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जोखिम भरा है ये शॉर्टकट, क्या करें स्कूल तो जाना पड़ेगा

हरदा जिले के मालोना गांव के बच्चे हर रोज जान जोखिम में डालकर स्कूल जाने को मजबूर हैं. यहां बच्चे रेलवे लाइन और फिर नेशनल हाईवे क्रॉस कर स्कूल जाते हैं.

Students take risk of life in harda
जोखिम भरा शॉर्टकट
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Published : Dec 4, 2019, 8:44 AM IST

हरदा। जिले के मालोना गांव के छात्र हर दिन अपनी जान जोखिम में डालकर मुंबई से दिल्ली की ओर जाने वाली रेलवे की पटरियां और फिर नेशनल हाई-वे को पार कर स्कूल आते हैं. हालांकि गांव और स्कूल के बीच की दूरी महज 300 मीटर के आसपास है, लेकिन प्राइमरी स्कूल के करीब 95 छात्र-छात्राओं को सुबह स्कूल आने के दौरान उनके पालकों और स्कूल से वापस घर जाने के दौरान मास्टर जी सड़क से गुजरने वाले वाहनों को सड़क के दोनों और रोककर पार करवाते हैं.

स्कूल से वापस आने के दौरान टीचर रेलवे ट्रेक पर सिग्नल को देखने के बाद ही विद्यार्थियों को रेलवे लाइन पार करवाते हैं. गांव के बच्चे कई सालों से जोखिम उठाकर स्कूल आते हैं लेकिन जिम्मेदार अधिकारी और जनप्रतिनिधियों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया है. यहां पर प्राइमरी स्कूल के अलावा हायर सेकंडरी के बच्चों को भी इसी तरह से रेल पटरी पार कर स्कूल जाना होता है.

रेलवे ने गांव के लोगों को आने-जाने के लिए अंडर ब्रिज बना दिया है, लेकिन ज्यादा दूर और ब्रिज में हमेशा पानी भरा होने के कारण स्कूली बच्चे जोखिम भरा शॉर्टकट लेते हैं.
मालोना गांव के प्राइमरी स्कूल में आने वाले बच्चों का कहना है कि उन्हें रेल की पटरी पार करने दौरान डर लगता है लेकिन स्कूल आने के दौरान मम्मी-पापा और वापस जाने पर टीचर उन्हें हाई-वे और रेल पटरी पार कराते हैं.
स्कूल आने वाले बच्चों के पालकों का कहना है कि उन्हें अपने बच्चों के रेल पटरी पार करने और सड़क को पार कर स्कूल आने-जाने के दौरान हमेशा डर बना रहता है, जिसके चलते वे अपने बच्चों को रोजाना पटरी पार कर स्कूल छोड़ने आते हैं.

जोखिम भरा शॉर्टकट

चारखेडा गांव के सरपंच प्रमेश टेकाम का कहना है कि स्कूल में कुल 106 बच्चे हैं, जिसमें से 90 प्रतिशत बच्चे रेलवे लाइन के उस पार से आते हैं. यहां पर कलेक्टर, एसडीएम सहित अन्य लोगों ने भी इसको देखा है लेकिन कोई हल नहीं निकल पाया है. गांव में सरकारी जमीन नहीं होने के चलते गांव में स्कूल भवन के लिए भूमि दान करने का प्रयास किया गया है, लेकिन ये असफल हो गया है, जिसके चलते मालोना के बच्चे जान जोखिम में डालकर स्कूल आते हैं.

सर्वशिक्षा अभियान के जिला समन्वयक डॉ आरएस तिवारी का कहना है कि ये पूरा मामला उनके और कलेक्टर के नॉलेज में है, लेकिन पहले से यहां पर शाला भवन बना हुआ है इसलिए बच्चों को जोखिम उठाकर स्कूल आना पड़ता है, हमारे द्वारा गांव में किसी व्यक्ति से स्कूल भवन के लिए भूमि दान कराने का प्रयास किया जा रहा है. उनका भी मानना है कि बच्चों को रेलवे लाइन और हाईवे पार कर स्कूल आना खतरे से खाली नहीं है हम जल्द से जल्द इसे दूर कर गांव में ही नया शाला भवन बनाने का काम करेंगे.

