इंदौर। परंपरा के नाम पर दिवाली के दूसरे दिन धोक पड़वा पर इंदौर जिले के गौतमपुरा नगर में खेले जाने वाले कलंकी व तुर्रा दल के बीच हिंगोट युद्ध को लेकर इस बार प्रशासन बिल्कुल सख्त है. पुलिस प्रशासन ने हिंगोट युद्ध मैदान के बीचों बीच टेंट तंबू लगाकर अस्थाई पुलिस चौकी बना दी है, इस बार प्रशासन न तो इसके लिए व्यवस्था करेगा, और न ही हिंगोट युद्ध के मैदान में किसी को जाने दिया जाएगा. वहीं नगर वासियों का कहना है कि वो पांच-पांच लोग युद्ध के मैदान में जाकर देवनारायण भगवान के दर्शन कर हिंगोट छोड़कर परंपरा को कायम रखेंगे, लेकिन प्रशासन इतनी भी छूट देने को तैयार नहीं है, अति प्राचीन पंरपरा हिगोंट (अग्निबाण) युद्ध को लेकर प्रशासन ने इस बार गोपनीय तरीके से तैयारी की है. पुलिस का कहना है कि शासन प्रशासन का जो भी आदेश होगा,उसका पालन किया जाएगा, अगर प्रशासन अनुमति देता है, तो हिंगोट युद्ध पारम्पारिक रूप से इस वर्ष भी गौतमपुरा में आयोजित किया जाएगा.
वैसे तो प्रतिवर्ष हिंगाौट बनाने का कार्य नवरात्री से गौतमपुरा रूणजी के कई घरों में शुरू हो जाता है, पर इस वर्ष हिंगोट बनाने का कार्य किसने, कब, और कहां किया ये कोई बता नहीं रहा, पर कुल मिलाकर तुर्रा व कलंकी दोनों दलों के योद्धाओं ने हिंगोट युद्ध की तैयारियां पूरी कर ली है. कोरोना संक्रमण के चलते प्रशासन द्वारा इस युद्ध बनाम खेल को रोकने के भी पूरे इंतजामत किए गए हैं. वहीं इस परम्परा को निभाने के लिए दोनों दलों के लोग आतुर हैं. इस परंपारगत युद्ध में न किसी की हार होती है, और न किसी की जीत, बस ये युद्ध भाई चारे का युद्ध होता है.
क्या है हिंगोट युद्ध ?
हिंगोट युद्ध इन्दौर से 55 किमी दूर गौतमपुरा शहर में होता है, यह दिवाली के एक दिन बाद (पड़वा) के रोज खेला जाने वाला पारंपरिक 'युद्ध' है. इस युद्ध में प्रयोग होने वाला 'हथियार' हिंगोट है जो हिंगोट फल के खोल में बारूद, भरकर बनाया जाता है. इस युद्ध मे दो दल आमने सामने होते हैं, एक तरफ तुर्रा दल, तो दूसरी ओर कलंकी दल होता है. इस युद्ध में किसी दल की हार-जीत नहीं होती, लेकिन सैकड़ों लोग गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं.
हिंगोट एक निम्बू के आकार जितना बड़ा फल होता है. हिंगोट नारियल की तरह बाहर से सख्त ओर अंदर से गूदे वाला होता है . योद्धा दीपावली के कई महीनों पहले से इसकी तैयारी करते हैं, हिंगोट चम्बल नदी के आस पास के इलाकों में मिलता है. दीपावली के अगले दिन सुबह से ही आस-पास के गांव से लेकर दूर-दूर से आये सैलानियों का जमावड़ा हिंगोट युद्ध के आस पास देखा जाता है. जैसे ही शाम के 4 बजते हैं, योद्धा अपने घरों से बाहर आते हैं, और अपने दल के साथ ढोल ढमाकों से नाचते गाते युद्ध मैदान की ओर बढ़ते हैं.
युद्ध शुरू होने से पहले दोनों दल के योद्धा अति प्राचीन भगवान विष्णु के अवतार श्री देवनारायण का आशीर्वाद लेते हैं और युद्ध शुरू होने से पहले दोनों दल आपस में गले लगते हैं, और युद्ध समाप्त होने के पश्चात दूसरे दल के किसी योद्धा को चोट लगने पर उसके घर जाकर गले लगाकर आपसी भाईचारा बढ़ाते हैं. योद्धा युद्ध के दौरान अपने हाथों में लोहे का मजबूत ढाल व सर पर साफा बांधते हैं. योद्धा अपने हिंगोट सूती कपड़े से बने झोले में रखते हैं, हिंगोट युद्ध काफी पुराना पारंपरिक खेल है.
इस बार प्रशासन की सख्ती
इस युद्ध को कुछ वर्ष पहले रोकने की प्रशासन ने पूरी तैयारी कर ली थी, लेकिन परम्परा न टूटे, इसलिए भाजपा व कांग्रेस के पूर्व व वर्तमान विधायक जनता के साथ खड़े हो गए थे, तब मजबूरी में प्रशासन को हार मानना पड़ा था, और परम्परा कायम रही, लेकिन इस बार अभी तक दोनों पार्टी के जनप्रतिनिधियों ने आंखे बंद कर रखी है. वहीं सोशल मीडिया पर हिंगोट युद्ध नहीं तो, आने वाले नगर परिषद चुनाव का बहिष्कार करने की बात चल रही है.
गौरतलब है की पिछले 10 सालों से प्रशासन की सख्ती के कारण हिंगोट युद्ध में उतरने वाले योद्धा सीमित मात्रा में हिंगोट तैयार कर रहे हैं. इस बार भी हिंगोट तैयार करने वाले योद्धा केवल युद्ध में लड़ने तक के ही हिंगोट तैयार कर रहे हैं. उल्लेखनीय यह है कि पहले प्रशासन की सख्ती नहीं होने तक, गली मोहल्लों व घर-घर में भी हिंगोट तैयार करते लोग देखे जा सकते थे, पर अब केवल योद्धा ही सीमित मात्रा मे हिंगोट तैयार कर रहे हैं.
तुर्रा और कलंकी दोनो दलों के योद्धाओं का कहना है की हिगोट युद्ध रूणजी गौतमपुरा वासियों की सदियों पुरानी परम्परा है, जो उनके पुर्वजों ने उन्हे दी है, ऐसा आयोजन पूरे विश्व में सिर्फ गौतमपुरा नगर में ही देखा जाता है. योद्धाओं का कहना है भाजपा के पूर्व विधायक मनोज पटेल व उनके समर्थक कांग्रेस के वर्तमान विधायक व उनके समर्थक सभी नेता आगे आएं, और हिंगोट की अनूठी परम्परा को कायम रखवाएं. वहीं अभी तक विधायक व पूर्व विधायक दोनों ने इस मामले से दूरी बना रखी है, जिससे जनता काफी खफा है, और आगामी नगर परिषद चुनाव में चुनाव का बहिष्कार करने की बात कह रही है, अब देखना है कि इस वर्ष हिंगोट की परंपरा जारी रहेगी, या टूट जाएगी.