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कन्हैया और लियाकत ने पेश की दोस्ती की मिसाल, 40 साल से साथ मनाते हैं ईद- दीपावाली - दोस्ती की मिसाल

मध्यप्रदेश में दो अलग- अलग धर्मों के दोस्त समाज में आपसी भाईचारे का संदेश दे रहे हैं. यह लोग 40 साल से ईद और दीपावली का त्योहार साथ में मनाते हैं. पूरा शहर इनकी दोस्ती की मिसाल देता है.

'याराना' ने पेश की यारी की मिसाल
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Published : Jul 30, 2019, 4:55 PM IST

हरदा। जिले में दो दोस्तों की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं है. अलग-अलग मज़हबों से होने के बाद भी कन्हैया और लियाकत की 40 साल पुरानी दोस्ती ने जात-पात की दूरियों को पाटते हुए एक मिसाल कायम की है.

लियाकत और कन्हैया ने मिलकर एक फर्नीचर की दुकान खोली है. जिसका नाम भी अपनी दोस्ती के नाम पर 'याराना' रखा है. इस दुकान पर दोनों दोस्त मिलकर फर्नीचर बनाते हैं और मिलने वाले मेहनताने का भी कोई हिसाब नहीं रखते. जिसको जब जरुरत पड़ती है वो अपने काम के अनुसार रुपये खर्च कर लेता है.

वही दोनों परिवार मजहबों की सीमाओं को लांघकर एक परिवार की तरह ईद और दीपावली का त्योहार साथ में मनाता है. शहर के खेड़ीपुरा मोहल्ले में रहने वाले लियाकत हर रोज अपने दोस्त कन्हैया को लेने उसके घर बैरागढ़ जाते हैं. रिश्तेदारों के यहां सभी तरह के आयोजनों में शामिल होने दोनों साथ जाते हैं. जिससे पूरे शहर में इन दोनों की दोस्ती की मिसाले दी जाती है.

दो दोस्त पेश कर रहे भाईचारे की मिसाल

वही दोनों के ससुराल से वैवाहिक आयोजनों में दोनों के लिए एक समान ही कपड़े और अन्य चीजें लाई जाती है. उनकी दोस्ती को अब उनके बच्चे भी बखूबी निभा रहे है. लियाकत के बेटे इमरान के निकाह की दावत के लिए कन्हैया ने हिन्दू धर्म के अनुसार शादी का कार्ड छपवाया था. दोनों ही दोस्तों का मानना है कि वे समाज में आपसी भाईचारे और इंसानियत की सीख देना चाहते हैं.

संयुक्त राष्ट्र संघ ने 30 जुलाई, 2011 में अंतर्राष्ट्रीय मित्रता दिवस मनाने की घोषणा की थी. मित्रता दिवस मनाने का उद्देश्य मानवता को मजबूत करने और मानव जाति के कल्याण को प्रोत्साहित करना है, जिससे अलग-अलग धर्मों को अपनाने और आपसी भाईचारे को बढ़ावा दिया जा सके.

हरदा। जिले में दो दोस्तों की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं है. अलग-अलग मज़हबों से होने के बाद भी कन्हैया और लियाकत की 40 साल पुरानी दोस्ती ने जात-पात की दूरियों को पाटते हुए एक मिसाल कायम की है.

लियाकत और कन्हैया ने मिलकर एक फर्नीचर की दुकान खोली है. जिसका नाम भी अपनी दोस्ती के नाम पर 'याराना' रखा है. इस दुकान पर दोनों दोस्त मिलकर फर्नीचर बनाते हैं और मिलने वाले मेहनताने का भी कोई हिसाब नहीं रखते. जिसको जब जरुरत पड़ती है वो अपने काम के अनुसार रुपये खर्च कर लेता है.

वही दोनों परिवार मजहबों की सीमाओं को लांघकर एक परिवार की तरह ईद और दीपावली का त्योहार साथ में मनाता है. शहर के खेड़ीपुरा मोहल्ले में रहने वाले लियाकत हर रोज अपने दोस्त कन्हैया को लेने उसके घर बैरागढ़ जाते हैं. रिश्तेदारों के यहां सभी तरह के आयोजनों में शामिल होने दोनों साथ जाते हैं. जिससे पूरे शहर में इन दोनों की दोस्ती की मिसाले दी जाती है.