हरदा। जिले के मालोना गांव के छात्र हर दिन अपनी जान जोखिम में डालकर मुंबई से दिल्ली की ओर जाने वाली रेलवे की पटरियां और फिर नेशनल हाई-वे को पार कर स्कूल आते हैं. हालांकि गांव और स्कूल के बीच की दूरी महज 300 मीटर के आसपास है, लेकिन प्राइमरी स्कूल के करीब 95 छात्र-छात्राओं को सुबह स्कूल आने के दौरान उनके पालकों और स्कूल से वापस घर जाने के दौरान मास्टर जी सड़क से गुजरने वाले वाहनों को सड़क के दोनों और रोककर पार करवाते हैं.

स्कूल से वापस आने के दौरान टीचर रेलवे ट्रेक पर सिग्नल को देखने के बाद ही विद्यार्थियों को रेलवे लाइन पार करवाते हैं. गांव के बच्चे कई सालों से जोखिम उठाकर स्कूल आते हैं लेकिन जिम्मेदार अधिकारी और जनप्रतिनिधियों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया है. यहां पर प्राइमरी स्कूल के अलावा हायर सेकंडरी के बच्चों को भी इसी तरह से रेल पटरी पार कर स्कूल जाना होता है.

रेलवे ने गांव के लोगों को आने-जाने के लिए अंडर ब्रिज बना दिया है, लेकिन ज्यादा दूर और ब्रिज में हमेशा पानी भरा होने के कारण स्कूली बच्चे जोखिम भरा शॉर्टकट लेते हैं.
मालोना गांव के प्राइमरी स्कूल में आने वाले बच्चों का कहना है कि उन्हें रेल की पटरी पार करने दौरान डर लगता है लेकिन स्कूल आने के दौरान मम्मी-पापा और वापस जाने पर टीचर उन्हें हाई-वे और रेल पटरी पार कराते हैं.
स्कूल आने वाले बच्चों के पालकों का कहना है कि उन्हें अपने बच्चों के रेल पटरी पार करने और सड़क को पार कर स्कूल आने-जाने के दौरान हमेशा डर बना रहता है, जिसके चलते वे अपने बच्चों को रोजाना पटरी पार कर स्कूल छोड़ने आते हैं.

जोखिम भरा शॉर्टकट

चारखेडा गांव के सरपंच प्रमेश टेकाम का कहना है कि स्कूल में कुल 106 बच्चे हैं, जिसमें से 90 प्रतिशत बच्चे रेलवे लाइन के उस पार से आते हैं. यहां पर कलेक्टर, एसडीएम सहित अन्य लोगों ने भी इसको देखा है लेकिन कोई हल नहीं निकल पाया है. गांव में सरकारी जमीन नहीं होने के चलते गांव में स्कूल भवन के लिए भूमि दान करने का प्रयास किया गया है, लेकिन ये असफल हो गया है, जिसके चलते मालोना के बच्चे जान जोखिम में डालकर स्कूल आते हैं.

सर्वशिक्षा अभियान के जिला समन्वयक डॉ आरएस तिवारी का कहना है कि ये पूरा मामला उनके और कलेक्टर के नॉलेज में है, लेकिन पहले से यहां पर शाला भवन बना हुआ है इसलिए बच्चों को जोखिम उठाकर स्कूल आना पड़ता है, हमारे द्वारा गांव में किसी व्यक्ति से स्कूल भवन के लिए भूमि दान कराने का प्रयास किया जा रहा है. उनका भी मानना है कि बच्चों को रेलवे लाइन और हाईवे पार कर स्कूल आना खतरे से खाली नहीं है हम जल्द से जल्द इसे दूर कर गांव में ही नया शाला भवन बनाने का काम करेंगे.

