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Indore 1 Caste Equation: इंदौर-1 में जातीय समीकरण बिगाड़ेंगे खेल, कैलाश विजयवर्गीय की एंट्री के बाद संजय शुक्ला को बदलनी पड़ी रणनीति

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By PTI

Published : Oct 19, 2023, 5:39 PM IST

Updated : Oct 19, 2023, 7:04 PM IST

इंदौर-1 विधानसभा सीट से कांग्रेस ने संजय शुक्ला को प्रत्याशी घोषित किया है. वहीं भाजपा ने इस सीट से सीनियर नेता कैलाश विजयवर्गीय को मैदान में उतारा है. कैलाश विजयवर्गीय के दबदबे को देखते हुए कांग्रेस ने अपनी रणनीति बदल ली है. जानकार मानते हैं कि इस सीट पर जातीय समीकरण अहम भूमिका निभाते हैं.

congress candidate sanjay shukla
इंदौर 1 में जातीय समीकरण बिगाड़ेंगे खेल

इंदौर (पीटीआई)। मध्य प्रदेश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के इंदौर-1 विधानसभा सीट से अपने महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को चुनाव मैदान में उतारे जाने के बाद उनके प्रतिद्वन्द्वी एवं कांग्रेस के प्रत्याशी संजय शुक्ला को अपनी सीट बचाने के लिए चुनावी रणनीति में बदलाव करना पड़ा है. समझा जाता है कि इस सीट पर जातीय समीकरण की अहम भूमिका होगी. वैश्य समुदाय से ताल्लुक रखने वाले विजयवर्गीय को भाजपा ने 10 साल के लम्बे अंतराल के बाद टिकट दिया है.

कांग्रेस ने संजय शुक्ला पर जताया भरोसा: कांग्रेस ने अपने मौजूदा विधायक संजय शुक्ला (49) पर दोबारा भरोसा जताते हुए उन्हें उम्मीदवार बनाया है. ब्राह्मण समुदाय के शुक्ला इंदौर-1 क्षेत्र के ही मूल निवासी हैं, जबकि विजयवर्गीय इंदौर-2 क्षेत्र के रहने वाले हैं. कुल 3.64 लाख मतदाताओं वाले इंदौर-1 क्षेत्र का चुनाव परिणाम तय करने में ब्राह्मण और यादव समुदायों के लोगों की भूमिका चुनाव में अहम रहती है. संजय शुक्ला वर्ष 2018 के पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान इंदौर के शहरी क्षेत्र की सभी पांच सीटों में कांग्रेस के इकलौते विजयी उम्मीदवार थे और शेष चारों सीटें भाजपा की झोली में चली गई थीं. हालांकि, वर्ष 2022 के पिछले नगर निगम चुनावों में शुक्ला को महापौर पद पर भाजपा उम्मीदवार पुष्यमित्र भार्गव के हाथों हार का सामना करना पड़ा था.

संजय शुक्ला ने बदली रणनीति: अब विधानसभा चुनाव में शुक्ला का मुकाबला भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव विजयवर्गीय से है. अपनी रणनीति बदलते हुए शुक्ला अब जातीय समीकरणों को साधने, चुनाव प्रचार के लिए दिग्गज नेताओं को अपने क्षेत्र में लाने और खुद के स्थानीय होने पर विशेष जोर देते हुए विजयवर्गीय को ‘मेहमान’ बता रहे हैं. अनुभवी विजयवर्गीय के अचानक मैदान में उतरने के कारण शुक्ला को इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा बरकरार रखने के लिए अपनी चुनावी रणनीति बदलनी पड़ी है.

विजयवर्गीय से बढ़ाई नजदीकियां: शुक्ला के नजदीकी सूत्रों ने बताया कि जातीय समीकरण साधने के लिए कांग्रेस नये सिरे से योजना बना रही है. इसके साथ ही, विपक्ष के राष्ट्रीय स्तर के नेताओं की सिलसिलेवार सभाओं की तैयारी भी की जा रही है. चुनाव प्रचार में स्वयं को स्थानीय उम्मीदवार और विजयवर्गीय को "मेहमान" बता रहे शुक्ला अपने लिए ‘‘नेता नहीं, बल्कि बेटा’’ का जुमला इस्तेमाल कर रहे हैं. उधर, विजयवर्गीय अपने मुख्य चुनावी प्रतिद्वंद्वी की इस चाल की काट के तौर पर मतदाताओं के सामने खुद को समूचे इंदौर के नेता के तौर पर पेश करने की कोशिश में हैं.

