ETV Bharat / state

जैविक खेती की ओर किसानों का रुझान, बना आमदनी का जरिया - जैविक खेती

होशंगाबाद जिले में जैविक खेती ने तेजी पकड़ ली है. यहां लगभग आधा सैंकड़ा किसान ऐसे हैं, जिन्होंने विपरीत परिस्थिति के बावजूद जैविक खेती की राह पकड़ ली है. पढ़िए पूरी खबर..

farmers-doing-organic-farming
किसान कर रहे जैविक खेती
author img

By

Published : Jan 16, 2021, 11:18 AM IST

होशंगाबाद। कोरोना संक्रमण जैसी वैश्विक महामारी ने दुनिया को नए सिरे से सोचने पर मजबूर किया है. इस महामारी ने जहां लोगों के रहन-सहन के तौर-तरीके बदले हैं, वहीं खानपान में भी आमूल-चूल परिवर्तन किया है.

कोरोना संक्रमण के दौरान जहां हमें नए शब्द मिले हैं. वहीं एक पुराना शब्द ताकतवर बनकर उभरा है. वह शब्द है, रोग प्रतिरोधक क्षमता या इम्युनिटी. अब तक जिस खानपान के हम गुलाम थे, उससे मुक्त होकर पुरखों के खानपान की तरफ वापसी कर रहे हैं. ऐसे में जैविक और प्राकृतिक खेती से उत्पन्न अनाज की ओर रुझान बढ़ रहा है. अब जैविक खेती करने वाले किसानों ने भी अपनी सक्रियता बढ़ाई है और नित नए तरीके से अपनी आमदनी बढ़ाने की ओर चल पड़े हैं.

होशंगाबाद और हरदा जिले में जैविक खेती ने तेजी पकड़ ली है. यहां लगभग आधा सैंकड़ा किसान ऐसे हैं, जिन्होंने विपरीत परिस्थिति के बावजूद जैविक खेती की राह पकड़ी और उसमें सफल भी हो रहे हैं. जैविक में संभावना नहीं होने की पुरानी सोच को भी बदलने का उनमें माद्दा है. जैविक से अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखने की चाह में अब बड़ी संख्या में लोग इसे अपनाने लगे हैं. ऐसी ही परिस्थिति को इटारसी में जन्म दिया गया था. कोरोना काल में जब लॉकडाउन लगा था, तब सभी बाजार बंद हो गए थे. अब जनवरी से इसे फिर से खोल दिया गया है. ऐसे में ग्राम सेवा समिति रोहना और निटाया की तैयारी शुरू हो गई है. आइए आपको मिलवाते है कुछ ऐसे किसान से, जो जैविक खेती की खासियत बताते हैं और इसे उन्नत बनाने की दिशा में वर्षों से प्रयास कर रहे हैं.

पुरस्कार भी पा चुके हैं रूप सिंह

जमीन को रसायन के प्रभाव से बचाकर जैविक खेती की शुरुआत करने वाले रोहना के किसान रूप सिंह राजपूत ने अपनी महज 5 एकड़ जमीन में करीब दस साल पहले जैविक खेती करने का फैसला किया था. अपनी लगन और मेहनत से कार्य करते हुए आज वे अग्रणी किसान बन चुके हैं. वर्ष 2012 में प्रदेश सरकार उन्हें सर्वोत्तम कृषक के रूप में पुरस्कृत कर चुकी है. वर्ष 2013 में अहमदाबाद में हुए राष्ट्रीय कार्यक्रम में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेस्ट किसान का अवार्ड दिया. मई 2016 में अहमदाबाद में हुए दो दिवसीय कार्यक्रम में उनके टॉनिक जीमावत को सराहा गया.

किसान कर रहे जैविक खेती

रूप सिंह बताते हैं कि लगातार रसायनिक खादों और दवाइयों से मिट्टी के साथ मानव शरीर पर भी दुष्प्रभाव हो रहे हैं. आने वाली पीढ़ी को इनसे बचाने के लिए जैविक खेती की ओर मुड़ना होगा. यह खेती थोड़ी महंगी पड़ती है, लेकिन बाजार में दाम भी सामान्य फसलों से ज्यादा मिलते हैं. वे बताते हैं कि हमारे खेतों की जमीन में से छोटे-छोटे जीव जन्तु नष्ट हो गए हैं. अगर जीव-जन्तुओं की मात्रा जमीन में बढ़ जाए, तो जमीन की उर्वरकता और उत्पादन दोनों ही बढ़ जाएंगे.

अच्छी पगार वाली नौकरी छोड़ दी

ढाबाखुर्द गांव में जैविक खेती करने वाले किसान प्रतीक शर्मा कहते हैं कि कोरोना काल में जैविक उत्पादों का महत्व बढ़ा है, क्योंकि विशेषज्ञ बताते हैं कि जैविक खेती से जो फसलें होती हैं, उसे खाने से आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, जबकि रासायनिक खेती से उत्पन्न खाद्य पदार्थों में यह क्षमता नहीं होती है.

