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क्षिप्रा के जल में संक्रमितों का पिंडदान: पेयजल से गहरा सकता है लाखों लोगों पर संक्रमण का खतरा - मैली हुई क्षिप्रा नदी

कोरोना से मौत होने के बाद इंदौर की क्षिप्रा नदी में प्रतिदिन कोरोना से मारे जाने वाले सैकड़ों लोगों का पिंड-दान और तर्पण किया जा रहा हैं. घाट पर स्थिति यह है कि संक्रमित और गैर संक्रमित तमाम लोग यहां पर मृतकों की अस्थियां, बाल, जूते-चप्पल और उनके कपड़ों तक का विसर्जन नदी के शुद्ध जल में कर रहे हैं. इसे लेकर सबसे चिंताजनक यह है कि इसी जल की सप्लाई देवास नगर निगम द्वारा पीने के पानी के बतौर शहर के लाखों लोगों को हो रही है. जिससे पानी के जरिए देवास में भी लाखों लोगों को संक्रमण फैलने का खतरा मंडरा रहा है.

bone immersion of infectants in the water of kshipra
क्षिप्रा के जल में संक्रमितों का पिंडदान
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Published : May 19, 2021, 7:28 PM IST

इंदौर। प्रदेश में कोरोना से हो रही हजारों मौतों के बाद प्रदेश की जीवनदायिनी नदियों पर भी प्रदूषण का संकट गहरा रहा है. इंदौर की क्षिप्रा नदी पर आलम यह है कि तमाम लॉकडाउन और पुलिस की सख्ती के बावजूद प्रतिदिन कोरोना से मारे जाने वाले सैकड़ों लोगों का पिंड-दान और तर्पण किया जा रहा हैं. घाट पर स्थिति यह है कि संक्रमित और गैर संक्रमित तमाम लोग यहां पर मृतकों की अस्थियां, बाल, जूते-चप्पल और उनके कपड़ों तक का विसर्जन नदी के शुद्ध जल में कर रहे हैं. इसे लेकर सबसे चिंताजनक यह है कि इसी जल की सप्लाई देवास नगर निगम द्वारा पीने के पानी के बतौर शहर के लाखों लोगों को हो रही है. जिससे पानी के जरिए देवास में भी लाखों लोगों को संक्रमण फैलने का खतरा मंडरा रहा है.

क्षिप्रा के जल में संक्रमितों का पिंडदान
  • मृतकों के मास्क और सैनिटाइजर भी किया जा रहा विसर्जित

दरअसल इन दिनों जिन लोगों की मौतें हो रही है उनके परिवार में तर्पण और विसर्जन की परंपरा जाने-अनजाने में लाखों लोगों की जान से खिलवाड़ कर रही है. इसकी बानगी है इंदौर और देवास के बीच क्षिप्रा तट के घाट. जहां चुपचाप सुबह 3 बजे से लेकर 9 बजे तक लगातार पिंड-दान किए जा रहे हैं. जिन घरों में मरीजों की मौत हो रही है वह भी पॉजिटिव रहते हुए स्नान करने सामाजिक मान्यता के तहत चोरी छुपे क्षिप्रा नदी में डुबकी लगा रहे हैं. इस दौरान मान्यता के अनुसार लोग मृतक के कपड़े, जूते, फूल मालाएं और दूसरी सामग्री नदी में ही छोड़कर लोग जा रहे हैं. इस सामग्री में संक्रमित मृतकों के कपड़ों और उपयोग की गई दवाओं के अलावा सैनिटाइजर और मास्क भी हैं. जिनसे मौके पर ही संक्रमण फैलने की आशंका जताई जा रही है. स्थानीय नागरिकों की माने तो बीते दिनों यहां प्रतिदिन 200 से 250 लोगों का तर्पण किया गया है. इसके अलावा मृतकों के कपड़े और अस्पताल की सारी सामग्री नदी में ही विसर्जित की गई है. इतना ही नहीं मृतकों के मास्क और सैनिटाइजर से लेकर दवाइयां तक नदी के पानी में बहा दी गई हैं, जो लोग तर्पण करने पहुंच रहे हैं.

