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ये गोली बिना खाए करेगी असर, गठिया बादी के मरीजों के लिए 'संजीवनी' - ETV bharat News

जीवाजी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और पीएडी स्कॉलर ने मिलकर एक अनोखा शोध किया है. शोधकर्ताओं का कहना है कि यह शोध गठिया बादी (Arthritis) के मरिजों के लिए वरदान साबित होगी. इस तकनीक से दवा बिना खाए असर करेगी. इस तकनीक में एक पेंच शरीर पर लगाया जाएगा, जिसमें दवा मिलाई जाएगी. इसके बाद यह दवा अपने आप खून में मिलकर असर करना शूरु कर देगी. शोधकर्ताओं के अनुसार यह तकनीक अंतिम चरणों में है. जल्द ही इसका पेटेंट करवाया जाएगा.

Unique Research in Jiwaji University
जीवाजी विश्वविद्यालय में अनोखी रिसर्च
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Published : Oct 27, 2021, 11:00 PM IST

ग्वालियर। जीवाजी विश्वविद्यालय में एक महत्वपूर्ण शोध में अर्थराइटिस की दवा के लिए ट्रांसडर्मल ड्रग डिलीवरी सिस्टम (Transdermal Drug Delivery System) तैयार किया गया है. इसी दवा को त्वचा के जरिए सीधे खून में भेजा जाता है. सबसे खास बात यह है कि इसके जरिए टेबलेट और कैप्सूल फॉर्मेट में दवा पेट में नहीं जाती. जिस कारण इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है, दवा खून में बह जाने से ज्यादा प्रभावी ढंग से काम करती है. ट्रांसडर्मल ड्रग डिलीवरी सिस्टम का फिल्म रूप में पेंच तैयार किया गया है.

इस पेंच में दवा को भरा जाता है इसके बाद इसे शरीर के उस हिस्से में चिपकाया जाता है, जहां स्किन सॉफ्ट होती है. इसके बाद इस पेंच से दवा निकलकर सीधे खून में मिल जाती है. इसके जरिए दवा खून में मिलकर अपना असर दिखाती है. इस रिसर्च को जीवाजी विश्वविद्यालय के फॉर्मेसी विभाग के प्रोफेसर नवनीत गरुड़ के अंडर में पीएचडी शोध कर रहे रमाकांत जोशी ने मिलकर तैयार किया है. विश्वविद्यालय इस रिसर्च की पेटेंट कराने का भी काम कर रहा है.

जीवाजी विश्वविद्यालय में अनोखी रिसर्च

अर्थराइटिस वाले मरीजों के लिए वरदान रिसर्च

प्रोफेसर नवनीत गरुण बताते है कि भारत की 15 फीसदी आबादी अर्थराइटिस से पीड़ित है. यह बीमारी बुजुर्गों के साथ-साथ अब युवाओं को विशेषकर 30 से 50 साल की उम्र तक वाले लोगों की खराब लाइफस्टाइल के कारण बहुत तेजी से पैर पसार रही है. साथ ही यह रोग पुरुषों की तुलना में महिलाओं में 3 गुना तेजी से फैल रहा है. प्रोफेसर गरुण बताते है कि अर्थराइटिस वाले मरीजों को कई गोलियां खानी पड़ती है.

इस कारण इसके साइड इफेक्ट भी देखने को मिलते हैं. जीवाजी विश्वविद्यालय की इस रिसर्च से अर्थराइटिस वाले मरीजों को काफी राहत मिलेगी. क्योंकि इस दवा का कोई साइड इफेक्ट नहीं है. यह दवा सीधे स्किन के जरिए शरीर के अंदर पहुंचती है और अपना असर दिखाती है. अर्थराइटिस वाले मरीजों के लिए यह रिसर्च वरदान के समान है.

For patients with arthritis
दवाई लेने की नई तकनीक

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कैसे किया जाएगा ट्रांसडर्मल फिल्म का उपयोग?

प्रोफेसर नवनीत गरुण के अनुसार इस पेंच को एक दिन में एक ही बार उपयोग में लाया जा सकता है. इससे दिन में तीन बार दवा खाने की जरूरत नहीं रहती है. अर्थराइटिस के उपचार में आम तौर पर दी जाने वाली या बेहद कारगर दवा है जो कि नॉन स्टेरॉइडल एन्टी इंफ्लेमेटरी श्रेणी में आती है. इसकी लगभग 100 मिलीग्राम की टेबलेट दिन में तीन बार दी जाती है, जो रोग के नियंत्रण के लिए आवश्यक है. लेकिन इस दवा को टेबलेट में देने से इसके कई साइड इफेक्ट सामने आते हैं.