Intro:आप जो सिन देख रहे है यह किसी फिल्म की शूटिंग का नही बल्कि हरदा जिले के ग्राम मालोना के मासूम स्कूली बच्चों का है जो हर दिन अपनी जान जोखिम में डालकर मुंबई से दिल्ली की ओर जाने वाली रेल लाइन की पटरियों को पार करने के बाद इंदौर बैतूल नेशनल हाईवे को पार कर स्कूल आते है।हालांकि गांव और स्कूल के बीच की दूरी महज 300 मीटर के आसपास है।लेकिन प्राइमरी स्कूल में आने वाले करीब 95 छात्र छात्राओं को सुबह स्कूल आने के दौरान उनके पालकों और स्कूल से वापस घर जाने के दौरान मास्टर जी सड़क से गुजरने वाले वाहनों को सड़क के दोनों और रोककर पार करवाते है।इतना ही नही इसके बाद स्कूल के टीचर रेलवे ट्रेक पर जाकर दोनों ट्रेक पर बने सिग्नल को देखने के बाद अपने स्कूल के विद्यार्थियों को रेलवे लाइन पार करवाते हैं।इस मामले में खास बात यह है कि इस तरह से गांव के बच्चे सालों से जोखिम उठाकर स्कूल आते है।लेकिन सड़क से गुजरने वाले किसी भी जिम्मेदार अधिकारी और ना ही किसी जनप्रतिनिधियों ने इस ओर ध्यान नही दिया है।यहां पर प्राइमरी स्कूल के अलावा हायर सेकंडरी के बड़े बच्चों को भी इसीतरह से रेल पटरी पार कर स्कूल जाना होता है।हालांकि की रेलवे के द्वारा गांव के लोगों को आने जाने के लिए अंदर ब्रिज बना दिया है लेकिन उसकी दूरी अधिक होने और हमेशा पानी भरा होने के कारण स्कूली बच्चों के द्वारा शार्टकट जोखिम भरा रास्ता अपनाया गया है।जिससे गुजरने के दौरान किसी भी दिन कोई बड़ा हादसा होने से इंकार नही किया जा सकता।


Body:ग्राम मालोना के प्राइमरी स्कूल में आने वाले बच्चों का कहना है कि उन्हें रेल की पटरी पार करने दौरान डर लगता है लेकिन स्कूल आने के दौरान मम्मी -पापाऔर वापस जाने पर टीचर के द्वारा हमें सड़क और रेल पटरी पार करा दी जाती है।

बाईट- नेहा ,स्कूली छात्रा
बाईट- अभय धुर्वे ,स्कूली छात्र
बाईट- राज,स्कूली छात्र

स्कूल में आने वाले बच्चों के पालकों का कहना है कि उन्हें अपने बच्चों के रेल पटरी पार करने और सड़क को पार कर स्कूल आने जाने के दौरान हमेशा डर बना रहता है जिसके चलते वे अपने बच्चों को रोजाना पटरी पार कर स्कूल छोड़ने आते है

बाईट- वैजयंती प्रजापति ,पालक ग्राम मालोना




Conclusion:उधर ग्राम चारखेडा के सरपंच प्रमेश टेकाम का कहना है कि स्कूल में कुल 106 बच्चे है जिसमें से 90 प्रतिशत बच्चे लाइन के उस पार से आते हैं।यहां पर कलेक्टर,एसडीएम सहित अन्य लोगों ने भी इसको देखा है लेकिन कोई हल नही निकल पाया है।गांव में सरकारी जमीन नही होने के चलते गांव में स्कूल भवन के लिए भूमि दान में लेने का प्रयास किया गया है।लेकिन बाद में वह प्रयास असफल हो गया है।जिसके चलते मालोना के बच्चे जान जोखिम में डालकर स्कूल आते हैं।
बाईट- प्रमेश टेकाम
सरपंच ग्राम चारखेडा
सर्वशिक्षा अभियान के जिला समन्वयक डॉ आर एस तिवारी का कहना है कि यह पूरा मामला उनके ओर कलेक्टर के नॉलेज में है।चूंकि पहले से यहां पर शाला भवन बना हुआ है इस कारण बच्चों को जोखिम उठाकर स्कूल आना पड़ता है।हमारे द्वारा गांव में किसी प्राइवेट व्यक्ति से स्कूल भवन के लिए भूमि दान में लेने केलिए प्रयास किया जा रहा है।उनका भी मानना है कि बच्चों को रेल पटरी ओर हाइवे पार कर स्कूल आना खतरे से खाली नहीं है।हम जल्द से जल्द इसे दूर कर ग्राम में ही नया शाला भवन बनाने का काम करेंगे।
बाईट- डॉ आर एस तिवारी
डीपीसी,हरदा
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