दो दोस्त पेश कर रहे भाईचारे की मिसाल

वही दोनों के ससुराल से वैवाहिक आयोजनों में दोनों के लिए एक समान ही कपड़े और अन्य चीजें लाई जाती है. उनकी दोस्ती को अब उनके बच्चे भी बखूबी निभा रहे है. लियाकत के बेटे इमरान के निकाह की दावत के लिए कन्हैया ने हिन्दू धर्म के अनुसार शादी का कार्ड छपवाया था. दोनों ही दोस्तों का मानना है कि वे समाज में आपसी भाईचारे और इंसानियत की सीख देना चाहते हैं.

संयुक्त राष्ट्र संघ ने 30 जुलाई, 2011 में अंतर्राष्ट्रीय मित्रता दिवस मनाने की घोषणा की थी. मित्रता दिवस मनाने का उद्देश्य मानवता को मजबूत करने और मानव जाति के कल्याण को प्रोत्साहित करना है, जिससे अलग-अलग धर्मों को अपनाने और आपसी भाईचारे को बढ़ावा दिया जा सके.

Intro:संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 2011 में 30 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय मित्रता दिवस मनाने की घोषणा की थी।मानवता को मजबूत करने और मानव जाति के कल्याण को प्रोत्साहित करने के लिए मित्रता दिवस मनाने के साथ विश्व के अलग अलग धर्मो को मानने वाले देशों के लोगों में आपसी भाईचारे को बढ़ावा देने के साथ साथ शांति और मैत्री सम्बंध को मजबूत करने का है।भले ही कुछेक लोगों के द्वारा अपने निजी हितों को पूरा करने के लिए देश को धर्म और जाति के नाम पर बाटने का कोई भी मौका नहीं छोड़ा जा रहा हो।लेकिन मध्यप्रदेश के हरदा जिले में अलग अलग मज़हबों से ताल्लुक़ रखने वाले कन्हैया और लियाकत की चालीस सालो पुरानी दोस्ती ने इन दूरियों को पाटते हुए दो जिस्मों को अब एक जान में तब्दील कर दिया है।इन दोनों दोस्तों की ससुराल भी एक ही गांव में है।वही दोनों के परिवारों के द्वारा ईद और दीपावली को साथ साथ मनाया जाता है।


Body:हरदा के इन दोनों दोस्तों की कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है।40 सालो पहले फर्नीचर बनाने के दौरान हुई दोस्ती ने अब अलग अलग महजबों को मानने वाले दो परिवारों को एक कर दिया है।इनकी दोस्ती की मिशाल पूरे शहर में दी जाती है।लियाकत और कन्हैया ने मिलकर एक दुकान खोली है।जिसका नाम भी याराना फर्नीचर रख दिया है।इस दुकान पर दोनों दोस्त मिलकर फर्नीचर तैयार करते है।लेकिन मिलने वाले मेहनताने में कोई हिसाब नही रखते जब जिसको जरूरत पड़ती है।वो अपने काम के लिए रुपये खर्च कर लेता है।लियाकत ओर कन्हैया के परिवार भी अब मजहबो की सीमाओं को लांघ कर एक परिवार की तरह ईद और दीपावली का त्यौहार साथ साथ मनाते है।शहर के खेड़ीपुरा मोहल्ले में रहने वाले लियाकत हर रोज अपने दोस्त कन्हैया को लेने उनके घर बैरागढ़ जाते है।अपनी दुकान पर ओर नाते रिश्तेदारों के यहां होने वाले आयोजनों में भी दोनों साथ ही जाते है।वही इन दोनों दोस्तों के ससुराल से भी वैवाहीक आयोजनों में दोनों के लिए एक समान ही कपड़े या अन्य चीजें लाई जाती है।उनकी दोस्ती को अब उनके बच्चे भी बखूबी निभा रहे है।


Conclusion:कन्हैया ओर लियाकत की दोस्ती की सबसे खास बात यह है कि वे एक दूसरे के मजहब से अलग होने के बाद भी एक दूसरे के बच्चो का रिश्ता भी तय करते हैं।जिस रिश्ते को कन्हैया ने तय कर दिया उसे लियाकत ओर उसका परिवार नकार नही सकता।यही वजह है कि बीते 14 अप्रैल को लियाकत के बेटे इमरान के निकाह की दावत के लिए कन्हैया ने हिंदू धर्म के अनुसार वैवाहिक पत्रिका छपवाकर नाते रिश्तेदारों में बाटी थी।दोनों ही दोस्तों का मानना है कि वे समाज के आपसी भाईचारा ओर इंसानियत की सीख देना चाहते है।
बाईट - कन्हैयालाल मालवीय,कारपेंटर,हरदा
बाईट - लियाकत मंसूरी,कारपेंटर,हरदा
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