हरदा। पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष और पर्यावरणविद् गौरीशंकर मुकाती ने विलुप्त होती बोलियों में बोले जाने वाले शब्द और लोकगीत से पीढ़ियों को जोड़ने के लिए दो पुस्तकें लिखीं, जिसका लोकार्पण 'भुवाणी बड़ी सुहानी' और 'मेरे गांव' का विमोचन कार्यक्रम के दौरान किया गया.
बोलियों में बोले जाने वाले शब्द विलुप्त हो रही है
पर्यावरणविद गौरीशंकर मुकाती का कहना है कि हमारी बोलियों में बोले जाने वाले कई ऐसे शब्द हैं जो इस दौर में विलुप्त हो रही है. लोगों को कोइन शब्दों के अर्थ और इन्हें किन कारणों से बोला जाता है इस बात की जानकारी नहीं होती. वहीं मुहावरे और लोकोक्तियां भी धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है. इन्हें सहेजने के लिए उनके द्वारा इन किताबों को लिखा गया है.
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कार्यक्रम के दौरान सांसद ने कहा कि स्थानीय बोली और लोक कला पूरे क्षेत्र के लोक जीवन को इंगित करती है. वहीं, मोहन नागर ने कहा कि किसी भी मातृभाषा को सशक्त और समृद्ध बनाने के लिए बोलियों का सहेजा जाना इस वक्त की मांग है. इस अवसर पर आरएसएस के विभाग प्रमुख धन्नालाल विशेष रूप से मौजूद रहें.