हरदा। हरदा जिले की पहचान घण्टाघर से है, लेकिन घड़ियों के काटें बीते 2 साल से बंद पड़े हैं. नगर पालिका परिषद द्वारा करीब साढ़े 9 लाख रुपए की लागत से घड़ी और अलार्म की सामग्री खरीदी गई थी, 6 महीनों तक चलने के बाद चारों घड़ियां बंद हो गईं. वास्तु एवं ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, बंद घड़ियां इंसान के विचारों और स्वभाव में नकारात्मकता लाती हैं. बंद घड़ियां नकारात्मक उर्जा को बढ़ाती हैं और पॉजिटिव एनर्जी का प्रभाव कम कर देती हैं.
वर्ष 2017 में नगर पालिका द्वारा भोपाल की एक फर्म से करीब साढ़े 9 लाख रुपए की लागत से घंटाघर की बंद घड़ियों को फिर से सुधारने का कार्य किया गया था, लेकिन 6 महीने चलने के बाद चारों घड़ियां फिर से बंद हो गईं. नगर निगम के अधिकारी सबकुछ देखकर भी अपनी आंखें मूदे हुए हैं.
बेंगलुरु से बुलाए गए थे इंजीनियर
नगर पालिका परिषद द्वारा बेंगलुरु के इंजीनियरों को बुलाया गया था, जिनसे डिजिटल घड़ी लगाने का सुझाव लिया गया था. इस सुझाब के बाद भोपाल से डिजिटल घड़ियों को मंगवाया गया था, जिसकी मदद से हर घंटे सायरन बजकर लोगों को समय का पता चलता था, लेकिन 2 साल से अधिक समय बीतने के बावजूद चारों दिशाओं में लगी घड़ियां बंद पड़ गई है.
कैसे हुआ था घंटाघर का निर्माण ?
अंग्रेजी हुकूमत के समय ईसाई मिशनरी से जुड़े लोग घंटाघर के सामने खड़े होकर प्रार्थना किया करते थे. अंग्रेज अपनी सीमा चिन्ह के रूप में क्लॉक टॉवर खड़ा करवाया करते थे. इतिहासकारों के मुताबिक, ग्रेट रेलवे इंडियन के इंजीनियर जेम्स रेन रस्टम सटासट ने हरदा के घंटाघर चौक का निर्माण कराया था. इस दौरान जेवीडी असिस्टेंट कमिश्नर हुआ करते थे, जिनके दोस्त इंजीनियर रस्टम थे.
ज्योतिषियों की माने तो घंटाघर की बंद घड़ियों को तत्काल चालू कराया जाना चाहिए, जिससे हरदा के रुके विकास को फिर से गति मिल सकें. वहीं नगर पालिका सीएमओ ज्ञानेंद्र कुमार यादव का कहना है कि, उनके द्वारा बंद घड़ियों को फिर से चालू करने के लिए बात की गई थी, लेकिन कोई ठोस पहल नहीं हो पाई है.