उन्हें ना तो नदी की साफ सफाई की चिंता है ना ही सोशल डिस्टेंसिंग और संक्रमण की, लिहाजा क्षिप्रा की करीब 5 हजार की आबादी वाले क्षेत्र में लोग संभावित संक्रमण को लेकर दहशत में हैं. इससे भी चौंकाने वाली स्थिति यह है, कि क्षिप्रा के इसी प्रदूषित जल को नर्मदा क्षिप्रा लिंक प्रोजेक्ट के तहत पीने के पानी के बतौर देवास में वितरित किया जा रहा है. ऐसी स्थिति में दूषित पानी के जरिए देवास में भी संक्रमण फैलने की आशंका है.

क्षिप्रा घाट पर बच्चों ने किया सूर्य नमस्कार

अब जबकि ईटीवी भारत इस मामले का खुलासा कर रहा है, तो नगर निगम की दलील है कि क्षिप्रा नदी का पानी ट्रीटमेंट के बाद ही शहर में सप्लाई किया जा रहा है. नगर निगम के आयुक्त विशाल सिंह चौहान का कहना है कि नदी के घाट पर कोरोना काल में बड़ी संख्या में तर्पण हुए हैं, लेकिन अब मौतें घटने से तर्पण भी कम हुए हैं. जहां तक संक्रमित कपड़े अथवा सामग्री के विसर्जन का सवाल है तो वहां जिला पंचायत और नगर निगम द्वारा अब कर्मचारियों की तैनाती की जा रही है. जिससे कि नदी के जल को संक्रमण से बचाया जा सके उन्होंने बताया कि जो भी अब नदी में अस्थियां और अन्य अनुपयोगी सामग्री प्रवाहित करता पाया जाएगा. उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई होगी.

  • पानी की क्लीनिंग के बाद ही शहर में सप्लाई

दरअसल 15 लाख से ज्यादा की आबादी वाले देवास में पेयजल के रूप में क्षिप्रा नदी का पानी वितरित किया जाता है. यह पानी क्षिप्रा जल आवर्धन योजना के वाटर स्टोरेज पॉइंट से संपवेल तक पहुंचाया जाता है. इसके बाद पानी की क्लीनिंग और जांच के बाद इसका शहर में वितरण किया जाता है. देवास नगर निगम के मुताबिक फिलहाल कहीं से भी दूषित पानी की शिकायत नहीं मिली है, लेकिन फिर भी संक्रमण की आशंका के चलते अब नदी में दूषित सामग्री डालने से लोगों को रोका जाएगा.

  • फिल्ट्रेशन प्रक्रिया के बाद भी जीवित रहता है वायरस

मेडिकैप्स यूनिवर्सिटी के रिसर्च वायरोलॉजी विशेषज्ञ और ख्यात शिक्षाविद एवं वैज्ञानिक डॉ. राम श्रीवास्तव के अनुसार नगर निगम पानी को क्लीन करने के लिए जिस फिल्टर प्रक्रिया का सहारा लेती है. उसमें फिटकरी और क्लोरीन से पानी साफ किया जाता है. उन्होंने बताया फिटकरी से वायरस और बैक्टीरिया नहीं मरता है. इसके अलावा पानी में क्लोरीन मिलाने पर भी वायरस जिंदा रह सकता है. यदि कोरोनावायरस को नष्ट करने के लिए क्लोरीन की मात्रा पानी में बढ़ाई भी जाती है. ऐसी स्थिति में क्लोरीन के कारण पानी पीने योग्य नहीं रहेगा. जहां तक क्षिप्रा नदी का सवाल है, तो पानी के अधिक भंडारण के कारण फिलहाल वायरस का असर नहीं दिख रहा है. लेकिन फिर भी यह वायरस दूषित पानी के जरिए लोगों के लिए खतरा बन सकता है. इसके लिए तुरंत प्रभावी कदम उठाए जाने की जरूरत है.