जनता के सुख-दुख में खड़े होने का दावा: सार्वजनिक कार्यक्रमों में भजन गाने के अपने शौक के लिए मशहूर विजयवर्गीय इंदौर-1 के तेज विकास और नशे के अवैध कारोबार पर अंकुश लगाने के वादों के साथ मतदाताओं का भरोसा जीतने की कवायद में जुटे हैं. दूसरी ओर, पिछले पांच साल के दौरान कई धार्मिक कार्यक्रमों और भंडारों का आयोजन कर चुके शुक्ला अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों के सुख-दुःख में लगातार खड़े होने का दावा करते हुए ताकत आजमा रहे हैं.

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40 साल के करियर में कोई चुनाव नहीं हारे कैलाश: विजयवर्गीय अपने 40 साल लम्बे सियासी करियर में अब तक कोई भी चुनाव नहीं हारे हैं. वह इंदौर जिले की अलग-अलग सीटों से 1990 से 2013 के बीच लगातार छह बार विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं. राजनीति के स्थानीय समीकरणों पर बरसों से नजर रख रहे वरिष्ठ पत्रकार कीर्ति राणा ने 'पीटीआई-भाषा' से कहा, ''विजयवर्गीय राज्य का मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा रखते हैं. इन दिनों वह अपने बयानों से इसके संकेत भी दे रहे हैं.''

विजयवर्गीय के सामने चुनौतियां भी कम नहीं: लेकिन राणा के मुताबिक इंदौर-1 की चुनावी जंग में विजयवर्गीय के सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं. उन्होंने कहा, ''भाजपा आलाकमान ने इंदौर-1 से टिकट की लम्बे समय से दावेदारी कर रहे स्थानीय नेताओं को दरकिनार करते हुए विजयवर्गीय को अप्रत्याशित तौर पर उम्मीदवार बनाया है. इस बार चुनावों में स्थानीय उम्मीदवार का मुद्दा तूल पकड़ रहा है. लिहाजा अगर मतदान के वक्त भीतरघात होता है, तो विजयवर्गीय को चुनावी नुकसान झेलना पड़ सकता है. '' राज्य की 230 विधानसभा सीटों पर 17 नवंबर को मतदान होगा, जबकि मतगणना तीन दिसंबर को होगी.

इंदौर (पीटीआई)। मध्य प्रदेश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के इंदौर-1 विधानसभा सीट से अपने महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को चुनाव मैदान में उतारे जाने के बाद उनके प्रतिद्वन्द्वी एवं कांग्रेस के प्रत्याशी संजय शुक्ला को अपनी सीट बचाने के लिए चुनावी रणनीति में बदलाव करना पड़ा है. समझा जाता है कि इस सीट पर जातीय समीकरण की अहम भूमिका होगी. वैश्य समुदाय से ताल्लुक रखने वाले विजयवर्गीय को भाजपा ने 10 साल के लम्बे अंतराल के बाद टिकट दिया है.

कांग्रेस ने संजय शुक्ला पर जताया भरोसा: कांग्रेस ने अपने मौजूदा विधायक संजय शुक्ला (49) पर दोबारा भरोसा जताते हुए उन्हें उम्मीदवार बनाया है. ब्राह्मण समुदाय के शुक्ला इंदौर-1 क्षेत्र के ही मूल निवासी हैं, जबकि विजयवर्गीय इंदौर-2 क्षेत्र के रहने वाले हैं. कुल 3.64 लाख मतदाताओं वाले इंदौर-1 क्षेत्र का चुनाव परिणाम तय करने में ब्राह्मण और यादव समुदायों के लोगों की भूमिका चुनाव में अहम रहती है. संजय शुक्ला वर्ष 2018 के पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान इंदौर के शहरी क्षेत्र की सभी पांच सीटों में कांग्रेस के इकलौते विजयी उम्मीदवार थे और शेष चारों सीटें भाजपा की झोली में चली गई थीं. हालांकि, वर्ष 2022 के पिछले नगर निगम चुनावों में शुक्ला को महापौर पद पर भाजपा उम्मीदवार पुष्यमित्र भार्गव के हाथों हार का सामना करना पड़ा था.

