इंदौर। World Disabilities Day 2021: पूरी दुनिया में हर साल तीन दिसंबर को विश्व दिव्यांग दिवस (World Disabilities Day) मनाया जाता है. यह दिवस दिव्यांग (Handicapped) लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के उद्देश्य से मनाया जाता है. और हमारे आसपास कुछ दिव्यांग ऐसे हैं, जो दूसरों के लिए उदाहरण है. कुछ ऐसे ही बुलंद हौसले की मिसाल है इंदौर के विक्रम अग्निहोत्री जिन्होंने अपने दोनों हाथ नहीं होने के बावजूद पूरी दुनिया को दिखा दिया कि हाथों के बिना भी सामान्य जिंदगी जी जा सकती है. आज वो अपने पैरों को अपने हाथ की तरह इस्तेमाल कर बखूबी कार चलाते हैं, वो देश के पहले दिव्यांग है, जिन्हें ड्राइविंग लाइसेंस मिला है (first disabled person in country to get a driving license).
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7 साल की उम्र में खो दिए हाथ, लेकिन हौसला नहीं
दरअसल जब विक्रम 7 साल के थे तब छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में घर की छत पर खेलते हुए हाईटेंशन तार के संपर्क में आने के कारण उनके दोनों हाथ जल गए थे. इसके बाद तमाम इलाज और प्रयासों से उनके दोनों हाथों को नहीं बचाया जा सका, उनके हाथ काटने पड़े. इस हादसे ने उनके हाथ तो छीन लिए, लेकिन हौसला नहीं. इसके बाद विक्रम के माता-पिता ने उनका हौसला और बढ़ाते हुए उनको संभाला. और आठवीं कक्षा तक आते-आते विक्रम ने फुटबॉल खेलने के साथ अन्य तमाम जरूरी काम पैर से करने में महारत हासिल कर ली (Indore Vikram Agnihotri is an Inspiration).
देश के पहले दिव्यांग जिन्हें मिला ड्राइविंह लाइसेंस
अपने कामों के लिए किसी पर निर्भर नहीं होने की विक्रम की आदत ने उन्हें गाड़ी चलाने के लिए भी प्रेरित किया. दरअसल, उन दिनों जब वो कहीं जाने के लिए तैयार होते और ड्राइवर के नहीं मिलने के कारण उन्हें अपने सारे कार्यक्रम रद्द करने पड़ते थे तो उन्हें लगा कि बाकी कामों की तरह वो कार भी ड्राइव कर सकते हैं. हालांकि, कार सीखने से ज्यादा परेशानी लाइसेंस लेने को हो रही थी, क्योंकि ये पहला मौका था जब कोई दिव्यांग मध्यप्रदेश शासन और भारत सरकार पैर से कार ड्राइव करने का लाइसेंस मांग रहा था. लाइसेंस की प्रक्रिया में लंबी लड़ाई चली. दरअसल इंदौर आरटीओ ने विक्रम का आवेदन यह कहकर खारिज कर दिया था कि पैरों से कार चलाने पर दूसरों की जान को खतरा हो सकता है. इसके बाद विक्रम ने राज्य शासन के परिवहन मंत्री से अप्रोच लगाई, लेकिन यहां भी बात नहीं बनी तो विक्रम ने भारत सरकार के भूतल परिवहन मंत्री से संपर्क किया. इसके बाद डेढ़ साल लगे यह साबित करने में की हाथ नहीं होने के बाद भी कोई ड्राइविंग कर सकता है. ड्राइविंग के तमाम पैमानों पर विक्रम के खरा उतरने के बाद उन्हें देश का पहला पैर से कार चलाने का ड्राइविंग लाइसेंस मिला. इसके बाद विक्रम बखूबी पैरों से ही कार ड्राइव करना सीख गए, इतना ही नहीं उन्होंने देश में आयोजित कई प्रतिष्ठित कार रेसिंग प्रतियोगिता में भी हिस्सा लिया और सामान्य ड्राइवरों को मात देते हुए लेह-लद्दाख से लेकर रेगिस्तान में कार चला कर साबित कर दिया कि वो एक अच्छे कार रेसर हैं (Vikram Agnihotri divyang car racer). जब उन्होंने देश के पहले दिव्यांग होते लाइसेंस लिया तो अन्य दिव्यांगों को भी उनसे प्रेरणा मिली आज स्थिति यह है कि उन्हीं की तरह देश के अन्य करीब 16 लोग ऐसे हैं जिन्हें दिव्यांगता के बावजूद ड्राइविंग लाइसेंस मिला है (first disabled person in country to get a driving license).
समस्याओं के सामने नहीं टेके घुटने
विक्रम के साथ हुए हादसे के बाद उन्होंने हार नहीं मानी. उनका मानना है कि डिसेबिलिटी सिर्फ मानसिक स्थिति है यदि डिसएबल यह समझ लें कि वह सब कर सकता है तो उसकी पूरी दुनिया बदल सकती है. दिव्यांग होने का मतलब यह नहीं है कि हम हार मान कर बैठ जाएं क्योंकि जैसा हम सोचेंगे हमारे लिए आगे वैसा ही होगा, यही वजह है कि उन्होंने दिव्यांगता से आगे बढ़ते हुए अपनी मां की मदद से सुबह उठते ही ब्रश करने से लेकर नहाना, दाढ़ी बनाना, लिखना एवं खेलने जैसे सारे काम सीखे.
लोगों की मदद के लिए बनाई संस्था
खुद दिव्यांग होने के बावजूद विक्रम ने दिव्यांगों के लिए मोटिवेशनल एक्टिविटी के लिए संस्था बनाई, इसके बाद वे इंदौर में सक्रिय रूप से दिव्यांगों के विस्थापन के साथ रोजगार ट्रेनिंग और उनके कल्याण के लिए दिनभर जुटे रहते हैं. इसके अलावा कई दिव्यांगों को जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रशिक्षण देने का काम भी विक्रम के जिम्मे है. विक्रम का मानना है कि किसी भी दिव्यांगों को दया की नहीं बल्कि उसका हक देने की जरूरत है. उसे खुद अपने बुलंद इरादों के साथ आगे बढ़ना होगा तभी उसकी दुनिया बदल सकती है.
बेहतर फुटबॉल प्लेयर और तैराक (a great footballer and swimmer)
विक्रम अच्छे कार रेसर के साथ-साथ एक फुटबॉल चैंपियन हैं जो प्रतिदिन यशवंत क्लब में अन्य सामान्य खिलाड़ियों के साथ जमकर फुटबॉल भी खेलते हैं, इसके अलावा हाथ नहीं होने के बावजूद भी वे जमकर स्विमिंग पूल में तैराकी करते हैं. उन्हें देखकर अन्य खिलाड़ी भी मोटिवेट होते हैं. वे अपने सारे कामकाज खुद ही करते हैं, फिर चाहे वो चश्मा पहनना हो या चेहरे पर मास्क लगाना. अपनी सक्रिय जीवनशैली के साथ वो आम लोगों की मदद भी जुटे हैं, जो उनकी शख्सियत को बड़ा बनाने के लिए काफी है.