प्रतीक शर्मा ने साल 2015 में बैंक में प्रबंधन से जुड़ी अच्छी पगार वाली नौकरी छोड़कर पाली हॉउस में जैविक खेती की शुरुआत की थी. उनका कहना है कि महंगी और मेहनत से तैयार उत्पादों का मूल्य नहीं मिलना और बाजार की कमी भी एक चिंता है. किसानों को संगठित होने की जरूरत है. इटारसी में जैसे जैविक बाजार की परिकल्पना साकार हुई, वैसा अन्य जगह करने की जरूरत है.

होशंगाबाद। कोरोना संक्रमण जैसी वैश्विक महामारी ने दुनिया को नए सिरे से सोचने पर मजबूर किया है. इस महामारी ने जहां लोगों के रहन-सहन के तौर-तरीके बदले हैं, वहीं खानपान में भी आमूल-चूल परिवर्तन किया है.

कोरोना संक्रमण के दौरान जहां हमें नए शब्द मिले हैं. वहीं एक पुराना शब्द ताकतवर बनकर उभरा है. वह शब्द है, रोग प्रतिरोधक क्षमता या इम्युनिटी. अब तक जिस खानपान के हम गुलाम थे, उससे मुक्त होकर पुरखों के खानपान की तरफ वापसी कर रहे हैं. ऐसे में जैविक और प्राकृतिक खेती से उत्पन्न अनाज की ओर रुझान बढ़ रहा है. अब जैविक खेती करने वाले किसानों ने भी अपनी सक्रियता बढ़ाई है और नित नए तरीके से अपनी आमदनी बढ़ाने की ओर चल पड़े हैं.

होशंगाबाद और हरदा जिले में जैविक खेती ने तेजी पकड़ ली है. यहां लगभग आधा सैंकड़ा किसान ऐसे हैं, जिन्होंने विपरीत परिस्थिति के बावजूद जैविक खेती की राह पकड़ी और उसमें सफल भी हो रहे हैं. जैविक में संभावना नहीं होने की पुरानी सोच को भी बदलने का उनमें माद्दा है. जैविक से अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखने की चाह में अब बड़ी संख्या में लोग इसे अपनाने लगे हैं. ऐसी ही परिस्थिति को इटारसी में जन्म दिया गया था. कोरोना काल में जब लॉकडाउन लगा था, तब सभी बाजार बंद हो गए थे. अब जनवरी से इसे फिर से खोल दिया गया है. ऐसे में ग्राम सेवा समिति रोहना और निटाया की तैयारी शुरू हो गई है. आइए आपको मिलवाते है कुछ ऐसे किसान से, जो जैविक खेती की खासियत बताते हैं और इसे उन्नत बनाने की दिशा में वर्षों से प्रयास कर रहे हैं.

पुरस्कार भी पा चुके हैं रूप सिंह

जमीन को रसायन के प्रभाव से बचाकर जैविक खेती की शुरुआत करने वाले रोहना के किसान रूप सिंह राजपूत ने अपनी महज 5 एकड़ जमीन में करीब दस साल पहले जैविक खेती करने का फैसला किया था. अपनी लगन और मेहनत से कार्य करते हुए आज वे अग्रणी किसान बन चुके हैं. वर्ष 2012 में प्रदेश सरकार उन्हें सर्वोत्तम कृषक के रूप में पुरस्कृत कर चुकी है. वर्ष 2013 में अहमदाबाद में हुए राष्ट्रीय कार्यक्रम में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेस्ट किसान का अवार्ड दिया. मई 2016 में अहमदाबाद में हुए दो दिवसीय कार्यक्रम में उनके टॉनिक जीमावत को सराहा गया.

किसान कर रहे जैविक खेती

रूप सिंह बताते हैं कि लगातार रसायनिक खादों और दवाइयों से मिट्टी के साथ मानव शरीर पर भी दुष्प्रभाव हो रहे हैं. आने वाली पीढ़ी को इनसे बचाने के लिए जैविक खेती की ओर मुड़ना होगा. यह खेती थोड़ी महंगी पड़ती है, लेकिन बाजार में दाम भी सामान्य फसलों से ज्यादा मिलते हैं. वे बताते हैं कि हमारे खेतों की जमीन में से छोटे-छोटे जीव जन्तु नष्ट हो गए हैं. अगर जीव-जन्तुओं की मात्रा जमीन में बढ़ जाए, तो जमीन की उर्वरकता और उत्पादन दोनों ही बढ़ जाएंगे.

अच्छी पगार वाली नौकरी छोड़ दी

ढाबाखुर्द गांव में जैविक खेती करने वाले किसान प्रतीक शर्मा कहते हैं कि कोरोना काल में जैविक उत्पादों का महत्व बढ़ा है, क्योंकि विशेषज्ञ बताते हैं कि जैविक खेती से जो फसलें होती हैं, उसे खाने से आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, जबकि रासायनिक खेती से उत्पन्न खाद्य पदार्थों में यह क्षमता नहीं होती है.

प्रतीक शर्मा ने साल 2015 में बैंक में प्रबंधन से जुड़ी अच्छी पगार वाली नौकरी छोड़कर पाली हॉउस में जैविक खेती की शुरुआत की थी. उनका कहना है कि महंगी और मेहनत से तैयार उत्पादों का मूल्य नहीं मिलना और बाजार की कमी भी एक चिंता है. किसानों को संगठित होने की जरूरत है. इटारसी में जैसे जैविक बाजार की परिकल्पना साकार हुई, वैसा अन्य जगह करने की जरूरत है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.