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तानसेन की समाधि पर लगे इमली के पेड़ की अद्भुत कहानी, पत्ते खाने से सुरीली होती है आवाज

ऐसा कहा जाता है कि तानसेन अपनी आवाज सुरीली रखने के लिए इमली के पत्ते खाते थे. इसलिए ग्वालियर आने वाला हर संगीत प्रेमी तानसेन की समाधि स्थल पर पहुंचकर इमली का पत्ता जरुर खाता है.

The tamarind tree on Tansen's tomb is amazing
इमली के पत्ते खाने से सुरीली होती है आवाज
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Published : Dec 21, 2019, 6:07 PM IST

ग्वालियर। संगीत सम्राट तानसेन अकबर के अनमोल नवरत्नों में से एक थे. ग्वालियर का नाम विश्व पटल पर तानसेन के सुर पराक्रम की वजह से ही अमर हुआ है. उनकी याद में हर साल मध्यप्रदेश सरकार तानसेन समारोह का आयोजन करती है. सुरों की इस महफिल में देशभर के कला प्रेमी शामिल होते हैं. ग्वालियर आने वाला हर संगीत प्रेमी तानसेन की समाधि स्थल पर पहुंचकर इमली का पत्ता जरुर खाता है.

इमली के पत्ते खाने से सुरीली होती है आवाज


ऐसा कहा जाता है कि तानसेन अपनी आवाज सुरीली रखने के लिए इमली के पत्ते खिलाते थे. यह मान्यता है कि संगीत सम्राट तानसेन की समाधि पर लगे इस इमली के पेड़ में उनकी रूह बसती है. जो भी इस पेड की पत्तियां खाता है उसकी आवाज सुरीली हो जाती है. यही वजह है कि तानसेन की समाधि स्थल पर आने वाले लोग इस पेड की पत्तियां खाते हैं. कई सौ साल पुराना होने के बाद पेड़ गिर गया था. लेकिन यहां के मुअजिन ने इस पुराने पेड़ से निकले नए पेड़ को जिंदा रखा हुआ है. इतिहासकारों का मनाना है कि तानसेन के समाधि पर लगाया इमली का पेड़ मैजिक ट्री है.


ग्वालियर के बेहट गांव में रहने वाले ब्राहाम्ण परिवार में तानसेन का जन्म हुआ था. यह परिवार बच्चे के लिए परेशान हो गया था और मोहम्मद गोस ने इस परिवार पर अपना रहमो करम दिखाया और तानसेन ने इस परिवार में जन्म लिया. लेकिन पांच वर्ष की उम्र में तानसेन के सिर से माता- पिता का साया उठ गया. तानसेन बकरी चराते और गांव वालों से मिलने वाले खाने को खाते थे. तभी मोहम्मद गोस ने उनको सहारा दिया. प्रारंभ में तानसेन किसी से कुछ नहीं बोलते थे. लेकिन मोहम्मद गोस ने उनको अपना शिष्य बनाया और उनको सुरो की तालीम दी. उस समय ग्वालियर किले पर वह संगीत विद्यालय में मोहम्मद गोस से तालीम लेते थे. लेकिन समय के साथ- साथ तानसेन के सुरों की लय इतनी बुलंद हो गई कि मुगल शासक अकबर ने उन्हें अपने नौ रत्नों में शुमार कर लिया.

ग्वालियर। संगीत सम्राट तानसेन अकबर के अनमोल नवरत्नों में से एक थे. ग्वालियर का नाम विश्व पटल पर तानसेन के सुर पराक्रम की वजह से ही अमर हुआ है. उनकी याद में हर साल मध्यप्रदेश सरकार तानसेन समारोह का आयोजन करती है. सुरों की इस महफिल में देशभर के कला प्रेमी शामिल होते हैं. ग्वालियर आने वाला हर संगीत प्रेमी तानसेन की समाधि स्थल पर पहुंचकर इमली का पत्ता जरुर खाता है.

इमली के पत्ते खाने से सुरीली होती है आवाज


ऐसा कहा जाता है कि तानसेन अपनी आवाज सुरीली रखने के लिए इमली के पत्ते खिलाते थे. यह मान्यता है कि संगीत सम्राट तानसेन की समाधि पर लगे इस इमली के पेड़ में उनकी रूह बसती है. जो भी इस पेड की पत्तियां खाता है उसकी आवाज सुरीली हो जाती है. यही वजह है कि तानसेन की समाधि स्थल पर आने वाले लोग इस पेड की पत्तियां खाते हैं. कई सौ साल पुराना होने के बाद पेड़ गिर गया था. लेकिन यहां के मुअजिन ने इस पुराने पेड़ से निकले नए पेड़ को जिंदा रखा हुआ है. इतिहासकारों का मनाना है कि तानसेन के समाधि पर लगाया इमली का पेड़ मैजिक ट्री है.


