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कभी था प्रदेश की शान, अब कबाड़ में बदल गया सोया प्लांट

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Published : Jul 23, 2019, 10:19 PM IST

सिवनी मालवा तहसील में वीरान और खंडहर में तब्दील हो चुका सोयाबीन प्लांट को कभी एशिया का सबसे बड़ा सोया प्लांट माना जाता था,लेकिन अब यह प्लांट बदहाली के आंसू बहाने को मजबूर है.

कबाड़ बना सोया प्लांट

होशंगाबाद। सिवनी मालवा तहसील में वीरान और खंडहर में तब्दील हो चुका सोयाबीन प्लांट को कभी एशिया का सबसे बड़ा प्लांट होने का तमगा मिला था. 45 एकड़ क्षेत्र में फैला ये सोया प्लांट तब 14 करोड़ की लागत से निर्मित हुआ था. वर्तमान में सोया प्लांट का हाल यह है कि यह बदहाली के आंसू बहाने को मजबूर है.


इस सोयाबीन प्लांट का भूमिपूजन 1 फरवरी 1982 को तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और गृह राज्य मंत्री हजारीलाल रघुवंशी की अध्यक्षता में किया गया था. 3 अप्रैल 1984 को सोयाबीन प्लांट का उद्घाटन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने किया था. एक समय था जब यह प्लांट हजारों लोगों को रोजगार देता था. यहां काम करने वाले कर्मचारियों के परिवारों में खुशहाली हुआ करती थी, लेकिन नेताओं, अधिकारियों के भ्रष्टाचार के चलते प्लांट आज जंग खा रहा है.

कबाड़ बना सोया प्लांट


कर्मचारियों का कहना है कि चालू रहने तक इस प्लांट से निकलने वाली डीओसी का निर्यात विदेशों में भी होता था. डीओसी के निर्यात से विदेशी करंसी के रूप में करोड़ों रूपये की आय तिलहन संघ को होती थी. लेकिन फायदे के बाद भी सोयाबीन प्लांट कई सालों के घाटे में चलने के चलते बंद हो गया. वहीं अब स्थिति यह है कि प्लांट में लगी महंगी मशीनें जंग खा रही है.


पहले जहां प्लांट में सुरक्षाकर्मियों का जमावड़ा लगा रहता था. वहां अब मजह दो कर्मचारी सुरक्षा में तैनात हैं. पूरा प्लांट किसी वीरान खंडहर से कम नजर नहीं आता है.सोया प्लांट बंद होने के बाद परिसर के एक हिस्से को गोदामों में तब्दील कर दिया गया है. इन गोदामों में पिछले कई सालों से गेहूं का भंडारण किया जा रहा है. जिससे तिलहन संघ को लाखों की आमदनी होती है और पदस्थ कर्मचारियों को वेतन उपलब्ध हो जाता है.

होशंगाबाद। सिवनी मालवा तहसील में वीरान और खंडहर में तब्दील हो चुका सोयाबीन प्लांट को कभी एशिया का सबसे बड़ा प्लांट होने का तमगा मिला था. 45 एकड़ क्षेत्र में फैला ये सोया प्लांट तब 14 करोड़ की लागत से निर्मित हुआ था. वर्तमान में सोया प्लांट का हाल यह है कि यह बदहाली के आंसू बहाने को मजबूर है.


इस सोयाबीन प्लांट का भूमिपूजन 1 फरवरी 1982 को तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और गृह राज्य मंत्री हजारीलाल रघुवंशी की अध्यक्षता में किया गया था. 3 अप्रैल 1984 को सोयाबीन प्लांट का उद्घाटन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने किया था. एक समय था जब यह प्लांट हजारों लोगों को रोजगार देता था. यहां काम करने वाले कर्मचारियों के परिवारों में खुशहाली हुआ करती थी, लेकिन नेताओं, अधिकारियों के भ्रष्टाचार के चलते प्लांट आज जंग खा रहा है.

कबाड़ बना सोया प्लांट


कर्मचारियों का कहना है कि चालू रहने तक इस प्लांट से निकलने वाली डीओसी का निर्यात विदेशों में भी होता था. डीओसी के निर्यात से विदेशी करंसी के रूप में करोड़ों रूपये की आय तिलहन संघ को होती थी. लेकिन फायदे के बाद भी सोयाबीन प्लांट कई सालों के घाटे में चलने के चलते बंद हो गया. वहीं अब स्थिति यह है कि प्लांट में लगी महंगी मशीनें जंग खा रही है.


