इंदौर। प्रदेश की औद्योगिक राजधानी इंदौर में कई कई लेन सड़कों से लेकर ओवरब्रिज और औद्योगिक क्लस्टर के नाम पर कृषि भूमि के अधिग्रहण से भूमि स्वामी किसान त्रस्त हो चुके हैं, स्थिति यह है कि किसानों की उपजाऊ जमीन के अधिग्रहण के बावजूद ना तो किसानों को पर्याप्त मुआवजा मिल पा रहा है नाही विकास की संबंधित योजना में किसानों की भागीदारी ही स्पष्ट हो पा रही है. यही वजह है कि अब किसान मनमानी विकास योजनाओं के नाम पर अपनी जमीन शासन को देने को तैयार नहीं है. इतना ही नहीं किसानों के बीच इस मुद्दे को लेकर गहरा रहे असंतोष चलते अब भूमि अधिग्रहण कानून निरस्त करने की मांग उठ रही है.
भूमिअधिग्रहण का नियम: दरअसल केंद्र सरकार की लैंड पुलिंग योजना के तहत मध्यप्रदेश में बीते साल लागू की गई लैंड पूलिंग योजना में शिवराज सरकार ने दावा किया था कि किसानों को जमीन के बदले ना केवल पर्याप्त मुआवजा दिया जाएगा बल्कि उन्हें उस जमीन पर लगने वाले उद्योग में भी हिस्सेदारी मिलेगी. राज्य कैबिनेट में पारित इस फैसले के तहत इंदौर पीथमपुर इन्वेस्टमेंट रीजन में औद्योगिक विकास के दूसरे चरण में 2021 से 2023 तक 500 हेक्टर जमीन अधिग्रहण करने की घोषणा भी की थी. जिसके तहत बड़े पैमाने पर किसानों की उपजाऊ जमीन का उद्योगों के अलावा अन्य विकास कार्यो के लिए अधिग्रहण किया जा रहा है. इसके अलावा राज्य सरकार के नगरीय प्रशासन विभाग ने इसकी में दो नए नियम भी जोड़े थे जिसके तहत विभिन्न स्कीमों के लिए अधिग्रहण की जाने वाली जमीनों के बदले भूमि स्वामी को भूमि के विकास के बाद अधिग्रहित जमीन से 50 फ़ीसदी जमीन वापस मिलेगी.
नियम यह भी था कि यदि 6 महीने में विकास प्राधिकरण द्वारा संबंधित जमीन पर टाउन एंड कंट्री प्लानिंग के तहत स्कीम स्वीकृत नहीं हो सकेगी तो भूमि स्वामी अपनी जमीन वापस ले सकेगा हालांकि यह नियम और दावे भी अभी तक कागजों में ही है. इधर इंदौर जिले में वास्तविकता यह है कि एयरपोर्ट से पीथमपुर के लिए तैयार किए जा रहे रोड पर जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया तो जारी है लेकिन किसानों को ना तो संबंधित उद्योगों में हिस्सेदारी की कोई जानकारी है नाही मुआवजे को लेकर स्थिति स्पष्ट है जिसके कारण किसान अपनी उपजाऊ भूमि के अधिग्रहण के खिलाफ हैं.
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मध्यप्रदेश में किसानों के साथ छलावा: राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ के अध्यक्ष शिवकुमार शर्मा काका जी बताते हैं कि 2015 में प्रधानमंत्री कार्यालय ने जो भूमि अधिग्रहण का ड्राफ्ट धारा 24(1) के तहत राज्यों को भिजवाया था उसके तहत सभी राज्यों में संबंधित भूमि के बदले में 4 गुना मुआवजा किसानों को देने का प्रावधान है लेकिन मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार सिर्फ दोगुना मुआवजा ही किसानों को दे रही है जो प्रदेश के उन किसानों के साथ अन्याय है जो अपनी उपजाऊ कृषि भूमि विकास योजनाओं के नाम पर सरकारों को सौंप रहे हैं.
यही स्थिति विकास प्राधिकरण की आवासीय योजनाओं को लेकर है जहां भूमि अधिग्रहण के बाद कई कई साल तक जमीन पर विकास ही नहीं हो पा रहा है. इस स्थिति में ना तो विकसित प्लाट किसानों को मिल पा रहे हैं नाही अधिग्रहण की प्रक्रिया के दौरान वे अपने खेतों में कृषि कार्य ही कर पा रहे हैं. लिहाजा अपनी जमीन खोने के बाद किसान अब जहां-तहां भटक रहे हैं. इस स्थिति के मद्देनजर अब कई गांव के किसान अपनी जमीन बचाने के लिए भूमि बचाओ सेना के तहत विभागों से अपनी जमीन का अधिग्रहण रोकने के लिए लामबंद है वही राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ द्वारा भी अब राज्य सरकार द्वारा घोषित भू अर्जुन के अधिनियम को पूरी तरह निरस्त करने की मांग की है.