इंदौर। 1 नवंबर 1956 को हुए मध्य प्रदेश पुनर्गठन के बाद से अब तक जहां राज्य विकास की दृष्टि से संपन्न है. वहीं राज्य के महानगरों का विकास भी तेजी से हुआ है, हालांकि आज भी विभिन्न शहरों के बीच राजधानी बनने की प्रतिस्पर्धा का असर प्रदेश के महानगरों पर दिखता है. ऐसे में प्रदेश की आर्थिक राजधानी को राजधानी बनाए जाने के दावों पर गौर किया जाए तो उस दौर में महज आवागमन के सुलभ साधनों के अभाव में इंदौर के राजधानी बनने का दावा कमजोर पड़ गया था. यही वजह रही कि इंदौर और ग्वालियर में से एक शहर को राजधानी बनाए जाने के प्रयासों के बावजूद राज्य के बीचों-बीच और आवागमन की दृष्टि से सुलभ माने गए भोपाल को यह अवसर मिल सका. हालांकि आज भी उस दौर के लोगों के मन में अपने-अपने शहरों के लिए पीड़ा है कि उनका शहर राजधानी बनने की दौड़ में पिछड़ गया था. 67th foundation day of madhya pradesh) (indore not made capital of mp due to traffic)
यातायात की सुविधा से इंदौर नहीं था उपयुक्त: इंदौर के वरिष्ठ साहित्यकार एवं राष्ट्र कवि सत्यनारायण सत्तन के मुताबिक मध्य प्रदेश पुनर्गठन के पूर्व मध्य भारत अंचल में जीवाजी राव सिंधिया और यशवंत राव होलकर दोनों ही बारी-बारी से मध्य भारत राज्य के प्रमुख की हैसियत से शासन करते थे. उस दौरान दोनों राज्य प्रमुख की सहमति पर इंदौर और ग्वालियर 6-6 महीने की राजधानी होती थी, लेकिन जब राज्य पुनर्गठन का अवसर आया तो इंदौर ग्वालियर भोपाल के बीच राजधानी बनाए जाने को लेकर विभिन्न स्तरों पर प्रतिस्पर्धा शुरू हुई. तीनों शहरों में से किसी एक को राजधानी बनाए जाने को लेकर चिंतन हुआ तो विचार विमर्श के दौरान पाया गया कि इंदौर यातायात की सुविधा से उपयुक्त नहीं है. उस जमाने में इंदौर में रेलवे मार्ग जंक्शन के रूप में नहीं था. (mp foundation day)
आखिर में भोपाल बना प्रदेश की राजधानी: इसके अलावा मध्य प्रदेश की भौगोलिक स्थिति में भी इंदौर एक तरफ पड़ता था. वहीं सड़क मार्ग को लेकर भी स्थितियां अनुकूल नहीं थी, ऐसी स्थिति में तत्कालीन शासक यशवंत राव होलकर के प्रयास विफल हो गए. हालांकि उस जमाने में खुद मिश्रीलाल गंगवाल मध्य भारत के मुख्यमंत्री थे. उन्होंने जब प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के समक्ष यह प्रस्ताव रखा तो आवागमन के साधनों के कारण ही इंदौर का दावा कमजोर पड़ गया. इसके बाद ग्वालियर पर भी विचार किया गया, लेकिन ग्वालियर मध्य प्रदेश के बीच में नहीं होने और उत्तर प्रदेश के करीब होने के कारण ग्वालियर भी राजधानी नहीं बन सकी. भोपाल देश के बीचो बीच और तमाम प्रदेश के लोगों की पहुंच के हिसाब से उपयुक्त पाए जाने के कारण राजधानी बनने में सफल हुआ. इसके अलावा भोपाल में उस दौरान भी व्यवस्थित रेल सुविधा होने का लाभ शहर को मिला. वहीं भोपाल के तत्कालीन शासक भी अपनी रियासत को भारत में मिलाने के पक्ष में नहीं थे, इस बात का भी अप्रत्यक्ष रूप से फायदा भोपाल को राजधानी बनाने के लिहाज से मिला. जिसके फलस्वरूप भोपाल राजधानी बन सका व आज प्रदेश की राजधानी होने के कारण विकसित शहर है.
(67th foundation day of madhya pradesh) (indore not made capital of mp due to traffic)(mp foundation day on 1st november)