होशंगाबाद। मित्रता ऐसी करो की जीवनभर याद रहे, दोस्ती के हजारों किस्से आपने सुने होंगे, ऐसा ही दोस्ती का एक उदाहरण गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल बनी होशंगाबाद की रामजी बाबा और गौरी शाह के सूफी संत की समाधि है. जहां एक हिन्दू संत के समाधि स्थल से लाकर दूसरे मुस्लिम संत के मजार पर चादर पेश की जाती है. कहा जाता है दोनों के बीच काफी अच्छी दोस्ती थी, जिसके कई किस्से आज भी यहां मौजूद हैं.
यहां करीब 300 साल से रामजी बाबा की समाधि स्थल से चादर ले जाकर गौरीशाह के मजार पर चढ़ाई जा रही है. जिसके बाद ही यहां लगने वाले रामजी बाबा मेले का शुभारंभ किया जाता है. रामजी बाबा का सिद्ध स्थल समाधि की तरह दिखाई देता है और उनके मित्र गौरीशाह की मजार मंदिर नुमा दिखाई देती है.
मंदिर के महंत श्यामदास जिनकी कई पीढ़ियां यहां सेवा करती आई हैं. उन्होंने बताया कि दोस्ती के कई किस्से प्रसिद्ध हैं, जिसमें कहा जाता है कि रामजी बाबा के समाधि स्थल पर ही नमाज पढ़ी जा सकती है और वहीं गौरी शाह के मजार पर भजन किया जा सकता है. साथ ही कहा जाता है कि जब रामजी बाबा के समाधि स्थल पर कई सालों पहले छतरी चढ़ाई जा रही थी, तो उसमें कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था. समाधि पर छतरी लगाने में काफी समस्याएं आ रहीं थीं.
इसके बाद मंदिर के महंत के सपने में रामजी बाबा ने आकर गौरी शाह की मजार से पत्थरों को लाने को कहा, तब वहां से पत्थर लाया गया और आसानी से छतरी समाधि पर स्थापित की जा सकी.
अंग्रेजों को बदलनी पड़ी थी रेलवे लाइन की दिशा
19वीं शताब्दी में होशंगाबाद में अंग्रेजों के शासन काल में रेलवे लाइन का सर्वे हुआ और राम जी बाबा की समाधि स्थल के पास से रेलवे लाइन डालने का निर्णय अंग्रेजों ने लिया. लोगों ने उसका विरोध किया, जैसे ही समाधि स्थल पर निर्माण कार्य शुरू किया गया, लेकिन खूब कोशिश करने पर भी निर्माण नहीं हो सका. जिसके बाद अंग्रेजों को रेलवे लाइन की दिशा बदलनी पड़ी. फिर समाधि क्षेत्र संरक्षित स्थान घोषित किया गया.