होशंगाबाद। कोरोना काल में जब लोगों की नौकरियां खत्म हो रही हैं तब घरेलू कामकाज में व्यस्त रहने वाली महिलाएं अपने हुनर को तराशने का काम भी कर रही हैं. खास तौर से गांव में रहने वाली कई महिलाओं ने कुछ नया सीखने की ललक जगाई है. इससे न सिर्फ वे आत्मनिर्भर बनीं हैं बल्कि उनकी आर्थिक स्थिति थी ठीक होन लगी है. इसी का एक उदाहरण सांगाखेड़ा खुर्द गांव की स्व सहायता समूह की महिलाओंं का है, यहां राधे स्व सहायता समूह की महिलाएं गांव बेकरी का संचालन कर रही हैं.
पिज्जा,बर्गर सैंडविच बनाना सीखा
लॉकडाउन के दौरान महिलाओं ने पिज्जा, बर्गर, बिस्किट, सैंडविच बनाने का काम सीखा और बैंक और जिला पंचायत की योजना के जरिए एक बेकरी भी खोल दी. अब स्व सहायता समूह की महिलाएं आसपास के कई गावों में बेकरी में बनाया गया सामान बेच रही हैं. इस काम में लॉकडाउन के दौरान नौकरी गवां चुके और बेकरी का काम जानने वाले पुरुष साथी भी उनकी मदद कर रहे हैं.
- गांव में फास्ट फूड कि ज्यादा डिमांड
समूह की किरण मेहरा कहती हैं कि "मेरे पति केरल में बेकरी का काम करते थे. लॉकडाउन के दौरान नौकरी चली गई. गांव वापस आए तो उन्होंने कुछ ही दिनों में हमें बेकरी के आइटम बनाना सिखा दिया. हमने कुछ महिलाओं का समूह बनाकर बेकरी आइटम बनाना शुरु किया. आज हमारे गांव के साथ आसपास के कई गांवों के लोग पिज्जा, बर्गर, सैंडविच, केक लेने आते हैं. इनकी डिमांड भी ज्यादा है. हमें 50 से 60 हजार रुपए महीने की आमदनी भी हो रही है."
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- महिलाएं आत्म निर्भर हो रही हैं
गांव की ही पूनम मेहरा बताती हैं कि "कोराना काल के समय में बेरोजगारी के चलते परिवार चलाना मुश्किल हो रहा था. हमें स्वसहायता समूह की जानकारी मिली. समूह के माध्यम से हमें 2 लाख रुपए की सहायता मिली और प्रशिक्षण दिया गया. इसके बाद हमने बेकरी का काम शुरू किया."
- गरीब परिवार की महिलाओं को रोजगार
वहीं स्व सहायता समूह के जिला प्रबंधक आदित्य शर्मा बताते हैं कि मध्य प्रदेश महिला सशक्तिकरण गरीब परिवारों को समूहों से जोड़कर गरीब परिवारों को उनको आजीविका से जोड़ना मिशन का उद्देश्य है. कोरोना काल के समय जिन महिलाओं के पास काम नहीं था. उनको बेकरी के काम का प्रशिक्षण दिया गया. साथ ही उनके आर्थिक विकास के लिए समूह को बैंक के जरिए लोन दिलाकर उन्हें आर्थिक सहायता प्रदान की गई. स्ट्रीट वेंडर योजना के जरिए सहायता दी गई. जिसके बाद महिलाओं ने अपना काम शुरू किया.