इंदौर: यूं तो कुत्तों को सबसे वफादार जानवर माना जाता है. लेकिन अगर ये वफादारी भूल जाए तो खतरा जानलेवा हो सकता है. मध्यप्रदेश में आजकल कुत्तों ने आतंक मचाया है, सबसे ज्यादा मुसीबत का सबब बने हुए हैं स्ट्रीट-डॉग यानी आवारा कुत्ते. राजधानी भोपाल, इंदौर और जबलपुर तक आवारा कुत्तों का आतंक है. शाम ढलने के बाद शहर के गली-मोहल्लों में पैदल या दोपहिया पर निकलना खतरे से खाली नहीं है. शाम से रात का समय तो खतरनाक है ही दोपहर में भी कुत्ते बच्चों को निशाना बनाने से नहीं चूक रहे. न तो कुत्तों की नसबंदी हो रही, न ही इन्हें कहीं छोड़ा जा रहा. इंदौर में जहां हर महीने 3 हजार लोग डॉग बाइट का शिकार हो रहे हैं तो वहीं आज ही जबलपुर में कुत्तों के नोंचने से मासूम बच्ची की मौत हो गई.
जबलपुर में कुत्तों के झुंड ने ली मासूम की जान
जबलपुर में अपने भाई के साथ डेढ़ साल की मासूम अपने घर के बाहर खेल रही थी, इस दौरान वहां आवारा कुत्ते पहुंच गए. मासूम को कुत्तों ने नोंच डाला. मां ने जब बच्ची की चीख सुनी तो उसके पास दौड़ी और फिर इलाज के लिए मेडिकल कॉलेज ले जाया गया. जहां इलाज के दौरान बच्ची की मौत हो गई. जबलपुर जिला अस्पताल में रोज कुत्तों के काटने के लगभग 70 से ज्यादा मरीज पहुंच रहे हैं. लेकिन अस्पताल में मरीजों को इंजेक्शन तक नहीं मिल पा रहे हैं.
मासूम को कुत्तों के झुंड ने नोंचा, अस्पताल में मौत
भोपाल में भी मासूम ने तोड़ा था दम
भोपाल में भी आवारा कुत्तों का आतंक थमने का नाम नहीं ले रहा है. कुछ दिन पहले ही आवारा कुत्ते के हमले में एक मासूम ने दम तोड़ दिया था. अब अलग-अलग क्षेत्रों में एक बार फिर आवारा कुत्तों ने करीब 7 लोगों पर हमला किया है, जिसमें एक मासूम बच्ची भी शामिल है. इन हमलों को लेकर लोगों में नगर निगम के प्रति भारी आक्रोश है.
इंदौर में बढ़ रही आवारा कुत्तों की संख्या
देश की सबसे स्वच्छ सिटी इंदौर में डॉग बाइट के शिकार लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है, इंदौर में आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या को रोकने के तमाम प्रयास फेल हो चुके हैं. आलम ये है कि हर दिन अस्पतालों में रेबीज का इंजेक्शन लगवाने वाले मरीजों की भीड़ बढ़ती जा रही है, हर महीने 3 हजार से ज्यादा लोगों को कुत्ते काट रहे हैं.
स्थानीय अस्पतालों में हर दिन 100 से ज्यादा ऐसे मरीज आते हैं जो डॉग बाइट का शिकार होने के बाद अस्पतालों में इलाज के लिए पहुंचते हैं. दरअसल इसकी एक वजह स्वच्छता को भी माना जा रहा है, क्योंकि शहर के सार्वजनिक स्थानों पर अब स्वच्छता रहने के कारण कुत्तों को भोजन पानी नसीब नहीं हो पा रहा है.
