॉलिमर आईपीओपी-बीपीवाई विकसित करके पर्यावरणीय उपचार में एक अभूतपूर्व विकास किया गया है.

जहरीले अपशिष्टों का पर्यावरण में जाने से होता है नुकसान: आईआईटी इंदौर द्वारा की गई इस शोध ने रेडियोधर्मी अपशिष्ट के उत्पादन से जुड़ी चुनौतियों का समाधान करने के लिए नए समाधान विकसित करने की नई राह बनाई है. वाष्पशील रेडियो न्यूक्लियोटाइड सबसे खतरनाक जहरीले अपशिष्टों में से एक है. जो कि परमाणु ऊर्जा संयंत्रों और चिकित्सा अनुप्रयोगों में प्रचलित है. इन अपशिष्ट को पर्यावरण में डंप करने से गंभीर रेडियोधर्मी प्रदूषण हो सकता है. इसलिए ऐसे न्यूक्लियोटाइड का तेज और कुशल कैप्चर अत्यावश्यक हो जाता है.

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यह शोध पर्यावरण संरक्षण में है सहायक: इस शोध का नेतृत्व आईआईटी इंदौर के प्रोफेसर डॉ. सुमन मुखोपाध्याय ने किया है और इनके साथ सायंतन सरकार तनुश्री घोष, अर्घा चक्रवर्ती, जगन्नाथ माझी, प्रोबल नाग, अनसुइया बंद्योपाध्याय, डॉ. शिवरंजना रेड्डी, वेन्नापुसा और डॉ. राजेश कुमार शामिल हैं. उन्होंने कहा टीम द्वारा विकसित आयनिक पोरस कार्बनिक पॉलिमर आयोडीन और इसके डेरिवेटिव को वाष्प अवस्था के साथ-साथ पानी और हेक्सेन जैसे कार्बनिक सॉल्वैंट्स से कैप्चर करने में अत्यधिक कुशल है. यह अभूतपूर्व अध्ययन आईपीओपी-बीपीवाई अणु के पहले सफल सिंथेसिस के बारे में बताता है. जो इसके बहुक्रियाशील औद्योगिक निहितार्थों को दिखाता है. सटीक कैलिब्रेशन और इंजीनियरिंग के साथ इस अणु को आसानी से व्यावहारिक उपयोग के लिए तैयार उत्पादों में बदला जा सकता है. यह अध्ययन प्रतिष्ठित अमेरिकन केमिकल सोसाइटी (एसीएस) एडवांस्ड मैटेरियल्स एंड इंटरफेसेस में प्रकाशित हुआ है. जो हमारी दुनिया की सबसे गंभीर चुनौतियों के लिए स्थायी समाधान की खोज में एक नया आयाम देता है.

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