इंदौर। 28 विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव कमलनाथ और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का राजनैतिक भविष्य तो तय करेंगे, लेकिन इस चुनाव में जिस नेता की प्रतिष्ठा सम्मान और कैरियर दांव पर लगा है वह हैं राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया, जो हर कीमत पर उपचुनाव में अपने तमाम समर्थकों को चुनाव जिताना चाहते हैं, लिहाजा वो इसके लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते. इसके लिए सिंधिया प्रचार के कई पैतरे अपना रहे हैं, वो अपने संवाद शैली के जरिए मतदाताओं को हंसाने गुदगुदाने और मनोरंजन के साथ नसीहत देकर अपने प्रत्याशियों के समर्थन में वोट जुटाने की कोशिश कर रहे हैं.
सिंधिया की भाषण शैली ने 2018 में जनता को किया था प्रभावित
चुनावी रण में सिंधिया की भाषण शैली तो हमेशा से ही चर्चा में रही है और जनता को काफी प्रभावित भी करती रही है. 2018 के चुनाव में ग्वालियर चंबल क्षेत्र में बीजेपी को नुकसान पहुंचाने में सबसे बड़ा हाथ सिंधिया का ही था. लेकिन अब सिंधिया उसी बीजेपी के पाले में हैं और किसी भी तरह उसे चुनाव जिताने में लगे हैं. 2018 में जो सिंधिया बीजेपी के खिलाफ दहाड़ते थे अब वो कमलनाथ, दिग्विजय को निशाने पर लेते हुए कांग्रेस के 15 महीने की सरकार की नाकामी गिना रहे हैं.
कांग्रेस के निशाने पर सिंधिया की शैली
सिंधिया की शैली को कांग्रेस किसी नट या मदारी की कोशिशों जैसा बताती है, कांग्रेस की माने तो इसका मतदाताओं पर कोई असर नहीं पड़ने वाला. वहीं भाजपा का दावा है कि सिंधिया का प्रभावशाली व्यक्तित्व और जनता की नब्ज समझने के कारण उन्हें जनता का भरपूर समर्थन मिल रहा है.
मौका नहीं चूकते सिंधिया
सिंधिया के किसी भी सभा में ऐसा कोई मौका नहीं आता जब वे दिग्विजय और कमलनाथ को बड़ा भाई और छोटा भाई बता कर जनता को गुदगुदाया ना हो. सिधिया की कोशिश होती है कि जहां सभा चल रही होती है उसी स्थान और मौके के हिसाब से मतदाताओं का दिल जीता जाए. इतना ही नहीं संबंधित सीट के प्रत्याशी की तारीफ के साथ सिंधिया मतदाताओं को कोरोना से बचे रहने के लिए भी सीख देते हैं.
सिंधिया की कोशिश होती है कि वे अपने भाषण में नैतिक और राजनैतिक मूल्यों के लिहाज से सिंधिया राजघराने के त्याग और सेवाभाव को दर्शाते हुए खुद को जनसेवक बता रहे हैं. जनता से जुड़ने के लिए वो कई तरह के काम करते हैं, जिसमें कुर्सी छोड़कर जमीन पर बैठने, मंच छोड़कर जनता के बीच जाना और बिना जूते चप्पल के बिना भी यात्राएं कर लेना शामिल हैं. इन सब के बीच वो कांग्रेस को गद्दार बताना नहीं भूलते और न ही दिग्विजय और कमलनाथ पर व्यंग कसना. हालांकि सिंधिया इसमें कितना कामयाब होते हैं, ये तो उपचुनाव के परिणाम ही बताएंगे.
विरासत में मिली सियासत, कांग्रेस के बाद अब बीजेपी में सिंधिया, ऐसा है सियासी सफर
ज्योतिरादित्य सिंधिया का सियासी सफर
- ज्योतिरादित्य 2002 में गुना लोकसभा सीट से पहली बार सांसद चुने गए.
- सिंधिया लगातार 4 बार से लोकसभा चुनाव जीते.
- यूपीए-2 सरकार में वे ऊर्जा राज्य मंत्री रहे.
- 2018 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष रहे.
- चौदहवीं लोकसभा में कांग्रेस के मुख्य सचेतक रहे
- 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने राष्ट्रीय महासचिव बनाकर पूर्वी यूपी की जिम्मेदारी सौंपी.
- बीजेपी में शामिल होने के बाद पार्टी ने उन्हें राज्यसभा का उम्मीदवार घोषित कर दिया.
मार्च 2020 में बीजेपी के हुए थे सिंधिया
बीजेपी मुख्यालय में जेपी नड्डा के साथ प्रेस को संबोधित करते हुए सिंधिया ने कहा था कि "मेरे जीवन में दो तारीख़ें बहुत महत्वपूर्ण रही हैं. जीवन में कई बार ऐसे मोड़ आते हैं जो व्यक्ति के जीवन को बदलकर रख देते हैं. पहला दिवस 30 सितंबर 2001 जिस दिन मैंने अपने पूज्य पिताजी को खोया, एक जीवन बदलने का दिन था वो. और 10 मार्च 2020, जो उनकी 75वीं वर्षगांठ थी, जहां जीवन में एक नए मोड़ का सामना कर एक निर्णय मैंने लिया है.