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सिंधिया स्कूल की छात्राएं सेनेटरी नैपकिन बनाकर गरीब महिलाओं की कर रही हैं मदद

माहवारी को लेकर गरीब तबके की महिलाओं को जागरूक करने के लिए सिंधिया कन्या विद्यालय की छात्राएं सेनेटरी नैपकिन बनाकर फ्री में दे रही हैं. ताकि इस तबके की महिलाओं को महावारी से होने वाली गंभीर बीमारी से बचाया जा सके.

छात्राएं सेनेटरी नैपकिन बनाकर गरीब महिलाओं की कर रही है मदद
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Published : Sep 30, 2019, 8:58 PM IST

Updated : Sep 30, 2019, 9:23 PM IST

ग्वालियर। माहवारी एक ऐसा विषय है, जिस पर लोग खुलकर बात करना पसंद नहीं करते हैं. यही वजह है कि माहवारी के संक्रमण के चलते हर साल कई महिलाओं की मौत हो जाती है, लेकिन माहवारी के चलते महिलाओं में हो रही संक्रमण को दूर करने के लिए देश के प्रतिष्ठित सिंधिया कन्या स्कूल की छात्राओं ने स्कूल में सेनेटरी नैपकिन बनाने का प्लांट लगाया है. इस प्लांट में तैयार किए जा रहे संकल्प नाम के सैनिटरी नैपकिन को ग्वालियर के आसपास के गांव में गरीब तबके की महिलाओं को मुफ्त में दे रही है.

छात्राएं सेनेटरी नैपकिन बनाकर गरीब महिलाओं की कर रही है मदद

सिंधिया कन्या विद्यालय की छात्राओं की प्रेरणा पर एक गांव की महिलाओं ने भी स्व सहायता समूह के जरिए सेनेटरी नैपकिन बनाने का काम शुरू किया है. सेनेटरी नैपकिन को सिंधिया कन्या स्कूल की छात्राओं ने इसकी शुरुआत 2012 में की गई थी. तब से लेकर आज तक छात्रों के द्वारा सैनिटरी नैपकिन बनाने का काम जारी है.

कैसे आया सेनेटरी नैपकिन शुरू करने का ख्याल

साल 2012 में सिंधिया कन्या स्कूल प्रबंधन और कुछ छात्राओं के मन में ख्याल आया कि गरीब तबके की महिलाओं को सेनेटरी नैपकिन के बारे जागरूक किया जाये. इस तकबे की महिलाएं हर माह होने वाली माहवारी से संक्रमण के चलते गंभीर बीमारी से ग्रसित हो जाती हैं. खासतौर से महिलाओं को महावारी के दिनों में परेशानी का सामना करना पड़ता है क्योंकि वह सैनिटरी नैपकिन नहीं खरीद सकती.

छात्रों ने बताया की यह प्लान काफी जोखिम भरा और कठिन था. क्योंकि इस विषय पर लोगों से और महिलाओं से बात करना काफी मुश्किल होता था, लेकिन फिर भी महिलाओं की सुरक्षा के लिए यह कदम उठाना जरूरी समझा. छात्र ने बताया कि इस बारे में स्कूल की प्रिंसिपल से बात की.

सिंधिया स्कूल प्रबंधन और छात्रों ने फंड जुटाकर कर सेनेटरी नैपकिन बनाने की मशीन को खरीदा. 2012 में सेनेटरी नैपकिन बनाने की ट्रेनिंग दी. तब से लेकर अब तक छात्राएं स्कूल में फ्री समय में सैनिटरी नैपकिन बनाती हैं. सिंधिया स्कूल की प्रिंसिपल नीति मिश्रा का कहना है, 'महिलाओं को माहवारी के बारे में जागरूक करने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा. उस समय हर वक्त मन में यह विचार आता था कि इसके बारे में महिला को कैसे समझाया जाए. इस विषय में लोगों से बात करना काफी मुश्किल होती है'. उन्होंने बताया कि इस काम की शुरुआत करने के लिए पहले 15 महीने तक इसका सर्वे किया. सर्वे में पाया कि शहर की एक बड़ी आबादी इस बुनियादी समस्या से काफी परेशान है.

ग्वालियर। माहवारी एक ऐसा विषय है, जिस पर लोग खुलकर बात करना पसंद नहीं करते हैं. यही वजह है कि माहवारी के संक्रमण के चलते हर साल कई महिलाओं की मौत हो जाती है, लेकिन माहवारी के चलते महिलाओं में हो रही संक्रमण को दूर करने के लिए देश के प्रतिष्ठित सिंधिया कन्या स्कूल की छात्राओं ने स्कूल में सेनेटरी नैपकिन बनाने का प्लांट लगाया है. इस प्लांट में तैयार किए जा रहे संकल्प नाम के सैनिटरी नैपकिन को ग्वालियर के आसपास के गांव में गरीब तबके की महिलाओं को मुफ्त में दे रही है.