कच्चा स्टॉप डैम टूटने से क्षिप्रा नदी हो रही मैली

  • कलेक्टर सुस्ती में और जिला प्रशासन बेखबर

दरअसल देवास जिले में कोरोना के नियंत्रण और संक्रमण रोकने की सबसे पहली जिम्मेदारी देवास जिला प्रशासन की है. लेकिन आज जब इस आशय की सूचना कलेक्टर देवास चंद्रमौली शुक्ला को देने का प्रयास किया गया, तो पता चला कलेक्टर कोई भी अनजान नंबर का फोन रिसीव नहीं करते. इसके अलावा तब ईटीवी भारत की टीम कलेक्टर निवास पर पहुंची तो वहां तैनात सुरक्षा गार्डों ने बताया कि साहब लंच टाइम में खाना खा कर आराम कर रहे हैं. इसलिए उनसे किसी का भी संपर्क नहीं हो सकता. इसके बाद पूरे मामले की जानकारी नगर निगम आयुक्त को दी गई जिन्होंने अब नदी को दूषित होने से बचाने की पहल की है.

इंदौर। प्रदेश में कोरोना से हो रही हजारों मौतों के बाद प्रदेश की जीवनदायिनी नदियों पर भी प्रदूषण का संकट गहरा रहा है. इंदौर की क्षिप्रा नदी पर आलम यह है कि तमाम लॉकडाउन और पुलिस की सख्ती के बावजूद प्रतिदिन कोरोना से मारे जाने वाले सैकड़ों लोगों का पिंड-दान और तर्पण किया जा रहा हैं. घाट पर स्थिति यह है कि संक्रमित और गैर संक्रमित तमाम लोग यहां पर मृतकों की अस्थियां, बाल, जूते-चप्पल और उनके कपड़ों तक का विसर्जन नदी के शुद्ध जल में कर रहे हैं. इसे लेकर सबसे चिंताजनक यह है कि इसी जल की सप्लाई देवास नगर निगम द्वारा पीने के पानी के बतौर शहर के लाखों लोगों को हो रही है. जिससे पानी के जरिए देवास में भी लाखों लोगों को संक्रमण फैलने का खतरा मंडरा रहा है.

क्षिप्रा के जल में संक्रमितों का पिंडदान
  • मृतकों के मास्क और सैनिटाइजर भी किया जा रहा विसर्जित

दरअसल इन दिनों जिन लोगों की मौतें हो रही है उनके परिवार में तर्पण और विसर्जन की परंपरा जाने-अनजाने में लाखों लोगों की जान से खिलवाड़ कर रही है. इसकी बानगी है इंदौर और देवास के बीच क्षिप्रा तट के घाट. जहां चुपचाप सुबह 3 बजे से लेकर 9 बजे तक लगातार पिंड-दान किए जा रहे हैं. जिन घरों में मरीजों की मौत हो रही है वह भी पॉजिटिव रहते हुए स्नान करने सामाजिक मान्यता के तहत चोरी छुपे क्षिप्रा नदी में डुबकी लगा रहे हैं. इस दौरान मान्यता के अनुसार लोग मृतक के कपड़े, जूते, फूल मालाएं और दूसरी सामग्री नदी में ही छोड़कर लोग जा रहे हैं. इस सामग्री में संक्रमित मृतकों के कपड़ों और उपयोग की गई दवाओं के अलावा सैनिटाइजर और मास्क भी हैं. जिनसे मौके पर ही संक्रमण फैलने की आशंका जताई जा रही है. स्थानीय नागरिकों की माने तो बीते दिनों यहां प्रतिदिन 200 से 250 लोगों का तर्पण किया गया है. इसके अलावा मृतकों के कपड़े और अस्पताल की सारी सामग्री नदी में ही विसर्जित की गई है. इतना ही नहीं मृतकों के मास्क और सैनिटाइजर से लेकर दवाइयां तक नदी के पानी में बहा दी गई हैं, जो लोग तर्पण करने पहुंच रहे हैं.

उन्हें ना तो नदी की साफ सफाई की चिंता है ना ही सोशल डिस्टेंसिंग और संक्रमण की, लिहाजा क्षिप्रा की करीब 5 हजार की आबादी वाले क्षेत्र में लोग संभावित संक्रमण को लेकर दहशत में हैं. इससे भी चौंकाने वाली स्थिति यह है, कि क्षिप्रा के इसी प्रदूषित जल को नर्मदा क्षिप्रा लिंक प्रोजेक्ट के तहत पीने के पानी के बतौर देवास में वितरित किया जा रहा है. ऐसी स्थिति में दूषित पानी के जरिए देवास में भी संक्रमण फैलने की आशंका है.