ग्वालियर में महिला कांग्रेस नेत्री के बेटे को कुत्ते ने काटा
ग्वालियर में कुत्तों के काटने के मामले बढ़े हैं. कुछ दिन पहले ही एक टाउनशिप में रहने वाली कांग्रेस महिला नेत्री के बेटे को टाउनशिप के पार्क में खेलते समय एक आवारा कुत्ते ने काट लिया. जिससे उसके शरीर पर कई जगह गहरे घाव आ गए थे. जिसको अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था. बच्चे की मां ने टाउनशिप के मैनेजर और अध्यक्ष के खिलाफ थाने में जाकर इसकी शिकायत की थी.
नसबंदी का असर चार साल बाद ?
स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक नगर निगम फिलहाल जितने कुत्तों की नसबंदी कर रहा है. उनके नसबंदी अभियान का असर आगामी 4 साल बाद दिखेगा. इसकी वजह यह है कि शहर में सभी कुत्तों की नसबंदी होने पर ही कुत्तों की संख्या और डॉग बाइट में कमी आ सकेगी. फिलहाल जितने कुत्तों की नसबंदी की जा रही है, उन्हें नसबंदी के बाद वही छोड़ दिया जाता है. ऐसे कुत्तों को एक बेल्ट लगाकर चिन्हित भी किया जा रहा है.
संगठन बन रहे अभियान में बाधा !
इंदौर में पीपुल्स फॉर एनिमल समेत तमाम ऐसे संगठन हैं जो कुत्तों के संरक्षण में कार्य कर रहे हैं, लेकिन डॉग बाइट की स्थिति में यह तमाम संगठन पीड़ितों की कोई मदद करने के लिए तैयार नहीं हैं. इसके उलट जब नगर निगम की टीमें कुत्तों पर कार्रवाई करने का अभियान चलाती है तो यही संगठन अभियान के लिए बाधा बन जाते हैं. ऐसी स्थिति में कुत्तों का नसबंदी अभियान बार-बार प्रभावित होता रहा है.
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इंदौर में लगभग एक लाख आवारा कुत्तों की संख्या
नगर निगम के स्वास्थ्य प्रभारी डॉ उत्तम यादव के अनुसार वर्तमान में शहर में लगभग एक लाख से ज्यादा कुत्ते हैं. इनकी संख्या पर नियंत्रण के लिए एबीसी के माध्यम से काम किया जा रहा है. एबीसी एक साइंटिफिक प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से इनकी संख्या पर नियंत्रण किया जा सकता है. कंपनियों से काम कराने का मुख्य उद्देश्य दोनों के बीच प्रतिस्पर्धा होने से काम में गति मिलने की संभावनाएं रहती है.
इंजेक्शन ही बचाव है ?
कुत्ते बिल्ली और बंदर के काटने पर रेबीज का संक्रमण फैलने की आशंका रहती है. यही वजह है कि ऐसी घटनाएं होने पर सबसे पहले अस्पतालों में मौजूद रैबीज का टीका लगाया जाता है. दरअसल कुत्तों की लार में रेबीज नामक घातक वायरस पाया जाता है जो इंसान को काटने पर उसके शरीर में चला जाता है. यह वायरस मानव शरीर के लिए घातक होता है, जिसकी मानव शरीर में संख्या बढ़ने पर व्यक्ति में कुत्तों जैसे असर दिखने लगते हैं. इसके बाद इलाज के अभाव में मरीज की मौत भी हो जाती है. यही स्थिति बिल्ली, बंदर आदि पशुओं को लेकर भी है जिससे बचने का उपाय रैबीज का टीका ही है.
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गर्मियों में और खूंखार हो जाते हैं कुत्ते !
पशु चिकित्सक डॉक्टर एचएल साहू का कहना है कि गर्मी के मौसम में कुत्ते ज्यादा खूंखार हो जाते हैं, क्योंकि तापमान जब बढ़ता है तो उन्हें छाया चाहिए होती है. पानी चाहिए होता है और तब ये नहीं मिलता है तो आवारा कुत्ते इधर-उधर भागने लगते हैं और इनकी मेंटल स्थिति बदलती है और फिर जो भी दिखता है उसे काटने लगते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि जो उनके पास आ रहा है वो उन पर अटैक करने वाला है.