छात्राएं सेनेटरी नैपकिन बनाकर गरीब महिलाओं की कर रही है मदद

सिंधिया कन्या विद्यालय की छात्राओं की प्रेरणा पर एक गांव की महिलाओं ने भी स्व सहायता समूह के जरिए सेनेटरी नैपकिन बनाने का काम शुरू किया है. सेनेटरी नैपकिन को सिंधिया कन्या स्कूल की छात्राओं ने इसकी शुरुआत 2012 में की गई थी. तब से लेकर आज तक छात्रों के द्वारा सैनिटरी नैपकिन बनाने का काम जारी है.

कैसे आया सेनेटरी नैपकिन शुरू करने का ख्याल

साल 2012 में सिंधिया कन्या स्कूल प्रबंधन और कुछ छात्राओं के मन में ख्याल आया कि गरीब तबके की महिलाओं को सेनेटरी नैपकिन के बारे जागरूक किया जाये. इस तकबे की महिलाएं हर माह होने वाली माहवारी से संक्रमण के चलते गंभीर बीमारी से ग्रसित हो जाती हैं. खासतौर से महिलाओं को महावारी के दिनों में परेशानी का सामना करना पड़ता है क्योंकि वह सैनिटरी नैपकिन नहीं खरीद सकती.

छात्रों ने बताया की यह प्लान काफी जोखिम भरा और कठिन था. क्योंकि इस विषय पर लोगों से और महिलाओं से बात करना काफी मुश्किल होता था, लेकिन फिर भी महिलाओं की सुरक्षा के लिए यह कदम उठाना जरूरी समझा. छात्र ने बताया कि इस बारे में स्कूल की प्रिंसिपल से बात की.

सिंधिया स्कूल प्रबंधन और छात्रों ने फंड जुटाकर कर सेनेटरी नैपकिन बनाने की मशीन को खरीदा. 2012 में सेनेटरी नैपकिन बनाने की ट्रेनिंग दी. तब से लेकर अब तक छात्राएं स्कूल में फ्री समय में सैनिटरी नैपकिन बनाती हैं. सिंधिया स्कूल की प्रिंसिपल नीति मिश्रा का कहना है, 'महिलाओं को माहवारी के बारे में जागरूक करने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा. उस समय हर वक्त मन में यह विचार आता था कि इसके बारे में महिला को कैसे समझाया जाए. इस विषय में लोगों से बात करना काफी मुश्किल होती है'. उन्होंने बताया कि इस काम की शुरुआत करने के लिए पहले 15 महीने तक इसका सर्वे किया. सर्वे में पाया कि शहर की एक बड़ी आबादी इस बुनियादी समस्या से काफी परेशान है.

Intro:ग्वालियर- महावारी एक ऐसा विषय है जिस पर लोग खुलकर बात करना पसंद नहीं करते हैं। यही वजह है कि इस महावारी के संक्रमण के चलते हर साल कई महिलाओं की मौत हो जाती है। लेकिन महावारी के चलते महिलाओं में हो रही संक्रमण को दूर करने के लिए देश के प्रतिष्ठित सिंधिया कन्या स्कूल की छात्राओं ने स्कूल में सेनेटरी नैपकिन बनाने का प्लांट लगाया है और इस प्लांट में तैयार किए जा रहे संकल्प नाम के सैनिटरी नैपकिन को ग्वालियर के आसपास के गांव में गरीब तबके की महिलाओं को मुफ्त में दे रही है। इसके साथ ही सिंधिया कन्या विद्यालय की छात्राओं की प्रेरणा पर एक गांव की महिलाओं ने भी स्व सहायता समूह के जरिए सैनिटरी नैपकिन बनाने का काम शुरू किया है। इनमें द्वारा बनाई गई सेनेटरी नैपकिन को सिंधिया कन्या स्कूल की छात्राओं के द्वारा इसकी शुरुआत 2012 में की गई थी। तब से लेकर अब तक छात्रों के द्वारा सैनिटरी नैपकिन बनाने का काम जारी है।