संजय शुक्ला ने बदली रणनीति: अब विधानसभा चुनाव में शुक्ला का मुकाबला भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव विजयवर्गीय से है. अपनी रणनीति बदलते हुए शुक्ला अब जातीय समीकरणों को साधने, चुनाव प्रचार के लिए दिग्गज नेताओं को अपने क्षेत्र में लाने और खुद के स्थानीय होने पर विशेष जोर देते हुए विजयवर्गीय को ‘मेहमान’ बता रहे हैं. अनुभवी विजयवर्गीय के अचानक मैदान में उतरने के कारण शुक्ला को इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा बरकरार रखने के लिए अपनी चुनावी रणनीति बदलनी पड़ी है.

विजयवर्गीय से बढ़ाई नजदीकियां: शुक्ला के नजदीकी सूत्रों ने बताया कि जातीय समीकरण साधने के लिए कांग्रेस नये सिरे से योजना बना रही है. इसके साथ ही, विपक्ष के राष्ट्रीय स्तर के नेताओं की सिलसिलेवार सभाओं की तैयारी भी की जा रही है. चुनाव प्रचार में स्वयं को स्थानीय उम्मीदवार और विजयवर्गीय को "मेहमान" बता रहे शुक्ला अपने लिए ‘‘नेता नहीं, बल्कि बेटा’’ का जुमला इस्तेमाल कर रहे हैं. उधर, विजयवर्गीय अपने मुख्य चुनावी प्रतिद्वंद्वी की इस चाल की काट के तौर पर मतदाताओं के सामने खुद को समूचे इंदौर के नेता के तौर पर पेश करने की कोशिश में हैं.

जनता के सुख-दुख में खड़े होने का दावा: सार्वजनिक कार्यक्रमों में भजन गाने के अपने शौक के लिए मशहूर विजयवर्गीय इंदौर-1 के तेज विकास और नशे के अवैध कारोबार पर अंकुश लगाने के वादों के साथ मतदाताओं का भरोसा जीतने की कवायद में जुटे हैं. दूसरी ओर, पिछले पांच साल के दौरान कई धार्मिक कार्यक्रमों और भंडारों का आयोजन कर चुके शुक्ला अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों के सुख-दुःख में लगातार खड़े होने का दावा करते हुए ताकत आजमा रहे हैं.

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40 साल के करियर में कोई चुनाव नहीं हारे कैलाश: विजयवर्गीय अपने 40 साल लम्बे सियासी करियर में अब तक कोई भी चुनाव नहीं हारे हैं. वह इंदौर जिले की अलग-अलग सीटों से 1990 से 2013 के बीच लगातार छह बार विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं. राजनीति के स्थानीय समीकरणों पर बरसों से नजर रख रहे वरिष्ठ पत्रकार कीर्ति राणा ने 'पीटीआई-भाषा' से कहा, ''विजयवर्गीय राज्य का मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा रखते हैं. इन दिनों वह अपने बयानों से इसके संकेत भी दे रहे हैं.''

विजयवर्गीय के सामने चुनौतियां भी कम नहीं: लेकिन राणा के मुताबिक इंदौर-1 की चुनावी जंग में विजयवर्गीय के सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं. उन्होंने कहा, ''भाजपा आलाकमान ने इंदौर-1 से टिकट की लम्बे समय से दावेदारी कर रहे स्थानीय नेताओं को दरकिनार करते हुए विजयवर्गीय को अप्रत्याशित तौर पर उम्मीदवार बनाया है. इस बार चुनावों में स्थानीय उम्मीदवार का मुद्दा तूल पकड़ रहा है. लिहाजा अगर मतदान के वक्त भीतरघात होता है, तो विजयवर्गीय को चुनावी नुकसान झेलना पड़ सकता है. '' राज्य की 230 विधानसभा सीटों पर 17 नवंबर को मतदान होगा, जबकि मतगणना तीन दिसंबर को होगी.

Last Updated : Oct 19, 2023, 7:04 PM IST
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