ग्वालियर के बेहट गांव में रहने वाले ब्राहाम्ण परिवार में तानसेन का जन्म हुआ था. यह परिवार बच्चे के लिए परेशान हो गया था और मोहम्मद गोस ने इस परिवार पर अपना रहमो करम दिखाया और तानसेन ने इस परिवार में जन्म लिया. लेकिन पांच वर्ष की उम्र में तानसेन के सिर से माता- पिता का साया उठ गया. तानसेन बकरी चराते और गांव वालों से मिलने वाले खाने को खाते थे. तभी मोहम्मद गोस ने उनको सहारा दिया. प्रारंभ में तानसेन किसी से कुछ नहीं बोलते थे. लेकिन मोहम्मद गोस ने उनको अपना शिष्य बनाया और उनको सुरो की तालीम दी. उस समय ग्वालियर किले पर वह संगीत विद्यालय में मोहम्मद गोस से तालीम लेते थे. लेकिन समय के साथ- साथ तानसेन के सुरों की लय इतनी बुलंद हो गई कि मुगल शासक अकबर ने उन्हें अपने नौ रत्नों में शुमार कर लिया.

Intro:एंकर- अकबर के नवरत्न में एक सुर सम्राट तानसेन को दुनियाभर के कला प्रेमी जानते है। ग्वालियर का नाम विश्व पटल पर तानसेन के सुर पराक्रम की बजह से ही अमर हुआ है। उनकी याद में हर वर्ष मध्यप्रदेश सरकार तानसेन समारोह का आयोजन करती है और सुरों की इस महफिल में देश भर के कला प्रेमी सम्मिलित होते है। तो आईये तानसेन समारोह में हम आपको तानसेन गाथा सुनाते है और बताते है कि कैसे बना एक बिना बोलने वाला बच्चा सुर का सम्राट तानसेन।



Body:ग्वालियर के बेहट गांव में रहने वाले ब्राहाम्ण परिवार में तानसेन का जन्म हुआ यह परिवार बच्चे के लिए परेशान हो गया था और मोहम्मद गोस ने इस परिवार पर अपना रहमो करम दिखाया और तानसेन ने इस परिवार में जन्म लिया। लेकिन पांच वर्ष की उम्र में तानसेन के सिर से माता- पिता का साया उठ गया तानसेन बकरी चराते और गांव वालो से मिलने वाले खाने को खाते तभी मोहम्मद गोस ने उनको सहारा दिया। प्रारंभ में तानसेन किसी से कुछ नही बोलते थे लेकिन मोहम्मद गोस ने उनको अपना शिष्य बनाया और उनको सुरो की तालीम दी उस समय ग्वालियर किले पर वह संगीत विधालय में मोहम्मद गोस से तालीम लेते थे लेकिन समय के साथ- साथ तानसेन के सुरो की लय इतनी बुलंद हो गई कि मुगल शासक अकबर ने उन्हे अपने नौ रत्नों में शुमार कर लिया। सयार ईसाग हसन बताते है कि तानसेन की आबाज को सुरीली और रसीली बनाने के लिए इमली के पत्ते खिलाते थे और आज भी यह मैजिक इमली ट्री की पत्तियों को देश भर के दिग्गज संगीत योद्वा खाते है । यह मान्यता है कि मियां सम्राट तानसेन की समाधि पर लगे इस इमली के पेड़ में उनकी रूह बसती है और जो भी इस पेड की पत्तियां खाता है उसकी आबाज सुरीली हो जाती है यही बजह है कि तानसेन की समाधि स्थल पर आने वाले लोग इस पेड की पत्तीयां खाते है पुराना पेड कई सौ साल पुराना होने के बाद गिर गया था। लेकिन यहां के मुअजिन ने इस पुराने पेड से निकले नए पेड को जिंदा रखा हुआ है। सुर सम्राट की जीवन की गाथा को इतिहासकार बताते है कि बाकई में दुनियाभर में उनके जैसा संगीतकार नही हुआ क्योंकि तानसेन अपने सुरो से दिये जला देते है मल्हार गाकर बारिश करा देते थे तभी तो अकबर ने अपने नौ रत्नों में उनको शुमार किया था इतिहासकार यह भी मानते है कि इमली का पेड मैजिक ट्री है और इसकी पत्तीयां खाने से आवाज सुरीली हो जाती है



Conclusion:बाइट- राकेश अचल- संगीत प्रेमी
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