Body:सिंधिया कन्या स्कूल में सैनिटरी नैपकिन बनाने की शुरुआत 2012 में हुई थी। जब स्कूल प्रबंधन और छात्राएं कुछ ऐसी तबके की मदद करना चाहती थी जो समाज से पिछड़े है। तभी उनके मन में ख्याल आया कि महिलाओं में हर माह होने वाली महावारी से संक्रमण के चलते महिला गंभीर बीमारी से ग्रसित हो जाती है। खासतौर से महिलाओं को महामारी के दिनों में परेशानी का सामना करना पड़ता है क्यों कि वह सैनिटरी नैपकिन नहीं खरीद सकती। इन दिनों में महिलाएं पुराने कपड़े ,पत्ती यहां तक कि रेत का इस्तेमाल भी करती है इसके कारण उनको गंभीर बीमारियां हो जाती है। साथ ही इसकी जागरूकता को लेकर कोई भी बात करना नहीं चाहता है। उसके बाद इन छात्राओं के मन में ख्याल आया कि क्यों ना महिलाओं को जागरूक करके और उनकी सुरक्षा के लिए सैनिटरी नैपकिन बनाने की शुरुआत की जाए। छात्रों ने बताया की यह प्लान काफी जोखिम भरा और कठिन था। क्योंकि इस विषय पर लोगों से और महिलाओं से बात करना काफी मुश्किल होता था। लेकिन फिर भी महिलाओं की सुरक्षा के लिए यह कदम उठाना हमने काफी महसूस समझा। उसके बाद सिंधिया कन्या स्कूल की प्रिंसिपल से छात्राओं ने बात कर इस प्रोजेक्ट को शुरू करने की तैयारी शुरू कर दी। इसके बाद सिंधिया स्कूल की प्रिंसिपल ने नैपकिन बनाने की मशीन की तलाश की। काफी खोजबीन के बाद उन्हें एक ऐसी मशीन के बारे में पता चला जिसके माध्यम से काफी कम दर पर सेनेटरी नैपकिन बनाए जा सकते हैं। उसके बाद सिंधिया स्कूल प्रबंधन और छात्रों के द्वारा जुटा गए फंड के सहयोग से सैनिटरी नैपकिन बनाने की मशीन को खरीद लिया। 2012 में सेनेटरी नैपकिन बनाने की ट्रेनिंग दी। अब से लेकर अब तक छात्राएं स्कूल की फ्री समय में सैनिटरी नैपकिन बनाती है । तब से लेकर अब तक इन छात्राओं के द्वारा सैनिटरी नैपकिन बना कर जरूरतमंद महिला को फ्री में दिया जाता है। इस मशीन की खास बात यह है। कि इन्हें कहीं भी ले जाया जा सकता है पर आसानी से पैड पर बनाए जा सकते हैं। इस मशीन से सैनिटरी नैपकिन बनाने की प्रक्रिया में लगभग 5 मिनट का समय लगता है। इसके बाद छात्रों ने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक गांव का चयन किया और गांव की महिलाओं को इन चेतावनी महामारी से होने वाली संक्रमित बीमारी के बारे में जागरूक किया और उसके बाद उनको सेनेटरी नैपकिन बनाने के लिए प्रेरित किया। स्व सहायता समूह के जरिए महिलाओं को मशीन उपलब्ध कराई और उसके बाद गांव की महिलाओं को सेनेटरी नैपकिन बनाने की ट्रेनिंग दी । आज वह महिलाएं अपने घर पर ही सैनिटरी नैपकिन बनाती है और सिंधिया स्कूल को बेचती है।


Conclusion:सिंधिया स्कूल की प्रिंसिपल नीति मिश्रा का कहना है कि सिंधिया कन्या स्कूल की छात्राओं को सेवा भाव करने का मन में विचार आया। सभी छात्राओं ने अपनी अलग-अलग विचार रखे उसके बाद निर्णय लिया बिजली के आसपास की बस्तियों में गरीब महिलाएं ऐसी है जो महावारी की वजह से होने बाली संक्रमित को किसी को नहीं बताती हैं और आगे जाकर यह गंभीर बीमारी का रूप ले लेती है।इसकी जागरूकता के लिए इसकी शुरुआत करने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। हर वक्त मन में यह विचार आता था कि इसके बारे में महिला को कैसे समझाया जाए। इस विषय में लोगों से बात करना काफी मुश्किल होता है इस काम की शुरुआत करने के लिए पहले 15 महीने तक इसका सर्वे किया। इसमें पाया कि शहर की एक बड़ी आबादी इस बुनियादी समस्या से काफी परेशान है। खासतौर से महिलाओं को महावारी के दिनों में परेशानी का सामना करना पड़ता है। क्योंकि भी सेनेटरी नैपकिन नहीं खरीद सकती। इसके बाद काफी खोजबीन के बाद इस मशीन को स्कूल में लाया गया उसके बाद बच्चों को सैनिटरी नैपकिन बनाने की ट्रेनिंग थी। अब से लेकर अब तक स्कूल की छात्राएं पढ़ाई के बाद अपने खाली समय में सेनेटरी नैपकिन बनाती है। और उसके बाद सिंधिया कन्या स्कूल प्रबंधन के द्वारा इसे जिले के आसपास के गरीब महिलाओं को फ्री में बांट दिया जाता है। बाइट - निशी मिश्रा , प्रिंसिपल , सिंधिया कन्या विद्यालय बाइट - सुदीक्षा छात्रा बाइट - छात्रा
Last Updated : Sep 30, 2019, 9:23 PM IST
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