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सतपुड़ा की पहाड़ियों में भगवान शंकर ने नौ साल तक की थी तपस्या, ये थी वजह - hoshangabad news

भगवान ने राक्षस भस्मासुर से बचने के लिए कई सालों तक सतपुड़ा की पहाड़ियों में वास किया था. जिसका वर्णन शिव पुराण, नर्मदा पुराण समेत कई ग्रंथों में मिलता है.

सतपुड़ा की पहाड़ियों में भगवान शंकर ने नौ साल तक की थी तपस्या
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Published : Aug 5, 2019, 6:10 PM IST

होशंगाबाद। बाबा भोलेनाथ का कैलाश पर्वत के बाद दूसरा घर पचमढ़ी माना जाता है. जहां भगवान ने राक्षस भस्मासुर से बचने के लिए कई सालों तक सतपुड़ा की पहाड़ियों में वास किया था. जिसका वर्णन शिव पुराण, नर्मदा पुराण समेत कई ग्रंथों में मिलता है. शिव पुराण के अनुसार भगवान शंकर भस्मासुर से बचने के लिए विंध्याचल पर्वत श्रेणी के तिलक सिंदूर से पचमढ़ी पहुंचे थे और उन्होंने सैकड़ों साल गुफाओं में विश्राम किया था.

सतपुड़ा की पहाड़ियों में भगवान शंकर ने नौ साल तक की थी तपस्या

पचमढ़ी से 10 किलोमीटर दूर सतपुड़ा की पहाड़ियों के बीचोबीच बसा महादेव मंदिर जिसमें 60 मीटर अंदर गुफा में भगवान शिव ने कई सालों तक विश्राम किया था. जहां पर प्राकृतिक रूप से भगवान शिव का शिवलिंग मौजूद है. वहीं कुछ दूरी पर कुंड मौजूद है जिसे भस्मासुर कुंड कहा जाता है. कई सालों तक शंकर जी के गुफा में विश्राम करने के बाद भगवान विष्णु ने उनको इस समस्या से निदान कराने के लिए मोहिनी अप्सरा का रूप धारण कर भस्मासुर से शिव की तरह तांडव कराने की इच्छा जाहिर की थी. इसी नृत्य में भस्मासुर भस्म में हो गया था. आज भी यहां भस्मासुर कुंड मौजूद है, जिसमें पहाड़ों से रिश्ता हुआ पानी पहुंचता है.

सावन का सोमवार होने के चलते भारी संख्या में शिव भक्त भगवान शिव के दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं. यहां सालों से आदिवासी पूजन के लिए आते रहे हैं और आज भी सावन के सोमवार पर सैकड़ों की संख्या में भक्त भगवान शिव के दर्शन करने के लिए पहुंचे हैं.

होशंगाबाद। बाबा भोलेनाथ का कैलाश पर्वत के बाद दूसरा घर पचमढ़ी माना जाता है. जहां भगवान ने राक्षस भस्मासुर से बचने के लिए कई सालों तक सतपुड़ा की पहाड़ियों में वास किया था. जिसका वर्णन शिव पुराण, नर्मदा पुराण समेत कई ग्रंथों में मिलता है. शिव पुराण के अनुसार भगवान शंकर भस्मासुर से बचने के लिए विंध्याचल पर्वत श्रेणी के तिलक सिंदूर से पचमढ़ी पहुंचे थे और उन्होंने सैकड़ों साल गुफाओं में विश्राम किया था.

सतपुड़ा की पहाड़ियों में भगवान शंकर ने नौ साल तक की थी तपस्या

पचमढ़ी से 10 किलोमीटर दूर सतपुड़ा की पहाड़ियों के बीचोबीच बसा महादेव मंदिर जिसमें 60 मीटर अंदर गुफा में भगवान शिव ने कई सालों तक विश्राम किया था. जहां पर प्राकृतिक रूप से भगवान शिव का शिवलिंग मौजूद है. वहीं कुछ दूरी पर कुंड मौजूद है जिसे भस्मासुर कुंड कहा जाता है. कई सालों तक शंकर जी के गुफा में विश्राम करने के बाद भगवान विष्णु ने उनको इस समस्या से निदान कराने के लिए मोहिनी अप्सरा का रूप धारण कर भस्मासुर से शिव की तरह तांडव कराने की इच्छा जाहिर की थी. इसी नृत्य में भस्मासुर भस्म में हो गया था. आज भी यहां भस्मासुर कुंड मौजूद है, जिसमें पहाड़ों से रिश्ता हुआ पानी पहुंचता है.

सावन का सोमवार होने के चलते भारी संख्या में शिव भक्त भगवान शिव के दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं. यहां सालों से आदिवासी पूजन के लिए आते रहे हैं और आज भी सावन के सोमवार पर सैकड़ों की संख्या में भक्त भगवान शिव के दर्शन करने के लिए पहुंचे हैं.

Intro:होशंगाबाद । भगवान भोले शंकर का कैलाश पर्वत के बाद दूसरा घर पचमढ़ी को माना जाता है जहां भगवान ने बस राक्षस भस्मासुर से बचने के लिए कई सालों तक सतपुड़ा की पहाड़ियों मे वास किया था । जिसका वर्णन शिव पुराण नर्मदा पुराण समेत कई ग्रंथों में उल्लेख मिलता है शिव पुराण के अनुसार भगवान शंकर भस्मासुर को दिए वरदान अपने बलिदान से बचने के लिए विंध्याचल पर्वत श्रेणी के तिलक सिंदूर से पचमढ़ी पहुंचे थे और सैकड़ों साल गुफाओं में विश्राम किया था


Body:पचमढ़ी के कण कण में शिव का वास माना जाता है पचमढ़ी से 10 किलोमीटर दूर सतपुड़ा की पहाड़ियों के बीचोबीच बसाई महादेव मंदिर जिसमें 60 मीटर अंदर गुफा में भगवान शिव ने कई सालों तक विश्राम किया था जहां पर प्राकृतिक रूप से भगवान शिव का शिवलिंग मौजूद है वहीं कुछ दूरी पर कुंड मौजूद है जिसे भस्मासुर कुंड कहा जाता है
पौराणिक कथाओं के मुताबिक जब भस्मासुर भगवान शिव से तपस्या कर में कुंडल की इच्छा जाहिर की थी और भगवान शिव द्वारा उस कुंडल को भस्मासुर को दे दिया था और पौराणिक कथा के अनुसार कुंडल से जिसके भी सिर पर रख दे वह भस्म हो जाता है भगवान शिव को ही उस कुंडल से बस में करना चाहता भस्मासुर से बचने के लिए भगवान शिव ने सतपुड़ा के घने जंगल में इसी गुफा में शरण ली थी कई सालों तक विश्राम किया था भगवान विष्णु ने भगवान शिव को इस समस्या से निदान कराने के लिए मोहिनी अप्सरा का रूप धारण कर भस्मासुर से शिव की तरह तांडव कराने की इच्छा जाहिर की थी इसी नृत्य में भस्मासुर भस्म में हो गया था आज भी यहां भस्मासुर कुंड मौजूद है जिसमें पहाड़ों से रिश्ता हुआ पानी पहुंचता है । सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु भगवान शिव की आराधना के लिए पहुंचते हैं।


Conclusion:सावन का सोमवार होने के चलते भारी संख्या में शिव भक्त भगवान शिव के दर्शन के लिए पहुंच रही हैं हैं यहां सालों से आदिवासी पूजन के लिए आते रहे हैं और आज भी सावन के सोमवार पर सैकड़ों की संख्या में भक्त भगवान शिव के दर्शन करने के लिए पहुंचे है ।

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