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भस्मासुर के डर से यहीं छिपे थे भगवान शिव, आज भी मौजूद हैं जटाओं के त्यागने के निशान - jatashankar

भगवान शिव ने जिस जगह पर अपनी जटाओं को त्याग किया था, वह स्थल जटा शंकर धाम के नाम से जाना जाता है. जोकि पचमढ़ी में सतपुड़ा की पहाड़ियों के तलहटी में स्थित है. जहां शिव की जटाओं के निशान आज भी मौजूद हैं.

जटाशंकर
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Published : Jul 1, 2019, 10:37 PM IST

होशंगाबाद। देश में रहस्यों से भरे कई धार्मिक स्थल हैं, जिनका रहस्य आज भी बरकार है, सतपुड़ा की पहाड़ियों के बीच ऐसा ही एक मंदिर है. जहां भगवान शंकर खुद को भस्मासुर से बचने के लिए शरण लिये थे. यहीं भगवान शिव ने अपनी जटाओं का त्याग किया था.

भगवान शंकर की जटाएं


भगवान शिव ने जिस जगह पर अपनी जटाओं को त्याग किया था, वह स्थल जटा शंकर धाम के नाम से जाना जाता है. जोकि पचमढ़ी में सतपुड़ा की पहाड़ियों के तलहटी में स्थित है. जहां शिव की जटाओं के निशान आज भी मौजूद हैं.


पौराणिक कथाओं के अनुसार, भस्मासुर को खुद भगवान शिव ने ही वरदान दिया था कि वह जिसके भी सिर पर हाथ रखेगा, वह भस्म हो जाएगा. जिसके बाद राक्षस भस्मासुर सबसे पहले भगवान शिव के सिर पर हाथ रखकर उन्हें ही भस्म करने की कोशिश करता है और वह भगवान शिव के पीछे पड़ गया. तब महादेव भागते हुए इसी जगह शरण लिये थे. जहां शिवजी ने अपनी विशालकाय जटायें फैलाई थी, जोकि आज भी चट्टानों के स्वरूप में मौजूद हैं.


इस मनोरम स्थल पर पहाड़ों से पानी टपकता हुआ कुंड में जाकर विलुप्त हो जाता है और पास में एक मगरमच्छ जिसके ऊपरी सिरे पर शिवलिंग बना हुआ है. भगवान शिव के भक्तों का यहां आना जाना लगा रहता है.

होशंगाबाद। देश में रहस्यों से भरे कई धार्मिक स्थल हैं, जिनका रहस्य आज भी बरकार है, सतपुड़ा की पहाड़ियों के बीच ऐसा ही एक मंदिर है. जहां भगवान शंकर खुद को भस्मासुर से बचने के लिए शरण लिये थे. यहीं भगवान शिव ने अपनी जटाओं का त्याग किया था.

भगवान शंकर की जटाएं


भगवान शिव ने जिस जगह पर अपनी जटाओं को त्याग किया था, वह स्थल जटा शंकर धाम के नाम से जाना जाता है. जोकि पचमढ़ी में सतपुड़ा की पहाड़ियों के तलहटी में स्थित है. जहां शिव की जटाओं के निशान आज भी मौजूद हैं.


पौराणिक कथाओं के अनुसार, भस्मासुर को खुद भगवान शिव ने ही वरदान दिया था कि वह जिसके भी सिर पर हाथ रखेगा, वह भस्म हो जाएगा. जिसके बाद राक्षस भस्मासुर सबसे पहले भगवान शिव के सिर पर हाथ रखकर उन्हें ही भस्म करने की कोशिश करता है और वह भगवान शिव के पीछे पड़ गया. तब महादेव भागते हुए इसी जगह शरण लिये थे. जहां शिवजी ने अपनी विशालकाय जटायें फैलाई थी, जोकि आज भी चट्टानों के स्वरूप में मौजूद हैं.


इस मनोरम स्थल पर पहाड़ों से पानी टपकता हुआ कुंड में जाकर विलुप्त हो जाता है और पास में एक मगरमच्छ जिसके ऊपरी सिरे पर शिवलिंग बना हुआ है. भगवान शिव के भक्तों का यहां आना जाना लगा रहता है.

Intro:होशंगाबाद । सतपुड़ा की पहाड़ियों के बीच बस एक ऐसा स्थान जहां भगवान शिव ने भस्मासुर को वरदान से खुद को बचाने के लिए शरण ली थी साथ ही यहां भगवान शिव ने अपनी जटाओं का त्याग करते हुए त्याग किया था यह स्थान पचमढ़ी की सतपुड़ा के जंगल के बीचोंबीच स्थित है जिसे जटाशंकर के नाम से जाना जाता है




Body:जटाशंकर पचमढ़ी मे सतपुड़ा की पहाड़ियों के मे तलहटी मे एक स्थान जहाँ शिव ने अपनी जटा का त्याग किया है इसके निशान आज भी देखने को मिल जाते है जो यहाँ पहाड़ मे जटा बनी हुई है पौराणिक कथाओं के अनुसार भस्मासुर जिससे ब्रह्मा द्वारा वरदान दिया गया था कि वह जिसके भी यहां पर सिर पर हाथ रखेगा वह भस्म हो जाएगा और राक्षस भस्मासुर भगवान शिव के सिर पर हाथ रख शिव को भस्म करना चाहता था इसी के चलते राक्षस भ्समासूयर शिव जी के पीछे पड़ गया था तब महादेव इटारसी के पास तिलक सिंदूर मंदिर मे रूककर पचमढ़ी के जटाशंकर में शरण ली थी जहां शिव जी ने अपनी विशालकाय जटाय फैलाई थी जो यहां आज भी मौजूद है जो यहां की रॉक फॉरमेशन में अभी दिखाई देती है साथ ही संगमरमर की स्टोन मूवी दिखती है वहीं पास में साल भर पहाड़ों से शुद्ध क्षमता हुआ पानी टपकता टपकता एक कुंड में जाकर विलुप्त हो जाता है वही पास मे एक मगरमच्छ जसिकी ऊपरी सिरे ओर शिवलिंग बना हुआ है यह सतपुड़ा पहाड़ियों के करीब 550 फीट नीचे स्थित है यहां हर साल महाशिवरात्रि पर मेला का आयोजन किया जाता है जिसमें हजारों की संख्या में भक्त यहां पूजा करने के लिए पहुंचते हैं

byte रमाशंकर गोस्वामी (पूजारी)


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