पहले जहां प्लांट में सुरक्षाकर्मियों का जमावड़ा लगा रहता था. वहां अब मजह दो कर्मचारी सुरक्षा में तैनात हैं. पूरा प्लांट किसी वीरान खंडहर से कम नजर नहीं आता है.सोया प्लांट बंद होने के बाद परिसर के एक हिस्से को गोदामों में तब्दील कर दिया गया है. इन गोदामों में पिछले कई सालों से गेहूं का भंडारण किया जा रहा है. जिससे तिलहन संघ को लाखों की आमदनी होती है और पदस्थ कर्मचारियों को वेतन उपलब्ध हो जाता है.

Intro:आपको यह जानकार आश्चर्य होगा लेकिन ये सच है की मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले की सिवनी मालवा तहसील में वीरान और खंडहर में तब्दील हो चुका सोयाबीन प्लांट को कभी एशिया का सबसे बड़ा प्लांट होने का तमगा मिला था। 45 एकड क्षेत्र में फैला ये सोयाप्लांट तब 14 करोड़ की लागत से निर्मित हुआ था। कर्मचारी बताते हैं कि चालू रहने तक इस प्लांट से निकलने वाली डीओसी का निर्यात विदेशों तक होता था। डीओसी के निर्यात से विदेशी करंसी के रूप में करोड़ों रूपये की आय तिलहन संघ को होती थी।Body:इस सोयाबीन प्लांट का भूमिपूजन 1 फरवरी 1982 को मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह एवं गृह राज्य मंत्री हजारीलाल रघुवंशी की अध्यक्षता में किया गया था वही 3 अप्रैल 1984 को सोयाबीन प्लांट का उद्घाटन मुख्मंत्री अर्जुन सिंह के द्वारा किया गया। किसी समय यह प्लांट हजारों लोगो को रोजगार देता था। यहां काम करने वाले कर्मचारियों के परिवारों में खुशहाली हुआ करती थी, लेकिन नेताओं, अधिकारियों की भर्राशाही और भ्रष्टाचार की तिलहन संघ के इस प्लांट पर ऐसी काली छाया पड़ी कि फायदे के बावजूद ये सोयाबीन प्लांट कई सालों तक घाटे में चलने के चलते बंद हो गया। वही अब स्थिति यह है कि प्लांट में लगी महंगी मशीनें जंग खा रही है। वही प्लांट में कभी सुरक्षा कर्मियों का जमावडा लगा रहता था और 500 से अधिक कर्मचारी काम करते थे। लेकिन वर्तमान में दो कर्मचारी प्लांट की सुरक्षा के लिये तैनात हैं। और पूरा प्लांट किसी वीरान खंडहर से कम नजर नहीं आता अपनी बेबसी के आंसू रो रहे प्लांट की हालत यह है कि सभी जगह घनी झाड़ियां उग आई हैं और महंगी मशीने जंग खाकर कबाड़ में तब्दील हो रही हैं। पर्याप्त सुरक्षा नही होने से परिसर असुरक्षित है।Conclusion:सोया प्लांट बंद होने के बाद परिसर के एक हिस्से को गोदामों में तब्दील कर दिया गया है। इन गोदामों में पिछले कई सालों से गेहूं का भंडारण किया जा रहा है। जिससे तिलहन संघ को लाखों की आमदनी होती है और पदस्थ कर्मचारियों को वेतन उपलब्ध हो जाता है वही सोया प्लांट में पदस्थ कई कर्मचारियों को पर्याप्त आय नहीं होने के चलते अन्य विभागों में पदस्थ किया गया है। आपको बता दे की जहाँ सोया प्लांट संचालित होता था तब शहर के युवा, व्यापारी, किसान सभी खुश थे लेकिन अब प्लांट के बंद होने के चलते युवाओ को रोजगार के लिए अन्य शहरो की और रुख करना पड़ रहा है व्यापारी केवल मंडी पर आश्रित है वही किसान सोयाबीन की फसल का सही दाम नहीं मिलने के चलते अब धान मक्का सहित अन्य फसलों की पैदावार करने लगा है।


बाइट-1 दिनेश नामदेव सोया प्लांट प्रभारी
बाइट-2 आशुतोष शर्मा व्यापारी
बाइट-3 ब्रजमोहन पटेल किसान नेता
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