क्षिप्रा घाट पर बच्चों ने किया सूर्य नमस्कार

अब जबकि ईटीवी भारत इस मामले का खुलासा कर रहा है, तो नगर निगम की दलील है कि क्षिप्रा नदी का पानी ट्रीटमेंट के बाद ही शहर में सप्लाई किया जा रहा है. नगर निगम के आयुक्त विशाल सिंह चौहान का कहना है कि नदी के घाट पर कोरोना काल में बड़ी संख्या में तर्पण हुए हैं, लेकिन अब मौतें घटने से तर्पण भी कम हुए हैं. जहां तक संक्रमित कपड़े अथवा सामग्री के विसर्जन का सवाल है तो वहां जिला पंचायत और नगर निगम द्वारा अब कर्मचारियों की तैनाती की जा रही है. जिससे कि नदी के जल को संक्रमण से बचाया जा सके उन्होंने बताया कि जो भी अब नदी में अस्थियां और अन्य अनुपयोगी सामग्री प्रवाहित करता पाया जाएगा. उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई होगी.

  • पानी की क्लीनिंग के बाद ही शहर में सप्लाई

दरअसल 15 लाख से ज्यादा की आबादी वाले देवास में पेयजल के रूप में क्षिप्रा नदी का पानी वितरित किया जाता है. यह पानी क्षिप्रा जल आवर्धन योजना के वाटर स्टोरेज पॉइंट से संपवेल तक पहुंचाया जाता है. इसके बाद पानी की क्लीनिंग और जांच के बाद इसका शहर में वितरण किया जाता है. देवास नगर निगम के मुताबिक फिलहाल कहीं से भी दूषित पानी की शिकायत नहीं मिली है, लेकिन फिर भी संक्रमण की आशंका के चलते अब नदी में दूषित सामग्री डालने से लोगों को रोका जाएगा.

  • फिल्ट्रेशन प्रक्रिया के बाद भी जीवित रहता है वायरस

मेडिकैप्स यूनिवर्सिटी के रिसर्च वायरोलॉजी विशेषज्ञ और ख्यात शिक्षाविद एवं वैज्ञानिक डॉ. राम श्रीवास्तव के अनुसार नगर निगम पानी को क्लीन करने के लिए जिस फिल्टर प्रक्रिया का सहारा लेती है. उसमें फिटकरी और क्लोरीन से पानी साफ किया जाता है. उन्होंने बताया फिटकरी से वायरस और बैक्टीरिया नहीं मरता है. इसके अलावा पानी में क्लोरीन मिलाने पर भी वायरस जिंदा रह सकता है. यदि कोरोनावायरस को नष्ट करने के लिए क्लोरीन की मात्रा पानी में बढ़ाई भी जाती है. ऐसी स्थिति में क्लोरीन के कारण पानी पीने योग्य नहीं रहेगा. जहां तक क्षिप्रा नदी का सवाल है, तो पानी के अधिक भंडारण के कारण फिलहाल वायरस का असर नहीं दिख रहा है. लेकिन फिर भी यह वायरस दूषित पानी के जरिए लोगों के लिए खतरा बन सकता है. इसके लिए तुरंत प्रभावी कदम उठाए जाने की जरूरत है.

कच्चा स्टॉप डैम टूटने से क्षिप्रा नदी हो रही मैली

  • कलेक्टर सुस्ती में और जिला प्रशासन बेखबर

दरअसल देवास जिले में कोरोना के नियंत्रण और संक्रमण रोकने की सबसे पहली जिम्मेदारी देवास जिला प्रशासन की है. लेकिन आज जब इस आशय की सूचना कलेक्टर देवास चंद्रमौली शुक्ला को देने का प्रयास किया गया, तो पता चला कलेक्टर कोई भी अनजान नंबर का फोन रिसीव नहीं करते. इसके अलावा तब ईटीवी भारत की टीम कलेक्टर निवास पर पहुंची तो वहां तैनात सुरक्षा गार्डों ने बताया कि साहब लंच टाइम में खाना खा कर आराम कर रहे हैं. इसलिए उनसे किसी का भी संपर्क नहीं हो सकता. इसके बाद पूरे मामले की जानकारी नगर निगम आयुक्त को दी गई जिन्होंने अब नदी को दूषित होने से बचाने की पहल की है.

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