हरदा। जिले के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का गहरा नाता रहा है. यही वजह है कि उनके परिवार के लोगों ने आज भी बापू की यादों को सहेज के रखा हुआ है. ऐसा ही एक परिवार है सोकल परिवार जिसका योगदान आजादी की लड़ाई में अहम रहा है. इस परिवार के सदस्यों द्वारा आज भी बापू से जुड़ी यादों को सहेज कर रखा जा रहा है.
101 रुपए में हुई थी बापू की चांदी तश्तरी नीलाम
8 दिसंबर 1933 को जब बापू हरदा आए थे तो बापू को हरदा के लोगों द्वारा चांदी की तश्तरी खरीदकर भेंट की गई थी, लेकिन बापू ने उसे उसे नीलाम किया था, जिसे हरदा के सोकल परिवार के वरिष्ठ सदस्य और वरिष्ठ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय चंपालाल सोकल के पिता स्वर्गीय तुलसीराम सोकल ने 101 रुपए में खरीद लिया था. बापू की अनमोल याद को आज भी सोकल परिवार की 80 और 90 साल की बेटियों ने अपने पास सहेज के रखा हुआ है.
गांधी साहित्य को जिंदा रखने साबरमती आश्रम में भेंट की किताबें
इतना ही नहीं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय चंपालाल सोकल जो कि बापू के अनन्य भक्त थे, उनके द्वारा सिर्फ गांधीजी के साहित्य को ही पढ़ा जाता था. वहीं चरखा चलाकर अपने लिए कपड़े तैयार किए जाते थे. परिवार की बेटी और पूर्व प्राचार्य सरला सोकल द्वारा अपने पिताजी की याद को चिरस्थाई बनाने के लिए गुजरात के साबरमती आश्रम में गांधी जी की करीब एक हजार पुस्तकें और चरखा भेंट कर दिया गया है, जिससे लोग गांधीजी के साहित्य को पढ़ सकें.
बापू ने हरदा को दी 'हृदय नगरी' की उपाधि
महात्मा गांधी के द्वारा छुआछूत और भेदभाव के खिलाफ की गए आंदोलन के दौरान देश के अलग-अलग शहरों में जाकर लोगों से मुलाकात की थी. इस दौरान 8 दिसंबर 1933 को जब बापू हरदा आए तो उन्हें देखने के लिए हरदा सहित आसपास के गांवों और शहरों से लोगों की बड़ी संख्या सड़क के दोनों और स्वप्रेरणा से खड़े होकर बापू पर पुष्प वर्षा कर स्वागत किया. यहां के लोगों का अनुशासन से प्रभावित होकर हरदा के जिमखाना मैदान पर दिए गए 20 मिनट के भाषण में बापू ने कहा था कि हरदा के लोगों ने उनका हृदय जीत लिया है. तब उन्होंने हरदा को ''हृदय नगरी'' के नाम की उपाधि से परिभाषित किया था.
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सबसे बड़ी राशि की थी बापू को भेंट
महात्मा गांधी को उनकी इस यात्रा के दौरान हरदा के लोगों ने 1,633 रुपए और 15 आने के साथ मानपत्र भेंट किया था, जो संभवत उनकी इस यात्रा की सबसे बड़ी राशि रही होगी. इसका उल्लेख हरिजन सेवक नाम के समाचार पत्र में किया गया था.