इस दवा के साइड इफेक्ट को खत्म करने के लिए रिसर्च स्कॉलर रमाकांत जोशी के साथ फ्लूर्बीप्रोफेन दवा को ट्रांसडर्मल ड्रग डिलीवरी सिस्टम से त्वचा के द्वारा पहुंचाने का तरीका विकसित किया है. इसके पहले चरण में कुछ मेट्रिक पॉलीमर्स का इस्तेमाल करके फिल्म तैयार की गई. जिसे सबसे पहले चूहों पर लगाकर इसका अध्ययन किया गया. जिसमें पाया गया कि दवा की जो मात्रा रक्त के लिए आवश्यक है वह सही समय पर सही मात्रा में पहुंच रही है.

researcher at university
विश्वविद्यालय में रिसर्च करते शोधकर्ता

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दिन में बार-बार दवा लेने की झंझट खत्म

ट्रांसडर्मल फिल्म को मरीज दिन में एक बार अपने शरीर विशेषकर गर्दन या हाथ पर लगाकर एक दिन की पूरी दवा ले सकता है. जिससे अर्थराइटिस के लिए बेहद जरूरी ड्रग फ्लूर्बीप्रोफेन को दिन में बार-बार लेने का झंझट खत्म हो जाएगी. इस शोध को लेकर पत्र भी प्रकाशित किया जा चुका है. इसका प्रकाशन होने के लिए भेजा गया है. अब इसके पेटेंट करने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की योजना भी बनाई है. इस शोध के परिणामों के बाद अर्थराइटिस बीमारी से ग्रसित मरीजों को बड़ी राहत मिल सकती है.

ग्वालियर। जीवाजी विश्वविद्यालय में एक महत्वपूर्ण शोध में अर्थराइटिस की दवा के लिए ट्रांसडर्मल ड्रग डिलीवरी सिस्टम (Transdermal Drug Delivery System) तैयार किया गया है. इसी दवा को त्वचा के जरिए सीधे खून में भेजा जाता है. सबसे खास बात यह है कि इसके जरिए टेबलेट और कैप्सूल फॉर्मेट में दवा पेट में नहीं जाती. जिस कारण इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है, दवा खून में बह जाने से ज्यादा प्रभावी ढंग से काम करती है. ट्रांसडर्मल ड्रग डिलीवरी सिस्टम का फिल्म रूप में पेंच तैयार किया गया है.

इस पेंच में दवा को भरा जाता है इसके बाद इसे शरीर के उस हिस्से में चिपकाया जाता है, जहां स्किन सॉफ्ट होती है. इसके बाद इस पेंच से दवा निकलकर सीधे खून में मिल जाती है. इसके जरिए दवा खून में मिलकर अपना असर दिखाती है. इस रिसर्च को जीवाजी विश्वविद्यालय के फॉर्मेसी विभाग के प्रोफेसर नवनीत गरुड़ के अंडर में पीएचडी शोध कर रहे रमाकांत जोशी ने मिलकर तैयार किया है. विश्वविद्यालय इस रिसर्च की पेटेंट कराने का भी काम कर रहा है.

जीवाजी विश्वविद्यालय में अनोखी रिसर्च

अर्थराइटिस वाले मरीजों के लिए वरदान रिसर्च

प्रोफेसर नवनीत गरुण बताते है कि भारत की 15 फीसदी आबादी अर्थराइटिस से पीड़ित है. यह बीमारी बुजुर्गों के साथ-साथ अब युवाओं को विशेषकर 30 से 50 साल की उम्र तक वाले लोगों की खराब लाइफस्टाइल के कारण बहुत तेजी से पैर पसार रही है. साथ ही यह रोग पुरुषों की तुलना में महिलाओं में 3 गुना तेजी से फैल रहा है. प्रोफेसर गरुण बताते है कि अर्थराइटिस वाले मरीजों को कई गोलियां खानी पड़ती है.

इस कारण इसके साइड इफेक्ट भी देखने को मिलते हैं. जीवाजी विश्वविद्यालय की इस रिसर्च से अर्थराइटिस वाले मरीजों को काफी राहत मिलेगी. क्योंकि इस दवा का कोई साइड इफेक्ट नहीं है. यह दवा सीधे स्किन के जरिए शरीर के अंदर पहुंचती है और अपना असर दिखाती है. अर्थराइटिस वाले मरीजों के लिए यह रिसर्च वरदान के समान है.

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प्रोफेसर नवनीत गरुण के अनुसार इस पेंच को एक दिन में एक ही बार उपयोग में लाया जा सकता है. इससे दिन में तीन बार दवा खाने की जरूरत नहीं रहती है. अर्थराइटिस के उपचार में आम तौर पर दी जाने वाली या बेहद कारगर दवा है जो कि नॉन स्टेरॉइडल एन्टी इंफ्लेमेटरी श्रेणी में आती है. इसकी लगभग 100 मिलीग्राम की टेबलेट दिन में तीन बार दी जाती है, जो रोग के नियंत्रण के लिए आवश्यक है. लेकिन इस दवा को टेबलेट में देने से इसके कई साइड इफेक्ट सामने आते हैं.

इस दवा के साइड इफेक्ट को खत्म करने के लिए रिसर्च स्कॉलर रमाकांत जोशी के साथ फ्लूर्बीप्रोफेन दवा को ट्रांसडर्मल ड्रग डिलीवरी सिस्टम से त्वचा के द्वारा पहुंचाने का तरीका विकसित किया है. इसके पहले चरण में कुछ मेट्रिक पॉलीमर्स का इस्तेमाल करके फिल्म तैयार की गई. जिसे सबसे पहले चूहों पर लगाकर इसका अध्ययन किया गया. जिसमें पाया गया कि दवा की जो मात्रा रक्त के लिए आवश्यक है वह सही समय पर सही मात्रा में पहुंच रही है.

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